स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आन्दोलन के जननायक थे आचार्य नरेन्द्र दुबे

1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में युवाओं की लालसेना नाम से टोली बनाकर रेल की पटरियां उखाड़ना , अंग्रेजों के संचार माध्यम को ठप्प करना , टेलीफोन के तार काटना, रायपुर जेल में बन्द सेनानियों को छुड़ाने के लिए जेल की दीवारों को बम से उड़ाने की टीम में शामिल रहकर भारत की आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने में बाबुजी भी शामिल थे। इस कारण बाबुजी को अंग्रेजी हुकूमत ने गिरफ्तार कर जेल में 3 महीने डण्डा बेड़ी की सजा देकर कालकोठरी में डाल दिया था।

पृथक छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आन्दोलन के प्रखर जननायक
पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की माँग को लेकर 1965 में छत्तीसगढ़ी समाज संगठन बना कर गाँव गाँव दौरा करके हजारों कार्यकर्ताओं की टीम तैयार कर छत्तीसगढ़ के  गाँव , ब्लॉक , जिला में पृथक छत्तीसगढ़ राज्य बनाने की माँग को लेकर जुलूस निकालते, धरना देते हुए अनवरत लगातार आन्दोलन को संचालित करते रहे। बाबुजी की मांग और नेतृत्व में भोपाल और दिल्ली में भी पृथक छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन की रैलियाँ हुई जिसमें हजारों लोग शामिल हुए।



1975 आपातकाल ( मीसा बन्दी ) में बाबूजी की गिरफ्तारी

28 जून 1975 , रात्रि 8 बजे , अम्बा देवी मंदिर सत्ती बाजार निवास स्थान से पुलिस ने बाबुजी को गिरफ्तार किया, तब मैं कक्षा 4 में था । आपातकाल भारतीय इतिहास में कभी न भुलाए जाने वाली घटना है, जिसमे इंदिरा गांधी ने सत्ता में बने रहने के लिए लोकतंत्र की हत्या करने वाला निर्णय लिया। इंदिरा गांधी के इशारे पर बेकसूर लाखों नागरिकों के साथ अमानवीय व्यवहार करते हुए उन्हें जेल में ठूस दिया गया था, जिसमें मेरे बाबुजी भी शामिल थे ।

छत्तीसगढ़ में आनन्द मार्ग संगठन के एक सशक्त हस्ताक्षर
छत्तीसगढ़ में योग साधना धर्म प्रचार आनन्द मार्ग संस्था में भी बाबुजी की भूमिका एक योग साधक , कापालिक , गृही आचार्य के रूप में रही । छत्तीसगढ़ के लगभग 10 हजार से अधिक व्यक्तियों ने बाबूजी से योग साधना की दीक्षा लेते हुए सात्विक जीवनशैली को अपनाया । उस समय रायपुर , बिलासपुर सम्भाग के कई गाँव ऐसे थे जहाँ पूरे के पूरे रहवासियों ने बाबुजी को अपना आचार्य बनाते हुए दीक्षा ग्रहण की । सन 1965 से 1970 के बीच  इंजीनियरिंग महाविद्यालय रायपुर के सैकड़ों विद्यार्थियों ने बाबुजी से दीक्षा प्राप्त की , मेडिकल कॉलेज रायपुर के कुछ छात्र भी उसमें शामिल रहे । आकर्षक व्यक्तित्व, दृढ इच्छा शक्ति, भरपूर आत्मविश्वास से भरे हुए बाबुजी से जो भी मिलता प्रभावित होता। यही कारण था कि लगभग 200 से अधिक दीक्षार्थी धर्मप्रचार के लिए सन्यासी बनकर समाज कल्याण में लग गए।

एक आदर्श वादी कर्तव्यनिष्ठ शिक्षक
सन 1955 से 1965 के बीच चांपा, सराईपाली, बसना, नयापारा राजिम और भाटापारा में अंग्रेजी विषय के शिक्षक के साथ गेम्स टीचर भी रहे। बाबुजी की अंग्रेजी बहुत अच्छी थी। फुटबॉल , क्रिकेट , हॉकी उनके प्रिय खेल थे। लेकिन 1965 में शिक्षकीय सेवा से त्यागपत्र देकर पृथक छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन के लिए पूरा जीवन लगा दिया।

पत्रकारिता के क्षेत्र में बाबुजी ने अंग्रेजों के खिलाफ 1942 में स्वामी ननका के नाम से  लेख लिखे । बाबुजी ने महाकौशल समाचार पत्र में भी काम किया। छत्तीसगढ़ी भाषा में छत्तीसगढ़ी सेवक समाचार पत्र के सम्पादक के रूप में 1967 से साप्ताहिक अखबार निकालते रहे । पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के लिये  एक सशक्त संगठन खड़ा करना , छत्तीसगढ़ी भाषा को राजभाषा का  दर्जा दिलाने के लिए आंदोलन खडा करना हो ,खेती को उद्योग का दर्जा दिलाने , किसानों को फसल का उचित मूल्य दिलाने , छत्तीसगढ़ के कल कारखानों में स्थानीय छत्तीसगढ़ियों को रोजगार दिलाने का , पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की माँग के लिए भोपाल विधानसभा सत्र में नारेबाजी कर पर्चा फेंकने का आन्दोलन हो , छत्तीसगढ़ियों के हितों को लेकर आंदोलन करने वाले में बाबुजी की अग्रणीय भूमिका हमेशा रही ।

आपातकाल के बाद जेल से रिहा होकर 1978 में 6 महीने में ही बाबुजी ने पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के लिए रायपुर , बिलासपुर , भिलाई , दुर्ग , राजनांदगांव और गांवों में  40 से अधिक रैलियां निकाल कर प्रशासन के माध्यम से भारत के  प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को ज्ञापन भेजा जिसका परिणाम यह हुआ कि तात्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने नवम्बर 1979 को छत्तीसगढ़ी समाज के प्रतिनिधि मंडल को नई दिल्ली प्रधानमंत्री कार्यालय में लेटर भेज कर प्रतिनिधि मंडल को मिलने का समय दिया जहाँ बाबुजी ने प्रधानमंत्री जी से मिलकर पृथक छत्तीसगढ़ राज्य की माँग रखी । बाबूजी के किये गए कार्य की स्मृतियाँ बहुत लम्बी है वे कभी भी कहीं भी किसी भी स्तर तक लोगो की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे । मैं अपने बाबुजी के बारे में लिखने बैठूँ तो शब्द कम ही पड़ेंगे और समृतियाँ बहुत ज्यादा ।

इस वर्ष भारत आजादी का अमृत काल मनाते हुए अपने स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को स्मरण कर रहा है। हमारे पूरे परिवार को गर्व है कि हम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आचार्य नरेन्द्र दुबे की सन्ताने है जिनका आज 100 वां जन्म दिवस है बाबूजी की जन्मशती पर सादर प्रणाम।