बिलासपुर,27 फरवरी । कानन पेंडारी जू पर्यटक जल्द ही गोराल (पहाड़ी बकरा-बकरी) देख पाएंगे। केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण इसकी अनुमति दे दी है। गोराल के बदले में कानन प्रबंधन चार चौसिंगा देने का निर्णय लिया है। होली पर्व के पहले वन्य प्राणियों की अदला-बदली की इस प्रक्रिया को पूरी की जाएगी। गोराल लेकर दिल्ली जू का दल बिलासपुर पहुंचेगा। चौसिंगा की डिमांड दिल्ली जू से कानन पेंडारी जू प्रबंधन को आया था। दरअसल कानन में यह प्रजाति सरप्लस है। यहीं कारण ही लगातार जहां-जहां से मांग आ रही है, उन्हें सहमति दे दी जा रही है। चौसिंगा के बदले कानन प्रबंधन ने दिल्ली से गोराल मांगा। वर्तमान में यह प्रजाति कम है। इनका कुनबा भी नहीं बढ़ रहा है। इसे देखते हुए कानन प्रबंधन उनके समक्ष यह मांग रखी थी, जिस पर उन्होंने सहजता के साथ स्वीकृति दे दी। लेकिन, दो जू प्रबंधन के बीच आपसी समझौते के बाद वन्य प्राणियों की अदला-बदली नहीं की जा सकती है। इसके लिए केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण से अनुमति लेनी होती है।
यही कारण दोनों जू ने आपसी सहमति के साथ अदला-बदली के लिए स्वीकृति मांगी। जिस पर प्राधिकरण की समिति ने सहमति की मुहर लगा दी है। इसके साथ दोनों जू को इसकी जानकारी भी भेजी है। अब दोनों जू प्रबंधन आपस में एक तिथि निर्धारित करेंगे। इस तिथि में वन्य प्राणियों की अदला-बदली की जाएगी। कानन प्रबंधन का कहना है कि दिल्ली जू का दल ही गोराल लेकर बिलासपुर आएगा। प्रयास किया जाएगा कि यह प्रक्रिया होली पर्व के पहले ही पूरी कर ली जाए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो पर्व के बाद इसे पूरा किया जाएगा। मालूम हो कि देशभर के जू अपने-अपने जू के सरप्लस वन्य प्राणियों की रिपोर्ट प्राधिकरण को भेजते हैं। इस रिपोर्ट को वहां के डायरेक्टर आसानी से देख सकते हैं। इसके बाद जिन्हें जिन वन्य प्राणियों की आवश्यकता है, उनसे डिमांड कर सकते हैं। चौसिंगा की डिमांड भी दिल्ली जू प्रबंधन ने यही देखकर भेजी है।
संरक्षण व वंशवृद्धि है मुख्य वजह
कानन पेंडारी जू में केवल तीन गोराल हैं। इनका कुनबा नहीं बढ़ पा रहा है। संख्या बढ़ाने के लिए दिल्ली जू से मांग की गई है। एक वजह संरक्षण भी है। दरअसल केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण ने पहाड़ी बकरे की घटती संख्या को देखते हुए वर्ष 2015 में आदेश जारी कर संरक्षण व वंशवृद्धि का आदेश देशभर के चिड़ियाघर को जारी किया था। इस दौरान कानन में प्रयास किया गया और दिल्ली से ही जोड़े में पहाड़ी बकरा व बकरी लाए गए थे। वर्तमान में संख्या बेहद कम है। इसलिए दोबारा वहीं से गोराल लाए जा रहे हैं।
[metaslider id="347522"]