डीएसपीएम विद्युत संयंत्र की। संयंत्र से निकलने वाली राख पाइप लाइन के जरिए गोढ़ी के राखड़ डैम में भेजी जाती है।
कोरबा ,26 फ़रवरी 2025 (वेदांत समाचार)/ राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी के अजब गजब कारनामे किसी से छुपे नहीं है। संयंत्र से निकलने वाली राख से जहां पूरा शहर हलाकान है , वहीं उत्पादन कंपनी के कुछ जिम्मेदार फर्जी पर्ची का खेल खेल कर मालामाल हो रहे है। आश्चर्य तो ये है कि कभी छुट्टी के दिन दफ्तर के ताले टूटते जाते है। और करोड़ों के भुगतान कागजों में हेराफेरी हो जाती है तो वहीं लगातार राखड़ उठाव के बाद भी गोढ़ी के राखड़ डैम की राख कम होने का नाम नहीं लेती।
यहां बात हो रही है छत्तीसगढ़ उत्पादन कंपनी के डीएसपीएम विद्युत संयंत्र की। संयंत्र से निकलने वाली राख पाइप लाइन के जरिए गोढ़ी के राखड़ डैम में भेजी जाती है। राख के उठाव के लिए मुख्यालय रायपुर से करोड़ों का टेंडर जारी किया गया है। 31 .12.2024 को मुख्यालय रायपुर से निकाली गई निविदा के मुताबिक गोढ़ी स्थित रखड़ डेम सिविल संभाग 1 से 50 किलोमीटर के दायरे में मांग के अनुरूप राखड़ डाली जानी है। इसके लिए लो लाइन एरिया शब्द का प्रयोग निविदा में किया गया है जिसका साफ मतलब गड्ढे और निचले क्षेत्र में राख पाटने से है। इसी तरह की एक और निविदा डीएसपीएम संयंत्र के साइलो से राख उठाव के लिए 12.09. 2024 को रायपुर मुख्यालय से ही8 निकाली गई है। इस निविदा में भी वहीं शर्ते है कि 50 किलोमीटर के लो लाइन एरिया में मांग के मुताबिक राख की आपूर्ति की जानी है।
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दोनों निविदाओं में स्पष्ट उल्लेख होने के बाद भी जिम्मेदार अधिकारी सारी शर्तों को।दरकिनार कर गोढ़ी रखड़ डेम से राख निकाल कर पाड़ीमार राखड़ डेम में डाल रहे हैं जो कि सिविल संभाग 2 में आता है । यह राखड़ डेम कोरबा पूर्व के बंद हो चुके 200 मेगावाट संयंत्र के लिए उपयोग में लाया जाता था जो अब बंद हो चुका है।
अधिकारियों और ठेका कंपनी की मिलीभगत से गोढ़ी के राखड़ डैम से राख निकाल कर पाड़ीमार डेम में रेन कटिंग के गड्ढे भरने के नाम पे डाली जा रही है। इसके लिए गोढ़ी डेम में ठेका कर्मचारियों से पर्चियां तो काफी ली जाती है लेकिन महज कुछ गाड़ियों में राख का परिवहन किया जाता है और फर्जी परिवहन गाड़ियों के ट्रिप दर्शा कर बिलिंग की जा रही है। ना तो राख किसी लो लाइन एरिया में भेजी जा रही है और ना ही किसी अन्य स्थान पर फीलिंग की जा रही है। जबकि साइलो से राख आस पास के लो लाइन एरिया में बड़े कम खर्च पर भेजी जा सकती है।
यहां ना तो लोडिंग का अतिरिक्त खर्च आएगा ना ही लंबी दूरी का चक्कर लगाना पड़ेगा। लेकिन साइलो में कंपनी के कर्मचारी होते हैं जो सही पर्ची काटेंगे साथ ही कैमरे भी लगाए गए हैं जो गाड़ियों और लोडिंग के अलावा हरेक ट्रिप की जानकारी भी दर्ज करेंगे। जाहिर है इन सबसे बचने के लिए गोढ़ी डेम को चुना गया।जहां आसानी से फर्जी काम को अंजाम दिया जा रहा है। हैरानी की बात यह है कि दस्तावेजों में जितनी राख गोढ़ी डेम से निकाली जा रही है उस पैमाने पर यकीन करें तो अब तक तो डेम कि एक चौथाई राख खाली हो जानी थी। लेकिन बिना राख निकाले राख उठाव का खेल जरूर जारी है।
यहां यह बताना लाजमी है कि पाड़ीमार सिविल संभाग 2 के अंतर्गत आता है और जिसकी जिम्मेदारी कार्यपालन यंत्री सिविल हेमलता नारंग देखती हैं। इसी तरह गोढ़ी जो सिविल संभाग 1 के अंतर्गत आता है उसकी जिम्मेदारी के एल देवांगन कार्यपालन यंत्री सिविल ऐश यूटिलाइजेशन एंड पलूशन कंट्रोल के अधीन है। अब सवाल यह है कि सिविल संभाग एक के डेम से राख उठाई क्यों जा रही है और संभाग 2 में डाली कैसे जा रही है। यदि रेन कटिंग भरनी है तो साइलो से क्यों राख नहीं ली जा रही जिसकी दूरी भी कम है। सीधी सी बात है कि एक पर्ची पे दो खेल हो रहे हैं । गोढ़ी से राख निकालने के लिए एक पेमेंट तो वहीं संभाग 2 पाड़ीमार में गड्ढे भरने के लिए उसी राख का एक और पेमेंट । ऐसा तभी संभव है जब मतलब दो संभाग के जिम्मेदार अधिकारियों की आपसी सहमती हो । इस संबंध में जब छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत उत्पादन कंपनी के अधिकारियों से फोन पर संपर्क किया गया तो उनसे संपर्क नहीं हो पाए।
यहां एक खास घटना का जिक्र जरूरी है , सितंबर 2024 को छुट्टी के दिन एक साथ तीन दफ्तरों के ताले टूटने की घटना हुई, जिसमे अधीक्षण यंत्री के अलावा सिविल संभाग 1 और 2 के दफ्तर शामिल है। सूत्र बताते हैं कि यहां 3 करोड़ 40 लाख के उस भुगतान की फाइल और दस्तावेज थे जो राख सप्लाई से जुड़े थे। बताया जा रहा है कि मानिकपुर खदान के अलावा नेशनल हाईवे के काम में जितनी राख की सप्लाई की जानी थी कभी की ही नहीं गई, बावजूद भुगतान पूरा किया गया।