पटना, 7 जनवरी : बिहार में शराबबंदी कानून लागू कर सरकार भले ही खुद अपनी पीठ थपथपा रही हो, लेकिन शराबबंदी कानून के बाद अन्य नशीले पदार्थों की बिक्री बढ़ने की बात भी कही जा रही है. वैसे, शराबबंदी कानून कितनी सफल है, इसका संकेत इसी से लगता है कि विपक्ष इसकी असफलता को लेकर बराबर आरोप लगाता रहा है. कहा जा रहा है कि नशे की पुड़िया शहरों में ही नहीं गांव तक पहुंच रही है. ऐसा नहीं कि पुलिस इसे लेकर सजग नहीं है, लेकिन इसके कोरियर के रूप में महिलाओं और बच्चों की संलिप्तता से पुलिस की परेशानी बढ़ जा रही है.
दरअसल, नशे के इस अंधे कुएं में ऐसे लोग भी पहुंच जा रहे हैं जो गांव से कुछ करने की तमन्ना लेकर राजधानी पटना पहुंचे थे. पटना के नशा मुक्ति केंद्रों में ऐसे कई लोग मिल जाएंगे, जिसे न चाहते हुए भी इसमें धकेला गया है. जब एक बार लत लग जाए तो फिर वहां से निकलना मुश्किल है. नशा मुक्ति केंद्र में ऐसे कई शिकार मिल जायेंगे जिनकी आयु 14 से 18 साल के बीच हैं. एक छात्र के रूप में कोरियर बनने पहुंचा 15 वर्षीय छात्र ने शुरू में तो सिगरेट के कस लगाने से शुरुआत की, फिर इसी सिगरेट में गांजा की लत लग गई. इस दौरान कई दोस्त बन गए और फिर स्मैक की पुड़िया इसके हाथों तक पहुंचने लगी. जब तक परिजनों को पता चलता तब तक काफी देर हो गई थी.
यह कोई एक छात्र नहीं है जिसकी कहानी ऐसी है. कई लड़कियां भी ऐसे गिरोह के चंगुल में फंस चुकी हैं. बताया जाता है कि गांव-गली नशे के धंधेबाजों ने अब इसमें महिलाओं को शामिल कर लिया है. ऐसी अधिकांश महिलाएं झोपड़पट्टी और मलिन बस्तियों में रहती हैं. इन बस्तियों में नशे का बाजार लगता है. अव्वल तो दृष्टि में आती ही नहीं, पुलिस ने छापा मारा भी तो महिला होने के नाते बच निकलने की पूरी संभावना होती है.
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