महानदी और जोंक नदियों के संगम पर बलौदाबाजार से 40 किमी, बिलासपुर से 80 किमी दूर गिरौदपुरी धाम स्थित है,छत्तीसगढ़ का सबसे पूजनीय तीर्थ स्थल है।यह गिरौधपुरी जैतखाम सतनामी समुदाय के लोगों के लिए सबसेबड़ा धार्मिक स्थल है। पूरे साल भक्तों का आना जारी रहता है पर फागुन पंचमी में हर साल तीन दिवसीय मेले के दौरान लाखों की संख्या में लोग गिरौधपुरी आते हैं। रायपुर से करीब 145 किलो मीटर दूर बलौदा बाजार जिले में स्थित है गिरौदपुरी। यहां बना 243 फीट ऊंचा जैतखाम कुतुब मीनार (237.8 फीट)से लगभग छः फीट ऊंचा है,आधुनिक आर्किटेक्चर का बेजोड़ नमूना है। गिरौदपुरी में समाज सुधारक,सतनाम पंथ के प्रवर्तक गुरु घासी दास की जन्मभूमि और तपोभूमि है।यहां लगभग ढाई सौ साल पहले 18 दिसम्बर 1756 को उनका जन्म हुआ था।
उन्होंने इसी गांव केकरीब छाता पहाड़ में कठिन तपस्या की और आध्यात्मिक ज्ञान के जरिये देश और दुनिया को सत्य, अहिंसा,करुणा,परोपकार, दया जैसे सर्वश्रेष्ठ मानवीय मूल्यों की शिक्षा देकर धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश दिया था। यहां निर्मित जैत खाम आधुनिकइंजीनियरिंग का बेहतरीन नमूना है। इसका निर्माण आईआईटी रूड़की के वरिष्ठ अनुभवी विशेषज्ञों द्वारा बनाए गए नक्शे, डिजाइन के अनुसार किया गया है। यह भूकम्प रोधी, अग्निरोधी है। जैतखाम के आधार का व्यास 60 मीटर है। इसके ग्राउंडफ्लोर पर दो हजार श्रद्धालुओं की बैठक क्षमता वाला एक विशाल सभागृह भी है। पहली मंजिल से आखिरी मंजिल तक इस जैतखाम में कुल सात बाल्कनियां हैं। सबसे ऊपर की बाल्कनी में 200 लोगों के लिए एक साथ खड़े होकर पूजा अर्चना करने की पर्याप्त जगह है। जैतखाम में नीचे से ऊपर जाने के लिए सर्पाकार सीढ़ियां बनाई गई हैं।
कुतुब मीनार
कुछ इतिहासकारों के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कुतुब मीनार का निर्माण कुतुबुददीन ऐबक ने सन 1193 ईस्वी में शुरू करवाया था,लेकिन निर्माण पूरा होने से पहले उनकी मौत हो गयी।उसके बाद इल्तुतमिश ने दिल्ली के शासक के रूप में इसके निर्माण को आगे बढ़ाया और इसमें तीन मंजिले जुड़वाईं।कुतुब मीनार में किसी दुर्घटना के बाद सन 1386 ईस्वी में पुनर्निर्माण फिरोज शाह तुगलक के समय किया गया।इतिहास कारों के मुताबिक कुतुब मीनार का नाम कुतुबुद्दीन ऐबक के नाम पर रखा गया है,इतिहासकारों का यह कहना है कि नामकरण बगदाद के संत कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी के नाम पर हुआ,जो इल्तुतमिश के समय भारत आये थे, इल्तुतमिश उनसे काफी प्रभावित थे।
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