सफलता की कहानी: मनरेगा के कुआं ने बिखेरी दौलतराम के चेहरे पर मुस्कान…दोहरी फसल, बाड़ी से बना दौलतराम संपन्न और खुशहाल

जांजगीर-चांपा 20 जून 2024/ कुआं किसी के लिए जिंदगी बदल सकता है यह दौलतराम से बेहतर कौन जान सकता है। उनकी सोच और महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से मिले संबल से वे गांव के प्रगतिशील किसान बन गए और बेहतर आय प्राप्त करते हुए वे अपने परिवार के साथ खुशहाल जिंदगी बसर करने लगे। कुआं का यह बेशकीमती पानी अब उनकी और उनके खेतों की प्यास को बुझाने का काम कर रहा है।


दौलतराम की जिंदगी पहले ऐसी नहीं थी, खेत होने के बाद भी वह दोहरी फसल तो दूर बाड़ी भी नहीं लगा पा रहे थे, लाख कोशिशों बाद भी कहीं से कोई आस नजर नहीं आ रही थी, ऐसे में एक दिन उनके कानों में महात्मा गांधी नरेगा से निजी कुआं निर्माण किये जाने की बात सुनाई दी, फिर क्या था ग्राम पंचायत औराईखुर्द जनपद पंचायत बलौदा के रहने वाले दौलतराम पिता जैलाल ने अपने खेत में कुआं निर्माण को लेकर ग्राम पंचायत में आवेदन दिया और इस आवेदन को मंजूर करते हुए आगे की प्रक्रिया शुरू की गई। तकनीकी सहायक ने प्रस्ताव तैयार कर उसे जनपद पंचायत से जिला भेजा, जहां से कुआं निर्माण को लेकर 2 लाख 37 हजार रूपए मंजूर किये गये। इसके बाद दौलतराम को कुआं के रूप में मानो कोई खजाना मिल गया और एक पल देर किये बिना ही उन्होंने कुआं निर्माण का काम शुरू कर दिया। महात्मा गांधी नरेगा के जॉबकार्ड धारी परिवारों ने मिलकर दौलतराम के कुएं का निर्माण कार्य किया। कार्यक्रम अधिकारी हृदय शंकर, तकनीकी सहायक सुखचंद देवांगन के तकनीकी मार्गदर्शन, रोजगार सहायक महेन्द्र कुमार की देखरेख में धीरे-धीरे कुआं का कार्य प्रगति के साथ पूर्ण हो गया। कुआं निर्माण में 6 परिवारों ने काम करते हुए 534 मानव दिवस सृजित किये और दौलतराम के परिवार ने 198 दिवस का रोजगार प्राप्त किया। जिससे एक ओर उनके परिवार को कुआं का बेशकीमती पानी मिला तो दूसरी ओर गांव में ही रोजगार प्राप्त हुआ। यहां से उनके खुशहाल होने की कहानी शुरू हो जाती है। 2 एकड़ जमीन पर उन्होंने फसल लगाना शुरू किया धीरे-धीरे उनकी उम्मीद फसल को लेकर बढ़ गई, क्योंकि कुआं में आया बेशकीमती पानी उनके खेतों के लिए वरदान साबित हुआ। यहीं नहीं उन्हांने कुआं के आसपास कुछ जमीन पर बाड़ी लगाई जिसमें सब्जियों को उगाना शुरू किया, जो उनके परिवार के काम आने लगा और कुछ सब्जी का गांव में बेचना भी शुरू किया जिससे अतिरिक्त आय भी हुई।