आज विश्व डाक दिवस, कहीं पीछे खो गई चिट्ठियां

वर्तमान में सूचना एवं संचार क्रांति के कारण कई नई तकनीकों का आविष्कार हुआ है, पर डाक-विभाग ने समय के साथ नव-तकनीक को शामिल किया है और अपनी सेवाओं में विविधता एवं अपने व्यापक नैटवर्क के चलते विभिन्न संगठनों के उत्पादों व सेवाओं के वितरण के लिए उनसे गठजोड़ करके अपनी निरन्तरता कायम रखी है। डाक सेवाओं ने एक लम्बा सफर तय किया है। डाक प्रणालियां कई सदियों से चली आ रही हैं। इतिहास में बहुत पहले से ही लोग एक-दूसरे को पत्र भेजते थे। इन्हें विशेष दूतों द्वारा पैदल या घोड़े पर पहुंचाया जाता था। 1600 के दशक से कई देशों में पहली राष्ट्रीय डाक प्रणालियां उभरने लगीं। ये अधिक व्यवस्थित थीं और कई लोग इनका उपयोग कर सकते थे।

धीरे-धीरे देश अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मेल के आदान-प्रदान के लिए सहमत हो गए। 1800 के दशक के अंत तक वैश्विक डाक सेवा मौजूद थी, लेकिन यह धीमी और जटिल थी। 1874 में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन  के जन्म ने आज प्रभावी डाक सेवा का रास्ता खोल दिया। 1948 में, यह संस्था संयुक्त राष्ट्र की एक एजैंसी बन गई। पूरी दुनिया में 9 अक्तूबर को विश्व डाक दिवस के रूप में मनाया जाता है। 9 अक्तूबर 1874 को ‘यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन’ के गठन के लिए बर्न, स्विट्जरलैंड में 22 देशों ने एक संधि पर हस्ताक्षर किए थे, इसी कारण 9 अक्तूबर को ‘विश्व डाक दिवस’ के रूप में मनाना आरम्भ किया गया। तभी से ही 9 से 15 अक्तूबर तक राष्ट्रीय डाक सप्ताह का आयोजन किया जा रहा है।

इसी क्रम में राष्ट्रीय डाक सप्ताह के तहत 10 अक्तूबर को बचत बैंक दिवस, 11 अक्तूबर को मेल दिवस, 13 अक्तूबर को फिलेटली दिवस, 14 अक्तूबर को व्यवसाय विकास दिवस व 15 अक्तूबर को डाक जीवन बीमा दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान स्कूली बच्चे भी डाकघर का भ्रमण करते हैं और डाक सेवाओं की कार्य-प्रणाली को समझते हैं। ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपना पहला डाकघर 1727 में खोला। भारत में पहला डाकघर ब्रिटिश

ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा 1764 में बॉम्बे में स्थापित किया गया था। अपने देश में 1766 में लॉर्ड क्लाइव ने पहली बार डाक व्यवस्था स्थापित की थी। फिर 1774 में वॉरेन हेस्टिंग्स ने कलकत्ता में प्रथम डाकघर स्थापित किया था।

भारत में सन् 1852 में पहली बार चिट्ठी पर डाक टिकट लगाने की शुरूआत हुई तथा महारानी विक्टोरिया के चित्र वाला डाक टिकट 1 अक्तूूबर 1854 को जारी किया गया। डाक सेवाओं का एक और अभिन्न अंग मनी ऑर्डर है। यूं तो आज पैसे कहीं से भी सीधे बैंक में ट्रांसफर हो जाते हैं, लेकिन एक समय था जब गांव के लोग शहर में पैसा कमाने जाते थे तो डाक विभाग की यही सेवा- मनी ऑर्डर देश के लाखों माता-पिताओं तक उनके बच्चों के द्वारा भेजा गया पैसा पहुंचाती थी।

डाक घर की ओर से नागरिकों को वित्तीय सेवाएं भी मुहैया कराई जाती हैं। कई देशों में ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को बैंकिंग और वित्तीय सुविधा हासिल होने का एकमात्र जरिया यही है। आज दुनियाभर में डेढ़ अरब से ज्यादा लोग डाक विभाग के पोस्टल खातों समेत वित्तीय सेवाओं की सुविधाओं का उपयोग कर रहे हैं। इंडिया पोस्ट, डाक विभाग का व्यापारिक नाम है, जो संचार मंत्रालय के तहत भारत में सरकार द्वारा संचालित डाक प्रणाली है।

भारतीय डाक विभाग 1.56 लाख से ज्यादा शाखाओं के साथ दुनिया में डाकघरों का सबसे बड़ा नैटवर्क है। भौगोलिक बाधाओं की परवाह किए बिना ही सभी राज्यों में दूर-दराज के दुर्गम क्षेत्रों तक डाकघर की शाखाएं खोली गई हैं । मोबाइल और इंटरनैट के युग में  चिट्ठियों का वजूद कम हो गया है। चिट्ठियां कहीं पीछे खो गई हैं, लेकिन एक जमाना था जब चि_ियों की बहुत अहमियत थी। लोग डाकिए का इंतजार करते थे और चिट्ठियों को सहेज कर रखते थे।

आज भी कई लोगों ने अपने पुरखों के पत्र सहेज कर रखे हैं। हमारे सैनिक अपने घर वालों के पत्रों का इंतजार बड़ी बेसब्री से करते हैं। चिट्ठियों में अपनापन झलकता है । चिट्ठी-पत्री में जीवन धड़कता है। चिट्ठियां सिर्फ एक संचार माध्यम ही नहीं हैं, ये मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाती हैं। मोबाइल से प्राप्त एस.एम.एस. तो लोग मिटा देते हैं परन्तु पत्र हमेशा सहेज कर रखते हैं।

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