सुप्रीम कोर्ट ने बिहार न्यायिक सेवा परीक्षा से जुड़े एक मामले में काफी अहम फैसला सुनाया है. अदालत ने इंटरव्यू में न्यूनतम अंक को जरुरी बताया है. सर्वोच्च अदालत में ये मामला ‘अभिमीत सिन्हा और अन्य बनाम पटना हाईकोर्ट और अन्य’ नाम से सुना गया. जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने इंटरव्यू के हवाले से परीक्षा पद्धति को दुरुस्त पाया.
दरअसल ये पूरा मामला साल 2015 का है. बिहार में जिला अदालतों में जजों की भर्ती के लिए परीक्षा हुई थी. 99 पदों पर बहाली थी. पर परीक्षा की पूरी प्रक्रिया के बाद केवल 9 लोग सलेक्ट हुए. ये बात उन छात्रों को नागवार गुजरी जिनके लिखित में तो अच्छे अंक आए मगर इंटरव्यू में कम मार्क्स होने की वजह से उन्हें सफल छात्रों की लिस्ट में जगह नहीं मिली.
अनुच्छेद 14 के उल्लघंन का हवाला!
तब लिखित परीक्षा के बाद 69 उम्मीदवार इंटरव्यू के लिए सलेक्ट हुए थे. इन 69 में से 60 उम्मीदवारों को लिखित परीक्षा में ठीक अंक मिला था लेकिन इंटरव्यू में न्यूनतम मार्क्स नहीं हासिल करने की वजह से ये परीक्षा पास नहीं कर पाए थे. इसके बाद असफल छात्रों ने पटना हाईकोर्ट में दरख्वास्त दी और दावा किया कि इंटरव्यू में न्यूनतम अंक लाने की व्यवस्था संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लघंन है, लिहाजा उन्हें लिखित परीक्षा के अंक के आधार पर नियुक्त किया जाना चाहिए.
के. जे. शेट्टी कमिशन का जिक्र
सुप्रीम कोर्ट ने अब अपने फैसले में माना है कि इंटरव्यू में न्यूनतम मार्क्स लाने की व्यवस्था अनुच्छेद 14 का किसी भी तरह कोई उल्लंघन नहीं करती, इसका काम बेहतर उम्मीदवार को सलेक्ट करना है. इस तरह कोर्ट ने परीक्षा पद्धति को सही ठहराते हुए इस दलील को भी खारिज कर दिया है कि इंटरव्यू में न्यूनतम अंक लाने वाला नियम जस्टिस के. जे. शेट्टी कमिशन के सुझावों से मेल नहीं खाती.
जस्टिस केजे शेट्टी कमिशन मार्च 1996 में बनी थी. सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद ये वजूद में आई थी. इस कमिशन का काम देश भर के न्यायिक अधिकारियों के वेतन और उनकी सेवा से जुड़ी शर्तों को समझना-बूझना था. साथ ही, अपनी तरफ से कुछ जरुरी सुझाव देना था.
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