कोरबा, 15 जनवरी। कोरबा जिले के कटघोरा जनपद पंचायत अंतर्गत जनपद की जमीन को लीज पर निष्पादित करने का हाई प्रोफाइल हो चुका मामला इन दिनों काफी सुर्खियों में है। लगातार आरोप-प्रत्यारोप के बीच अब यह मामला कटघोरा के न्यायालय में पहुंच गया है। जमीन लीज पर लेने वालों के द्वारा इस मामले को न्यायालय में लाया गया है और अब इन्हें फैसले का इंतजार है। वहीं दूसरी ओर मामला न्यायालय में विचाराधीन होने के बावजूद इस पूरे प्रकरण में शिकवा- शिकायतों का दौर भी चल रहा है लेकिन मामला न्यायालय में लंबित होने के कारण अब किसी भी तरह के शिकवा शिकायत का औचित्य नहीं रह जाता। दूसरी तरफ अनर्गल शिकायतों से परेशान और भयादोहन की आशंका व्यक्त करते हुए संबंधितों ने शासन से लेकर प्रशासन तक अपनी बात रखने का मन बनाया है और वह इस हेतु आवेदन सौंपने वाले भी हैं। इधर जनपद ने विवादों से परे रहकर किराया भी लेना शुरू कर दिया है।
अपनाई गई प्रक्रिया, पहले भी दिए हैं लीज पर
इस मामले की शुरुआत 2019 से हुई। मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत कटघोरा द्वारा दिनांक 05/10/2019 को आम ईश्तहार का प्रकाशन किया गया कि पुराना जनपद सभा भवन की भूमि खसरा नंबर 234 बस स्टैण्ड कटघोरा एवं जनपद पंचायत कटघोरा के बेसिक स्कूल के सामने की भूमि खसरा नंबर 267/9 को 30 साल के लिए विभिन्न साइज के प्लाट लीज (भू-भाटक) में देना है, अतः जो इच्छुक व्यक्ति बाजार भू-भाटक बाजार दर लेना चाहते हैं वे आवेदन दे सकते हैं। इसके बाद उक्त व्यवसायिक भूमि को पट्टे पर लेने की प्रकिया आरंभ की एवं 250000/- में 30 साल की अवधि के लिए इच्छुक 10 लोगों को आंबटित कर उसकी डीड दिनांक 21/10/2019 को निष्पादित की गई। अब तो इनका किराया भी जमा होना शुरू हो गया है। बताते चलें कि लीज पर देने का यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी जनपद पंचायत कटघोरा चौक की जमीन को वर्ष 1989 से 2006 तक आदर्श विद्या मंदिर कटघोरा को लीज पर दिया गया था। तत्कालीन जनपद सीईओ आईएएस विकासशील ने चौक में वर्ष 1999 में 6 दुकानों को पहले ही लीज में दिया है। खसरा नंबर 234 में जनपद द्वारा विद्यालय नवोदय ज्ञान मंदिर को लीज पर दिया गया है जो आज भी संचालित है।
तबसे लेकर आज तक लीज लेने वाले परेशान
जनपद की जमीन को लीज पर देने का यह मामला उस समय से ही सुर्खियों में रहा और शिकवा शिकायतों का दौर भी शुरू हो गया। प्रारंभिक तौर पर इस मामले को संज्ञान में लेते हुए कलेक्टर ने अपने न्यायालय में पूरी लीज को निरस्त कर दिया। कलेक्टर के द्वारा किसी भी पक्ष को सुने बगैर लिए गए इस निर्णय को दूषित बताते हुए इसके खिलाफ कमिश्नरी कोर्ट में आवेदन लगाया गया जहां कलेक्टर के आदेश को कई बिंदुओं पर दूषित करार देते हुए कलेक्टर के आदेश को खारिज कर दिया गया। यहां से निराकरण के बाद लीज लेने वालों ने चैन की सांस ली तो फिर कटघोरा तहसील में मामला पहुंचा जिस पर न्यायालय तहसीलदार द्वारा दिए गए स्थगन के खिलाफ बिलासपुर हाईकोर्ट में अपील प्रस्तुत की गई। हाई कोर्ट ने पूरा का पूरा मामला निराकृत करते हुए लीज लेने वालों को राहत प्रदान की। अब पुनः शिकवा शिकायत एसडीम कटघोरा के समक्ष की गई जिस पर पिछले दिनों चुनाव के दौरान आचार संहिता का हवाला देते हुए एसडीएम ने तहसीलदार के मार्फत स्थगन आदेश जारी कर पालन करने के निर्देश दिए। अब लीज लेने वालों ने इसके विरुद्ध कटघोरा के व्यवहार न्यायालय में सिविल वाद प्रस्तुत कर दिया है। इनका कहना है कि न्यायालय से जो भी फैसला होगा वह उन्हें स्वीकार होगा किंतु बेवजह की शिकवा शिकायत से काफी परेशान हैं और उनका पैसा भी फंसा हुआ है।
मानसिक तौर पर हो रहे परेशान
जनपद पंचायत, ग्राम पंचायत की भूमि के उपयोग का अधिकार सुरक्षित रखा गया है और इसके तहत निर्णय लेकर उसका उपयोग सुनिश्चित किया जा सकता है, इस आधार पर कटघोरा जनपद पंचायत में जनपद सदस्यों की बैठक में निर्णय लेने और सब की सहमति के बाद जनपद की जमीन लीज पर देने की कार्रवाई तत्कालीन सीएमओ के द्वारा की गई। लीज लेने वालों का कहना है कि जिस समय जनपद के द्वारा इश्तिहार का प्रकाशन कराया गया, आपत्ति उस समय करनी चाहिए थी लेकिन ऐसा ना कर पूरी प्रक्रिया संपन्न होने के बाद की जा रही शिकायत सिर्फ और सिर्फ भयादोहन की मंशा और लीज लेने वालों को परेशान करने की नीयत जाहिर कर रही है। जमीन पर दुकानों का निर्माण करने के साथ ही इसके किराए की रसीद भी कटने लगी है। सारा काम विधिवत होने के बाद भी जबकि लाखों रुपए इसमें लगा चुके हैं, तब बेवजह परेशान किए जाने से मानसिक तौर पर परेशान हो रहे हैं। इन्होंने कहा है कि वह मुख्यमंत्री, कलेक्टर, एसपी और संबंधित अधिकारियों के समक्ष बेवजह परेशान करने वालों और भयादोहन की मानसिकता रखने वालों के खिलाफ शिकायत करने का मन बना चुके हैं और एक-दो दिन में शिकायत कर दी जाएगी। लीज लेने वालों का कहना है कि मामला न्यायालय में विचाराधीन है और इस तथ्य को छुपाते हुए शासन-प्रशासन को गुमराह करने का काम भी हो रहा है। किसी भी तरह का कदम उठाने से पहले न्यायालय के फैसले का इंतजार करना जरूरी है।
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