कोरबा, 29 मई । आकांक्षी जिला कोरबा को कुपोषणमुक्त कोरबा बनाने की शासन की परिकल्पना को साकार करने की मंशा में महती भूमिका निभाने वाली तकरीबन 1800 महिला स्व सहायता समूह पिछले 5 माह से 6 करोड़ के लंबित भुगतान के लिए जिला कार्यालय महिला एवं बाल विकास विभाग का चक्कर काट रहे हैं। जी हां जिला खनिज संस्थान न्यास (डीएमएफटी ) द्वारा संचालित मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के तहत करीब 1 लाख हितग्राहियों को डेढ़ साल तक गर्म भोजन ,अंडा /केला वितरण कर उनके स्वास्थ्य एवं पोषण स्तर में अपेक्षित सुधार लाने वाली इन महिला स्व सहायता समूहों के 6 करोड़ के भुगतान के लिए जिम्मेदारों द्वारा संजीदगी नहीं दिखाई जा रही है। लंबित भुगतान एवं योजना के तहत कार्य बंद होने से आर्थिक संकट से जूझ रहीं समूहों की 18 हजार महिला सदस्यों के सब्र का बांध फूट रहा। लोकसभा चुनाव के परिणाम उपरांत आचार संहिता हटते ही उपेक्षित एवं शोषित महसूस कर रहीं स्व सहायता समूह की सदस्यों ने सीधे प्रदेश के मुखिया के समक्ष गुहार लगाने का मन बनाया है।
यहां बताना होगा कि आकांक्षी जिला कोरबा में वित्तीय वर्ष 2022-23 एवं वित्तीय वर्ष 2023 -24 में 18 माह (डेढ़ साल ) तक तक डीएमएफ के माध्यम से मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान का संचालन किया गया ।जिसके तहत तकरीबन 1800 महिला स्व सहायता समूहों ने जिले के सभी 10 परियोजनाओं के 2500 से अधिक आंगनबाड़ी के केंद्रों के तकरीबन 1 लाख से अधिक हितग्राहियों को गर्म पका भोजन एव विशेष पौष्टिक आहार प्रदान कर उनको उत्तम स्वास्थ्य प्रदान किया। विश्वस्त सूत्रों से प्राप्त जानकारी एवं नाम न प्रकाशित करने की शर्त के तहत स्व सहायता समूहों से प्राप्त जानकारी अनुसार योजना के अंर्तगत 1 से 3 वर्ष के समस्त बच्चों को गर्म पका भोजन सप्ताह में अंडा / केला प्रदान किया । 3 से 6 वर्ष के मध्यम कुपोषित बच्चों को भी समान पोषण आहार से लाभान्वित किया गया। गर्भवती शिशुवती माताओं को भी गर्म पका भोजन से लाभान्वित कर उत्तम स्वास्थ्य प्रदान किया गया । लेकिन इसे विडंबना ही कहें कि जहां योजना दिसंबर 2023 के बाद से बंद है वहीं उक्त योजना का संचालन कर्ज लेकर सुनिश्चित करने वाली महिला स्व सहायता समूहों के भुगतान के लिए जिला खनिज संस्थान न्यास से महज 6 करोड़ रुपए नहीं निकल रहे। जिम्मेदार भुगतानकर्ता अधिकारी समूहों को तमाम जांच एवं सत्यापन के प्रक्रियाओं की पेचीदगियों में उलझाए रखे हैं। जबकि नियमानुसार सही तरीके से हुए कार्य का वाजिब भुगतान होना चाहिए। समूहों ने बताया कि प्रत्येक समूहों में 10 सदस्य होते हैं,ऐसे में 1800 समूहों में तकरीबन 18 हजार सदस्य सीधे तौर पर इससे पर प्रभावित हो रहे।
पूर्ववर्ती कांग्रेस शासनकाल में जहां रेडी टू ईट का संचालन दायित्व प्रदेश की 16 हजार समूहों से छीनकर बीज निगम की उत्पादनकर्ता फर्मों को दिए जाने से जहां डेढ़ लाख महिलाएं बेरोजगार हो गईं, वहीं
मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान के तहत भी स्वीकृत कार्य के बंद होने 6 करोड़ के लंबित भुगतान ने महिला स्व सहायता समूहों की महिलाओं को हतोत्साहित कर दिया है। महिला आर्थिक सशक्तिकरण के दावे कोरबा में फेल होते,कागजों में सिमटते नजर आ रहे।
एक एक समूह का 20 -22 हजार का होना है भुगतान, क्या सुध लेगी साय सरकार !
समूहों के अनुसार प्रत्येक समूहों का तकरीबन 20 से 22 हजार का भुगतान होना है। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो 2022 -23 एवं 2023 -24 में तकरीबन 18 माह (डेढ़ साल तक )योजना का संचालन हुआ था। इसमें से महज 3 माह का ही समूहों को तकरीबन डेढ़ करोड़ का भुगतान किया गया। जबकि योजना के 15 माह (सवा साल )के संचालन के एवज में भुगतान होने वाली तकरीबन 6 करोड़ का भुगतान लंबित है।
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