कालाहांडी, ओडिशा राज्य का एक ऐसा जिला जो एक समय पर शायद दुनिया के नक्शे पर कोई अस्तित्व ही नहीं रखता था

कालाहांडी, ओडिशा राज्य का एक ऐसा जिला जो एक समय पर शायद दुनिया के नक्शे पर कोई अस्तित्व ही नहीं रखता था। एक ऐसी जगह जहां 90 पर्सेंट जनता गरीबी की रेखा से नीचे जी रही थी।

1985 में, ओडिशा के अकाल प्रभावित कालाहांडी जिले के दौरे पर, तत्कालीन प्रधानमंत्री ने कहा था कि सरकार के खर्च किए गए एक रुपये में से केवल 15 पैसे ही बेनेफिशियरी तक पहुंचते हैं। नवीन पटनायक जी के पिता और ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री बीजू पटनायक जी ने कालाहांडी को विकसित करने का सपना देखा। एक दिन, उन्होंने मुझे बुलाया और कहा कि कालाहांडी के हालात बदलने होंगे। उनकी इच्छा थी कि हम कालाहांडी में एल्यूमीनियम का प्रोडक्शन करने के लिए एक इंडस्ट्री सेट अप करें।

सच बताऊं! मुझे लगता नहीं था, कि मैं वहां एक बड़ी इंडस्ट्री शुरू कर पाऊंगा। लेकिन, हमने उनके सपने को अपना संकल्प बनाया। मैं खुद कालाहांडी गया और मैंने देखा कि लोगों के पास शरीर ढँकने को कपड़े भी नहीं थे। वे बाहरी दुनिया से पूरी तरह से कटे हुए थे। पत्तों का तन ढकने के लिए और पेड़ की छाल को पेट भरने के लिए काम में लिया जा रहा था। मानवता का ये हाल देख के किसी का भी दिल सहम जाए। उसपे से कई वेलविशर्स ने मुझे डराया भी कि वो नक्सलियों का इलाका है, कई तरह के खतरे हैं। मुझे डर तो लगा था लेकिन, अंदर से एक आवाज़ भी आयी। लाखों करोड़ों में ईश्वर ने मुझे चुना है एक जिले को नया जीवन दान देने के लिए। मैं हार नहीं सकता…

मुझे पता था कि वहाँ बॉक्साइट जैसे नेचुरल रिसोर्स मौजूद हैं। हमने वहाँ बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने और कालाहांडी को मैनस्ट्रीम से जोड़ने के लिए इंडस्ट्री सेट अप करने का बीड़ा उठाया।

भारत में इस इलाके में इन्वेस्टमेंट करने के लिए उस समय कोई इन्वेस्टर तैयार नहीं था। मैंने ग्लोबल इन्वेस्टर्स को मनाया और एक अरब डॉलर से शुरुआत की। हमने रेल ट्रैक बिछाने, कनेक्टिविटी के लिए रोड नेटवर्क और एयरपोर्ट डेवलप करने के लिए लैंड एक्वायर की। सरकार और प्राइवेट ओनर से लैंड एक्वायर करने के बाद उस समय ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक जी के साथ इस प्रोजेक्ट का फाउंडेशन स्टोन रखा गया। हम वर्ल्ड क्लास टेक्नोलॉजी लाए, ऑस्ट्रेलिया में पर्थ में इंजीनियरिंग कंपनी स्थापित की, लोगों को रिक्रूट किया और दुनिया की सबसे बड़ी एल्यूमिना रिफाइनरी का कंस्ट्रक्शन शुरू किया। डेढ़ साल तक बाहरी दुनिया को पता नहीं चल रहा था कि हम क्या कर रहे हैं। तब तक सभी का सहयोग इस प्रोजेक्ट को मिला। 21 हज़ार लोकल लोगों को जॉब्स मिले। ज़्यादा से ज़्यादा लोकल लोग डेवलपमेंट का हिस्सा बन सकें, इसलिए 3 शिफ्ट में काम लिया जाता था। यकीन मानिए, बहुतों ने तो भारत के करेंसी नोटों को पहली बार अपने हाथ में पकड़ा था। आज भी वो चेहरे मेरी आँखों के सामने घूमते हैं। वो दर्द भी और वो संतोष भी।

लेकिन, जब ये खबर फैली तो उसके बाद इंग्लैंड के चर्च सहित दुनिया के कई एनजीओ ने जैसे हमला करना शुरू कर दिया। उनका टारगेट यही था कि किसी तरह ये प्लांट नहीं बनना चाहिए। पोलिटिकल पार्टीज को इन्फ्लुएंस किया गया कि वो इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ने से रोकें। दुनिया चाहती थी कि भारत रॉ मटेरियल और तैयार उत्पाद खरीदे, न कि भारत में उनका प्रोडक्शन करे।

हमने सभी रूल्स और रेगुलेशंस का सख्ती से पालन किया है, लेकिन आधे प्लांट के निर्माण और लगभग 25 हजार स्थानीय लोगों को रोजगार मिलने के बाद कंस्ट्रक्शन रोक दिया गया। लोकल लोग बहुत इन्नोसेंट थे और कई राजनीतिक ग्रुप और NGO अपना एजेंडा चला रहे थे ताकि भारत का विकास न हो सके। सभी से संघर्ष करने में हमें लगभग 10 वर्ष से अधिक का समय लग गया। अंतिम फैसला अब कोर्ट में होना है।

वेदांता ने कालाहांडी में इन्वेस्ट किया उसके बाद के दशक में इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन में लगभग 400% की बढ़ोतरी हुई। लेबर की सैलरी में 500% की वृद्धि हुई और वहां सौ से ज़्यादा कारखाने शुरू हुए।

जब पूर्व राष्ट्रपति श्री एपीजे अब्दुल कलाम को कालाहांडी के डेवलपमेंट के बारे में पता चला तो उन्होंने इस इलाके का दौरा किया। उन्होंने लोकल लोगों से बातचीत की और वेदांता के एफर्ट्स की सराहना करते हुए कहा कि औद्योगिक क्रांति ने कालाहांडी की तस्वीर बदल दी है।

इस कहानी को यहीं रुकने नहीं देना है। हम कमिटेड हैं इस सपने को पूरा करने के लिए। हमारे पास संकल्प है, सपने हैं, ह्यूमन रिसोर्स है, धरती का वरदान है। ग्रोथ को हमेशा इंक्लूसिव होना चाहिए। हम अपने लोगों को, खास कर अपनी महिलाओं को आगे बढ़ाएंगे।

अनिल अग्रवाल का निवेदन है स्मॉल और मीडियम स्केल इन्वेस्टर्स से।एल्युमिना देश की ज़रूरत है। आप कालाहांडी के आस-पास इंडस्ट्रीज डेवलप करें। हम सब मिलकर इस डिस्ट्रिक्ट को दुनिया के नक्शे पर एक नए मुकाम पर ले जा सकते हैं।