रायपुर, 14 जनवरी । अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति के अध्यक्ष डॉ दिनेश मिश्र ने कहा कि ग्रामीण अंचल से इलाज के नाम पर बच्चों को गर्म सलाख और अगरबत्ती से दागना के मामले सामने आए है। जबकि यह अंधविश्वास है, ऐसे बैगाओं पर कार्यवाही होना चाहिए। डॉ दिनेश मिश्र ने बताया कुछ दिनों से मध्यप्रदेश के शहडोल, उमरिया के ग्रामीण अंचल से बच्चों के बीमार होने पर गर्म सलाख से दागने के मामले सामने आए हैं जिनमें से कुछ बच्चों की मौत तक हो चुकी है। इसके पहले छत्तीसगढ के महासमुंद और देवभोग से भी पीलिया की बीमारी के कारण नवजात शिशुओं को गर्म सलाख जिले के से दागने की कुछ घटनाऐं सामने आई थी, जिनमें उन बच्चों की भी मृत्यु हो गई थी।
डॉ दिनेश मिश्र ने कहा नवजात शिशुओं को दागने की घटनाएं अकसर सामने आती है। ग्रामीण शिशु के दूध न पीने, अत्यधिक रोने, बुखार, दस्त, पीलिया होने, जैसी समस्याओं के निदान के लिए दागे जाने के समाचार अक्सर मिलते हैं। इससे शिशु की तबियत और अधिक खराब हो जाती है, और कई बार समय पर उचित चिकित्सा सहायता उपलब्ध न होने पर उनकी मृत्यु भी हो जाती है। ग्रामीण एवम सुदूर आदिवासी अंचल से से भी कुछ समय पहले निमोनिया पीलिया के इलाज के लिए बैगाओं द्वारा सौ से अधिक बच्चों को गर्म चूड़ी से दागने की खबर आई थी, जिसमें अनेक बच्चों की मृत्यु घाव, संक्रमण बढ़ने से हुई थी। लोहे के हंसिये से दागने के भी अनेक मामले आते रहते हैं जबकि यह सब अवैज्ञानिक, तथा उचित नहीं है।
डॉ मिश्र ने कहा कुछ नवजात शिशुओं में प्रारंभिक दिनों में कुछ समस्याएं आती है, सर्दी, खांसी, बुखार, निमोनिया, रात में जागना, बार बार रोना, गैस, अपच, पेट दर्द, पीलिया, बुखार, उल्टी करना, पर इन सब के लिए उस मासूम शिशु का उचित जांच और इलाज किसी प्रशिक्षित चिकित्सक से करवाना चाहिए। बीमारियों के अलग अलग कारण होते हैं जिनका जाँच-परीक्षण से उपचार होता है। स्व उपचार, झाड़ फूँक, सलाख, गर्म अगरबत्ती से दागने, गण्डा, ताबीज पहनाने, नजर उतारने आदि से बीमार को बीमारी से निजात कैसे दिलायी जा सकती है? बल्कि बच्चा और बीमार हो सकता है, उसकी हालत बिगड़ सकती है। ग्रामीणों को इस प्रकार किसी भी अंधविश्वास में नहीं पड़ना चाहिए बल्कि अपने आस पास के किसी योग्य व्यक्ति का परामर्श लेना चाहिए।