हसदेव के आदिवासियों ने पीईकेबी खदान में नौकरी के लिए किया चक्काजाम

एक तरफ स्थानीय युवा खदान में नौकरी पाने धरने पर बैठे, तो दूसरी तरफ बाहरी एनजीओ द्वारा खदान बंद करने की वकालत ?

उदयपुर; 17 फरवरी 2024 I सरगुजा जिले के उदयपुर ब्लॉक में स्थित राजस्थान सरकार की परसा ईस्ट कांता बासन (पीईकेबी) खदान में हसदेव के आदिवासी युवाओं ने शनिवार को चक्का जाम किया। पीईकेबी खदान के प्रभावित गांव परसा में रहने वाले 50 से अधिक युवाओं ने 17 फरवरी 2024 की अलसुबह से खदान में जाने वाले मुख्य मार्ग में बैठकर धरना दिया और उन्हें जल्द से जल्द नौकरी दिलाने की मांग पर अड़े रहे। स्थिति को सम्भालने उदयपुर के तहसीलदार और पुलिस मौके में मौजूद थी।

दरअसल राजस्थान सरकार की सरगुजा में स्थित एक मात्र पीईकेबी खदान राजनीतिकरण और बाहरी एनजीओ के निज स्वार्थवस जमीन की अनुपलबद्धता के कारण कई महीनों से बंद पड़ी है। अब जिला प्रशासन की अनुमति के बाद खदान के कुछ हिस्से में जमीन मिलने के बाद खनन कार्य शुरू होने की कवायद जारी है। जिसकी जानकारी मिलते ही स्थानीय युवाओं ने एक बार फिर खदान में नौकरी की आस में खदान के गेट के पास पहुँचकर नौकरी दिलाने की आवाज बुलंद कर दी है। इन स्थानीय आदिवासी युवाओं में ज्यादातर गोंड, बैगा, पण्डों इत्यादि प्रजाति के युवा मौजूद थे। इस दौरान जिला प्रबंधन ने उनकी बातों को खदान प्रबंधन तक पहुंचाते हुए जल्द ही उचित निर्णय लेने की बात कही।

वहीं खदान प्रबंधन का कहना है कि वर्तमान में यहां सिर्फ पीईकेबी खदान में ही उत्पादन कार्य पिछले 10 वर्षों से जारी था जिससे 5000 से ज्यादा लोगों को रोजी-रोटी चल रही थी। लेकिन जमीन उपलब्ध ना होने से कई महीनों पहले इसे बंद करना पड़ा। इसकी वजह से इन सभी के रोजगार में फर्क तो पड़ा ही, साथ ही क्षेत्र में चल रहे विकास कार्य भी प्रभावित हुआ है। अभी हमें कुछ जमीन प्रशासन से प्राप्त हुई है जिसमें खनन कार्य की तैयारी शुरू की जा रही है। आज प्रभावित गांव परसा के आदिवासी युवाओं द्वारा नौकरी के पाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन अकेली पीईकेबी खदान से ही इन सभी को नौकरी नहीं दी जा सकती है। इसके लिए यहां की अन्य दो खदानों परसा कोल ब्लॉक और केते एक्सटेंसन ब्लॉक जिससे बीस हजार से ज्यादा लोगों को नौकरी मिल सकती है, को भी खोलने की वकालत इन सभी युवाओं को केंद्र और राज्य सरकार से करनी चाहिए।

ज्ञात हो कि पीईकेबी खदान के आसपास के गाँवों में गरीबी और बेरोजगारी की समस्या विकराल है। युवाओं के पास रोजगार के विकल्प सीमित हैं। ऐसे में खदान उनके लिए उम्मीद की किरण बनकर आई है। वे खदान में विभिन्न पदों पर काम करके अपने जीवन को संवारना चाहते हैं। नौकरी की मांग के लिए बैठे खेलसाय सिंह ने बताया कि “खदान हमें आर्थिक रूप से मजबूत बनाएगी। इससे हम अपने परिवार का बेहतर ख्याल रख सकेंगे और अपने सपनों को पूरा कर पाएंगे।” वहीं अब धीरे-धीरे स्थानीय आदिवासी समुदाय को बाहरी विरोध का असली मकसद समझ में आने लगा है। वे जान गए हैं कि खदान उनके विकास का रास्ता खोल सकती है। अब आदिवासी युवा और ग्रामीण खुलकर सामने आ रहे हैं और खदान के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। “ये नेता हमारी बात नहीं सुनते। वे सिर्फ अपना मतलब साधना चाहते हैं। मगर हम जानते हैं कि खदान में काम मिलने से हमारा जीवन बदल जाएगा।” एक आदिवासी युवा खिलेश्वर ने कहा।

उल्लेखनीय है की हसदेव क्षेत्र में खुल रही इन्हीं खदानों के विरोध में राजनीतिकरण करते हुए कुछ बाहरी एनजीओ द्वारा कई दिनों से प्रदर्शन किया जा रहा है। यहां तक की इन विरोधियों ने हालही में सरगुजा के लिए गुजर रही काँग्रेस की न्याय यात्रा में खदान के विरोध में नेता राहुल गांधी से मुलाकात भी किया। अब अगर इन संगठनों की माने तो वे इस विरोध को स्थानीय आदिवासियों की मांग बता रहे हैं। तो फिर खदान में नौकरी की मांग के लिए धरने पर बैठे ये सभी युवा क्या बाहरी लोग हैं ? या ये लोग आदिवासी नहीं हैं ?

पीईकेबी खदान कंपनी के सामाजिक सरोकारों और विकास कार्यों ने आदिवासियों का दिल जीता है। कंपनी शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका, बुनियादी ढांचा विकास और कौशल विकास सहित सभी क्षेत्रों में मदद कर रही है। खदान में काम करने वाले अपने आदिवासी साथियों और उनके परिवारों के विकास को देखकर बाकी युवाओं में भी काफी उत्साह और आत्मविश्वास जागा है। वे भी अपने सपनों को पूरा करना चाहते हैं। यहां के महिला स्वसहायता समूह की अमिता सिंह आर्मो ने बताया, “मेरे पति खदान में काम करते हैं। उनकी कमाई से हमारे बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल पा रही है। गाँव में भी पहले से काफी बदलाव हुए हैं।”

आदिवासी क्षेत्रों के विकास के लिए रोजगार के अवसर पैदा करना सबसे ज़रूरी है। क्षेत्र की ये सभी खदानें स्थानीय लोगों को रोजगार और विकास का एक सुनहरा अवसर प्रदान कर सकती है। इससे न केवल आदिवासी युवाओं को आर्थिक सशक्तीकरण मिलेगा, बल्कि पूरे क्षेत्र का विकास होगा। शिक्षा, स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे में भी सुधार होगा।