कोरबा 17 अक्टूबर I चैत्र नवरात्रि के 9 दिनों में माता आदिशक्ति की नौ रूपों में उपासना की जाती है माता को प्रसन्न करने और अपनी मनोकामना को पूरी करने के लिए भक्तों के द्वारा तरह-तरह के जतन किए जाते हैं नवरात्रि पर सदियों से चली आ रही अलग-अलग तरह की परंपराएं देखने को भी मिलती हैं I
कोरबा में एक मंदिर राजग्वालीन दाई का भी है,जहां भक्तों का माता के प्रति अटूट श्रद्धा और और विश्वास का अद्भुत नजारा देखा जा सकता है। जहां मंदिर में अखंड ज्योत प्रज्वलित किया गया है, वही मंदिर का पंडा अर्थात पुजारी अपने शरीर में ज्वारा की बुआई कर माता की सेवा में लगा है।
कोरबा को ऊर्जा नगरी के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा कई ऐतिहासिक बातें जुड़ी हुई है, जो कोरबा को अलग पहचान दिलाती है । यहां पाली के ऐतिहासिक और प्राचीन शिव मंदिर तथा चैतुरगढ़ में माता का मंदिर स्थित है। इसके अलावा मां सर्वमंगला, छुरी की मां कोसगाई और कोरबा चांपा मार्ग में ऊंचे पहाड़ पर मां मड़वारानी विराजित हैं। ऐसा ही एक मंदिर जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर कटघोरा पेंड्रा मार्ग में तुमान के समीप स्थित है, जहां राजग्वालिन दाई विराजी हुई है। क्षेत्रवासियों में माता रानी के विराजमान होने को लेकर अलग-अलग कथाएं प्रचलित है, जो प्राचीन और ऐतिहासिक रूप से जुड़ी हुई है। लोगो का राज ग्वालिन दाई पर अटूट श्रद्धा और विश्वास है। आम दिनों में माता की पूजा अर्चना तो की जाती है , शारदीय और चैत्र नवरात्र पर विशेष पूजा का आयोजन भी किया जाता है।
इस बार भी शारदीय नवरात्र पर मंदिर में 215 दीप प्रज्वलित किया गया है ।खास बात तो यह है कि मंदिर में माता रानी की पूजा अर्चना करने वाले पंडा सियाराम ने अपने शरीर पर ज्वारा की बुवाई किया है। वह जवारे के साथ ही पूरे 9 दिनों तक माता की सेवा में लगा रहेगा। जिसकी दर्शन के लिए मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ रही है। क्षेत्र वासियों के लिए इस बार का नवरात्र खास है। दरअसल परिसर में ही नए मंदिर का निर्माण कराया गया है, जहां नवरात्र के अवसर पर पूजा आराधना के बाद शिवलिंग की स्थापना की जाएगी । इस विशेष अवसर पर मंदिर परिसर में भंडारे का आयोजन किया गया है। क्षेत्रवासी माता राजग्वालीन दाई मंदिर में आयोजित नवरात्र में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं।
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