बालको नगर में “पौधों की पाठशाला” बना आयुर्वेद विज्ञान का महा स्रोत- लालिमा जायसवाल

कोरबा, 15 जुलाई । हमारी भारत भूमि औषधि का भंडार हैं। यहां की नदियाँ, पहाड़ ,वृक्ष सबमें देवत्व समाया हुआ है। इसलिये तो भारतमाता धरतीमाता पुकारी जाती हैं । बड़े बड़े ऋषि मुनि इसी पुण्य धरा पर हुये हैं। हमारी गौमाता भी भारत भूमि की धरा पर प्रकट हुयी थीं। उसी के गोबर,गौमूत्र से यह धरती पल बढ़ रही। इसलिये विविध प्रकार के आयुर्वेदिक वृक्ष हमारी धरती पर होते हैं।


इसी तारतम्य में अर्जुन श्रीवास लगातार कई वर्षों से विविध प्रकार के आयुर्वेद से जुड़े पेड़ पौधों को एक निश्चित भूमि पटल में पालन पोषण कर रहे हैं। उनके द्वारा लगभग 300 प्रजातियां के दुर्लभ आयुर्वेद के पेड़ पौधे लगाये गये हैं। जिसमें शरीर के संपूर्ण रोगों का ईलाज की जानकारी भी रखते हैं। उनका उद्यान एक तरह से आयुर्वेद पौधों की पाठशाला ही है, यहाँ आयुर्वेद चिकित्सक, रिसर्चर, विद्यार्थी सभी आयुर्वेद संबंधी ज्ञान वर्धन के लिये आते हैं। यहां पर ऐसे आयुर्वेद के वृक्ष हैं जिनको स्पर्श करने, उनके छाया मात्र में खड़े होने ब्लड प्रेशर,डिप्रेशन,अनिद्रा जैसे बीमारियां प्रभावहीन हो जाते हैं।

डायबिटिज के लिये इन्सुलिन का पौधा, मधुनाशक आदि पौधे भी इस पाठशाला में देखे जा सकते हैं। और सबसे बड़ी बात यह है कि इन पौधों में कोई सा भी रासयनिक खाद का प्रयोग श्रीवास जी नहीं करते। गोबर और गौमूत्र से बने खाद का उपयोग ही करते हैं। जिसको स्वयं बनाते भी हैं। गौमाताओं की सेवा करके गोबर गौमूत्र एकत्र कर जैविक खाद बनाकर पौधों को खाना देते हैं।