राष्ट्र सर्वोपरि की संस्कृति विकसित करने का धनखड़ ने किया आह्वान

नई दिल्ली । उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राष्ट्र सर्वोपरि की संस्कृति विकसित करने का आह्वान करते हुए कहा है कि महिला आरक्षण से समाज में सकारात्मक परिवर्तन आएगा। श्री धनखड़ ने सोमवार को‌ श्रीमद राजचंद्र जयंती-‘आत्मकल्याण दिवस’ पर अयोजित समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि देश में ऐसा वातावरण और ऐसी संस्कृति विकसित करने की आवश्यकता है जिसमें सभी लोग राष्ट्र को सर्वोपरि रखें।

उन्होंने कहा, हमें भारतीयता में विश्वास करना चाहिए और भारतीय होने पर गर्व करना चाहिए। हमें हमारी ऐतिहासिक उपलब्धियां पर गर्व करना चाहिए। हमने जिस चीज का सपना नहीं देखा था, कभी कल्पना नहीं की थी आज वह सब जमीनी हकीकत है।

इस अवसर पर उपराष्ट्रपति ने श्रीमद राजचंद्र जी की प्रतिमा का अनावरण भी किया। श्री धनखड़ ने कहा, पिछली शताब्दी के महापुरुष महात्मा गांधी थे और इस शताब्दी के युग पुरुष नरेंद्र मोदी हैं, महात्मा गांधी ने सत्याग्रह एवं अहिंसा से हमें अंग्रेजों की गुलामी से छुटकारा दिलाया था तथा भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी देश को उस रास्ते पर लाए हैं जिस रास्ते पर हम सदियों से देश को देखना चाहते थे।

उन्होंने कहा कि इन दोनों महानुभावों में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में एक समानता है तथा वह समानता यह है कि ये दोनों ही लोग श्री राजचंद्र जी का हृदय से सम्मान करते हैं। राजचंद्र जी जितना महत्वपूर्ण व्यक्तित्व इतिहास में मिलना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि भारत सदियों से महापुरुषों की जननी रहा है। भारत विश्व संस्कृति का केंद्र है। भारत की सभ्यता 5000 वर्षों से भी प्राचीन है। दुनिया में ऐसा कोई देश नहीं है।

उन्होंने कहा कि हमारी ताकत हमारा आध्यात्मिक ज्ञान और संस्कृतिक है। दुनिया के महान देशों के लोग शांति की खोज में हमारे देश में आते हैं। भारत सदियों से संस्कृति और सभ्यतागत लोकाचार का केंद्रबिंदु रहा है। उन्होंने कहा पृथ्वी सिर्फ मनुष्य मात्र के लिए नहीं है। यह धरा सभी प्राणियों के लिए है। वसुधैव कुटुंबकम का धेय वाक्य एक पृथ्वी एक परिवार एक भविष्य इसे आत्मसात करता है।

उन्होंने कहा कि महिला आरक्षण से समाज में सकारात्मक परिवर्तन आएगा उन्हें उनका अधिकार मिलेगा। श्री धनखड़ ने ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन करने वालों को आगाह करते हुए कहा कि देश में बदलाव शिक्षा समानता और अच्छे व्यवहार से आता है। उन्होने कहा कि यदि सड़क पर हमारा आचरण कानून के अनुरूप होगा तो दुनिया देखेगी कि भारत बदल गया है।

उन्होंने कहा जो लोकतंत्र के मंदिर बहस, चर्चा और विचार विमर्श की परंपराओं से फलने फूलने चाहिए लेकिन वहां शोर-शराबा और व्यवधान होता है। उपराष्ट्रपति ने संविधान सभा का जिक्र करते हुए कहा, जब संविधान का निर्माण हुआ संविधान सभा में तीन साल तक बहस चली, चर्चा हुई वहां बहुत से विभाजनकारी मुद्दे थे लेकिन किसी भी प्रकार का शोर-शराबा नहीं हुआ, हंगामा नहीं हुआ कोई वेल में नहीं आया, किसी ने प्लेकार्ड नहीं दिखाए।

उन्होने कहा कि जब देश या कोई व्यक्ति बहुत आगे जाता है तो कुछ लोग खिलाफ में उतर आते हैं, कुछ शक्तियां हमारे देश के विकास को रोकते हैं, कुछ शक्तियां हमारे देश के विकास को सहन नहीं कर पा रही हैं। जब भी देश में कोई अच्छा काम होता है वह एक दूसरे ही ‘मोड’ में चले जाते हैं।‌ उन्होंने कहा कि देश को इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है।

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