जयपुर: राजस्थान हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को कड़े निर्देश देते हुए कहा है कि राज्य में बाल विवाह पर पूरी तरह से रोक लगाई जाए. अदालत ने कहा कि अगर किसी गांव में बाल विवाह होता है, तो उस गांव के सरपंच और पंचायत सदस्यों को जिम्मेदार ठहराया जाएगा. यह आदेश अक्षय तृतीया के त्योहार से पहले बुधवार को आया है, क्योंकि राजस्थान में अक्षय तृतीया पर बड़ी संख्या में बाल विवाह कराए जाते हैं.
जनहित याचिका पर सुनवाई
हाई कोर्ट की खंडपीठ बाल विवाह रोकने के लिए अदालत के हस्तक्षेप की मांग वाली एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. अदालत ने कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के बावजूद, राज्य में बाल विवाह अभी भी हो रहे हैं.
अदालत ने कहा कि अधिकारियों के प्रयासों के कारण बाल विवाह की संख्या में कमी आई है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है. याचिकाकर्ताओं के वकील आरपी सिंह ने अदालत को एक सूची भी प्रदान की, जिसमें अक्षय तृतीया के आसपास राज्य में होने वाले बाल विवाह का विवरण दिया गया था.
सरपंच और पंच की ज़िम्मेदारी
राजस्थान पंचायती राज नियम 1996 के अनुसार, सरपंच का कर्तव्य है कि वह बाल विवाह को रोके. इसलिए, अंतरिम उपाय के रूप में, अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह राज्य में हुए बाल विवाह को रोकने के लिए की गई जाँच के संबंध में रिपोर्ट मांगे और जनहित याचिका के साथ संलग्न सूची पर भी नज़र रखे.
अदालत ने अपने आदेश में कहा, “प्रतिवादी यह भी सुनिश्चित करें कि राज्य में कोई बाल विवाह न हो. सरपंच और पंच को संवेदनशील बनाया जाए और उन्हें सूचित किया जाए कि यदि वे बाल विवाह को रोकने में लापरवाही बरतते हैं तो उन्हें बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 की धारा 11 के तहत जिम्मेदार ठहराया जाएगा.”
बाल विवाह के खिलाफ कड़ा संदेश
राजस्थान हाई कोर्ट का यह आदेश बाल विवाह के खिलाफ एक कड़ा संदेश है. इससे बाल विवाह रोकने में मदद मिलेगी और बच्चों के अधिकारों की रक्षा होगी.
[metaslider id="347522"]