कोरबा, 20 अक्टूबर। पाली- तानाखार विधानसभा सीट से कांग्रेस ने 61 वर्ष बाद महिला उम्मीदवार को मैदान में उतारा है। इसके पहले यहां से कांग्रेस की नेत्री यज्ञसैनी देवी विधायक रही।
इसके बाद न तो कांग्रेस और न ही भाजपा ने महिला उम्मीदवार को टिकट प्रदान की। अब टिकट देकर कांग्रेस ने एक तीर से दो निशाने साधे है। गोंड़ बाहुल्य क्षेत्र होने की वजह से गुरूमाता को टिकट देकर कांग्रेस ने गोंड़वाना गणतंत्र पार्टी (गोंगपा) के वोट पर सेंध लगाया और इस सीट से एक बार फिर जीत हासिल करने का मार्ग प्रशस्त किया है।
आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित पाली- तानाखार सीट से कांग्रेस ने लगातार दूसरी बार प्रत्याशी बदला है। वर्ष 2018 में रामदयाल उइके के भाजपा में शामिल होने से कांग्रेस ने मोहितराम केरकेट्टा को टिकट दिया था और उन्होंने जीत हासिल की थी। पार्टी कार्यकर्ताओं के आरोप- प्रत्यारोप में घिरे केरकेट्टा की टिकट आखिरकार काट दी गई और नए चेहरे के रूप में पार्टी ने जनपद अध्यक्ष दुलेश्वरी सिदार को मैदान में उतारा है। अविभाजित मध्य प्रदेश के दौरान वर्ष 1957 में कांग्रेस ने पोड़ी- उपरोड़ा से जमींदार यज्ञसैनी देवी को टिकट प्रदान किया था और उन्होंने जीत हासिल किया। इसके बाद वर्ष 1962 में हुए चुनाव में पार्टी ने पुन: यज्ञसैनी पर भरोसा जताया और उनके इस भरोसे पर वे खरी उतरी।
चुनाव जीत कर विधानसभा पहुंची। इसके बाद कांग्रेस व भाजपा दोनों ने महिला उम्मीदवार को टिकट नहीं दी। मोहितराम की टिकट कटने की सुगबुगाहट शुरू होते ही दावेदारों की सूची लंबी हो गई थी और कांग्रेस में भी मंथन शुरू हो गया था। पार्टी में खींचतान भी मची हुई थी। पार्टी को नए चेहरे के तलाश में थी और महिलाओं को भी प्राथमिकता देनी थी, इसलिए यहां गोड़ समाज की गुरूमाता दुलेश्वरी का चयन किया गया।
महिला मतदाता ज्यादा, कितना मिलेगा फायदा
क्षेत्रफल की दृष्टि से पाली- तानाखार विधानसभा क्षेत्र जिले के अन्य विधानसभा सीट से सबसे बड़ा है। यहां 1,13,307 पुरूष मतदाता हैं, तो महिला मतदाताओं की संख्या 1,47,746 है और आठ थर्ड जेंडर मतदाता हैं। यानी 34439 महिला मतदाताओं की संख्या ज्यादा है।
कांग्रेस ने महिला उम्मीदवार को खड़ा कर महिला मतदाताओं को भी रिझाने का काम किया है। गुरूमाता होने के साथ ही महिला होने का लाभ दुलेश्वरी कितना उठा सकती है, यह तो तीन दिसंबर को ही स्पष्ट हो पाएगा।
परंपरागत सीट रही है कांग्रेस की
पाली- तानाखार विधानसभा सीट कांग्रेस की परंपरागत सीट रही है। हालांकि गोंड़ समाज बाहुल्य होने की वजह से यहां से गोंड़वाना गणतंत्र पार्टी के हीरा सिंह मरकाम (अब स्वर्गीय) यहां से जीत हासिल करते रहे हैं, पर बाद में यह सीट कांग्रेस के खाते में चली गई। राज्य गठन के बाद वर्ष 2003 में हुए पहले चुनाव में यहां से भाजपा से कांग्रेस में आए रामदयाल उइके को टिकट प्रदान किया गया, और उन्होंने जीत हासिल की। इसके बाद वर्ष 2008 व 2013 में भी उइके विधायक बनते रहे। वर्ष 2018 में पुन: भाजपा में उइके चले गए और उन्हें कांग्रेस के मोहितराम केरकेट्टा से हार का सामना करना पड़ा। यानी इस सीट में कांग्रेस किसी को भी खड़ा कर दे, तो भी जीत कांग्रेस को ही मिलती है।
पाली- तानाखार में कंवर समाज की संख्या दूसरे स्थान पर है, पर यहां से कंवर समाज को प्रतिनिधित्व नहीं मिला। कुछ दिनों पहले समाज के लोगों ने बैठक कर समाज से प्रतिनिधित्व देने की मांग रखी थी और छत्रपाल सिंह कंवर का नाम आगे किया था। साथ ही कहा था कि यदि पार्टी टिकट नहीं देगी, तो समाज अपना प्रत्याशी उतारेगा। समाज के दबाव के बाद भी टिकट नहीं मिल सकी। अब देखना यह है कि कंवर समाज की इस चुनाव में क्या भूमिका रहती है।
जिले के किसी भी सीट में नहीं रही महिला उम्मीदवार
अविभाजित मध्य प्रदेश शासन काल में जिले में तीन विधानसभा रामपुर, कटघोरा व तानाखार रही, पर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद हुए परिसीमन में जिले में चार विधानसभा बन गई। कटघोरा से पृथक कर नगर निगम क्षेत्र में कोरबा विधान सभा का गठन किया गया। वहीं तानाखार का परिसीमन कर पाली- तानाखार किया गया। दुर्भाग्य की बात है कि जिले की शेष तीन सीटकोरबा, रामपुर व कटघोरा में अभी तक एक बार भी कांग्रेस व भाजपा दोनों पार्टी ने किसी महिला उम्मीदवार को टिकट प्रदान नहीं की। यहां बताना होगा कि रामपुर विधानसभा में भी महिला मतदाताओं की संख्या ज्यादा है।
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