कोरबा, 13 सितम्बर। छत्तीसगढ़ का पारंपरिक लोक पर्व पोला तिहार 14 सितंबर को मनाया जाएगा। भाद्रपद मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह त्योहार, निंदाई कोड़ाई पूरा होने के साथ फसलों के बढ़ने की खुशी में मनाया जाता है। जिसके लिए कोरबा में आसपास के गांवों से आए खिलौनों से बाजार सज गया है। बाजार में दर्जनों कुम्हार विभिन्न प्रकार के खिलौने लेकर पहुंचे हैं। इस पर्व पर मिट्टी से बने बैल की पूजा अर्चना की जाती हैै।
मिट्टी से बने बैल के साथ पोला-जाता के खिलौने की भी पूजा की जाती है। बाजार में पर्व के चलते लोगों ने खरीदारी शुरू कर दी है। यह त्योहार छत्तीसगढ़ के अलावा, बैल पोला त्योहार महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है।
छत्तीसगढ़ कृषि प्रधान प्रदेश माना जाता है, इसलिए यह पर्व यहां खास तौर पर मनाने की पुरानी परंपरा है। पोला पर्व पर किसान अपने बैलों को नहला धुलाकर सजा-संवार कर पूजा अर्चना करते है। इसके बाद गांव के बाहर मैदान में लाते हैं, जहां बैलों की दौड़ होती है। ग्रामीण अंचलों के कई स्थानों पर यह परंपरा आज भी जीवित है। पोला त्योहार पर मिट्टी के बैल और खिलौने लोगों के आकर्षण का केंद्र होते हैं। इसलिए शहर की प्रमुख बाजारों में और सड़कों के किनारे मिट्टी के बैल और खिलौनों की दुकानें सज चुकी है। इस त्योहार पर बच्चों द्वारा खेले जाने वाले मिट्टी के बैल और लड़कियों के लिए मिट्टी के बने रसोई के सेट और पोरा और चक्कियां खास होते हैं।
इस त्योहार में बनाये जाने वाले पकवान और व्यंजन- घरों में ठेठरी, खुरमी, गुड़-चीला, गुलगुल भजिया जैसे पकवान तैयार किए जाते हैं। गुड़हा, चीला, अइरसा, सोहारी, चौसेला, ठेठरी, खुरमी, बरा, मुरकू, भजिया, मूठिया, गुजिया छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का भोग लगाया जाता है।
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