‘श्रीमद्भागवत’ भगवान का ही स्वरुप-ब्रह्मचारी सुबुद्धानन्द

भिलाई, 08 अक्टूबर  गहोई  वैश्य समाज एम.पी. हाल में आयोजित श्रीमद्भागवत की दिव्य अमृतमयी कथा को संबोधित करते हुए ज्योतिष्पीठाधीश्वर एवं द्वारका शारदा पीठाधीश्वर जगद्गुरु  शंकराचार्य ब्रह्मलीन स्वामी  स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के निजी सचिव तथा वर्तमान ज्योर्तिमठ व द्वारका शारदामठ के सचिव तथा तथा राजराजेश्वरी सेवा ट्रस्ट, कोलकाता परमहंसी गंगा आश्रम के अध्यक्ष पूज्य ब्रह्मचारी  सुबुद्धानन्द जी महाराज ने कहा कि श्रीमद् भागवत भगवान  कृष्ण का ही स्वरुप है भगवान जब अपनी लीला का संवरण करके नित्य गोलोक  धाम जाने लगे तो उद्धव जी ने भगवान से प्रार्थना की,कि महाराज कलयुग का प्रवेश हो रहा है आप ऐसे समय में अपने भक्तों को छोड़कर के जा रहे हैं, आपके कलयुग के भक्तों का उद्धार कैसे होगा,

किसका आलंबन करके कलयुगी भक्त रहेंगे अभी तो आपका आलंबन था इसलिए महाराज आप मत जाइए उद्धव जी की प्रार्थना को सुनकर भगवान अंतर्ध्यान हुए और श्रीमद्भागवतरुपी ज्ञान सागर में में समाहित हो गए,अंत: श्रीमद् भागवत भगवान का साक्षात वाड्मय स्वरूप है, चिन्मय स्वरुप  है। साक्षात श्रीमद्भागवत के रूप में भगवान आपके सामने विराजमान है उनका दर्शन श्रवण सर्वदा आपका कल्याण करेगा। कथा व्यास डॉ इन्दुभवानन्द महाराज ने आज की कथा में समुद्र मंथन, देवदानव संवाद, वलि बामन प्रसंग,  गंगा अवतरण आदि विविध प्रसंगों का विस्तार करते हुए बताया कि भगवान के अवतार के अनेक हेतु होते हैं,  कृष्ण तो अवतारों के भी हेतु हैं।

भगवान श्री कृष्ण श्रीमद्भागवत के प्रतिपाद्य देवता है , भगवान  कृष्णा अवतार नहीं अवतारी है, नारायण के अंशों  द्वारा भगवान के अनेक अवतार होते हैं किंतु श्री कृष्ण स्वयं परंब्रह्म परमात्मा है श्रीमद् भागवत में  कृष्ण अवतार के बाद फिर अवतारों की चर्चा नहीं होती है इससे यही सिद्ध होता है कि कृष्ण ही पूर्ण परमब्रह्म  परमात्मा है ।कथा के पूर्व गहोई वैश्य समाज के अध्यक्ष  पवन कुमार ददरया एवं समाज के समस्त सदस्यों ने यजमानों ने पूज्य ब्रह्मचारी श्रीसुबुद्धानन्द महाराज जी का पादुका पूजन कर आशीर्वाद लिया।

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