कोरबा,19 दिसंबर। रेलवे द्वारा यात्रियों की सुविधा के लिए दिन में चलने वाली एक्सप्रेस ट्रेनों में स्लीपर क्लास की टिकट जारी की जाती थी। स्लीपर टिकट मिलने से यात्री जनरल कोच के बजाए स्लीपर कोच में कम दूरी की यात्रा आसानी से कर पाते थे। यह सुविधा कोविड-19 से पहले तक जारी थी, लेकिन कोविड के बाद से इसे रेलवे प्रशासन ने बंद कर दिया है, जिसके कारण कोरबा से बिलासपुर या रायपुर तक की यात्रा करने वाले यात्रियों एक्सप्रेस ट्रेन की स्लीपर कोच की बजाय जनरल कोच में सफर करने बाध्य होना पड़ता है। जनरल कोच में सीट संख्या कम होने से यात्रियों को राहत नहीं मिल पाती है।
स्लीपर क्लास की टिकट के लिए अधिक किराया देना पड़ता था, इसके बाद भी यात्रियों में उत्साह रहता था। क्योंकि उनके यात्रा सुखद व आरामदायक होती थी। क्योंकि स्लीपर टिकट से दिन यात्रा करने वालों को बैठने के लिए सीट आसानी से मिल जाती थी, जो अब नहीं हो पा रहा है। इस संबंध में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे बिलासपुर के सीनियर डीसीएम (वरिष्ठ मंडल वाणिज्य प्रबंधक) विकास कश्यप से उनके मोबाइल संपर्क करने की कोशिश की गई लेकिन वे उपलब्ध नहीं हो सके। कोरबा रेलवे स्टेशन। 110 रुपए में करते थे बिलासपुर तक की यात्रा स्लीपर टिकट का चार्ज कोरबा से बिलासपुर तक की यात्रा करने पर प्रति व्यक्ति 110 रुपए लिया जाता था, जबकि जनरल टिकट का किराया 50 रुपए था। अभी जनरल टिकट से 50 रुपए में बिलासपुर तक की यात्रा एक्सप्रेस ट्रेन में कर पाते हैं लेकिन स्लीपर टिकट नहीं जारी होता है।
रेलवे प्रशासन को चाहिए कि पूर्व की तरह दिन की एक्सप्रेस ट्रेनों में कोरबा से बिलासपुर, रायपुर व रायपुर से बिलासपुर, कोरबा तक की स्लीपर टिकट जारी की जाए, ताकि यात्रियों को राहत मिले। लिंक एक्सप्रेस, छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस हो या शिवनाथ एक्सप्रेस जनरल बोगी में सफर करने वाले यात्रियों को बिलासपुर या रायपुर तक जाने पर सीट तक नहीं मिलती है। परिवार के साथ सफर करने वाले यात्रियों को ऐसी स्थिति में काफी परेशान होना पड़ता है। स्लीपर टिकट जारी होने से इस तरह की असुविधाओं से यात्रियों का काफी राहत मिल रही थी। इसके लिए लोग चार्ज देने सहज तैयार रहते हैं, बावजूद इसके सुविधा बंद है। रेलवे प्रशासन को भी इससे हो रहा था फायदा लंबी दूरी की अधिकांश ट्रेनों के स्लीपर कोच की सीटें बिलासपुर व रायपुर मंे फुल होती हैं। यही स्थिति रायपुर से कोरबा वापसी में भी रहती है।
स्लीपर टिकट की दर भी जनरल टिकट से कहीं अधिक निर्धारित है। इससे भीड़ से बचने के लिए यात्रियों को राहत मिल रही थी, वहीं रेलवे को टिकट बिक्री से अतिरिक्त आय भी हो रही थी। लंबे समय से इस सुविधा के बंद होने का असर यात्रियों के साथ रेलवे की आय पर भी पड़ रहा है। भ्रष्टाचार: अभी रेलवे नहीं टीटीई की भरती है जेब स्लीपर टिकट जारी नहीं होने का फायदा सीधे सीधे टीटीई को मिलता है। ट्रेनों में सफर के दौरान इनके द्वारा प्रति व्यक्ति 50 या 100 रुपए दूरी के हिसाज लेकर सफर कराया जाता है। यात्रियों द्वारा मांग करने पर भी टिकट नहीं बनाया जाता है। ऐसे में यात्री अपनी यात्रा तो कर लेते हैं लेकिन इसका खामियाजा रेलवे प्रशासन को टिकट से मिलने वाली आय के नुकसान के रूप में उठाना पड़ रहा है।
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