PART – 1 : औद्योगिक विकास खनिज का उत्पादक का इतिहास

देश में छत्तीसगढ़ खनिज संपदा से भरपूर है और खनिज-उत्पादक राज्यों में इसका दूसरा स्थान है। देश के सकल खनिजों के उत्पादन मूल्य में पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस को छोड़कर छत्तीसगढ़ लगभग 22 प्रतिशत का योगदान दे रहा है। उल्लेखनीय है कि हीरों के उत्पादन में छत्तीसगढ़ को एकाधिकार प्राप्त है। राज्य में करीब 30 प्रकार के मुख्य खनिज पाये जाते हैं, जिनमें 27 प्रकार के खनिजों का दोहन किया जा रहा है। खनिजों में तो असली सोना कलयुग का कोयला है।

देश का लगभग 14.50 प्रतिशत कोयला भंडार अकेले छत्तीसगढ़ में है। जिन पर आधारित कोरबा, शहडोल और बैतूल जिले के ताप विद्युत संयंत्र संचालित किये जा रहे हैं। राज्य के बिलासपुर, रायगढ़ सरगुजा, सीधी, शडहोल, छिंदवाड़ा और बैतूल जिलों में कोयले का विपुल भंडार है। सिंगरौली में कोयले की परत 136 मीटर गहरी है जो विश्व में दूसरी नंबर की मानी जाती है। शडहोल जिले में बिरसिंगपुर, राजनगर, सरगुजा, जिले में चरचा में सर्वेक्षण से 880 लाख टन नान कुकिंग श्रेणी के कोयले के भंडार की खोज की गई है।


छत्तीसगढ़ के कोयला क्षेत्रों को उत्तरी व दक्षिणी क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जाता है। उत्तरी क्षेत्र सरगुजा जिले में पूर्व-पश्चिम फैलते हुए रायगढ़ जिले की जशपुर तहसील तक फैला है। इसके प्रमुख कोयला क्षेत्र सोनहत, झगराखंड, चिरमिरी, कोरियागढ़, तातापानी, रामकोला, झिलमिल, बरसर, विश्रामपुर, लखनपुर, रामपुर और पंचमैनी है। यहाँ का अधिकतर कोयला नान कुकिंग है। दक्षिणा कोया क्षेत्र बिलासपुर जिले के कोरबा से लेकर मांड नदी तक, पूर्व में रायगढ़ जिले में पूर्व-पश्चिम पट्टी के रूप में विस्तृत है। इसमें कोरबा क्षेत्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। राज्य में अभी तक लगभग 500 मिलियन टन भंडार प्रमाणित किये जा चुके हैं जिसका 35 खदानों में उत्खनन किया जा रहा राज्य का मूल्यवान खनिज बाक्साइट प्रदेश के अनेक भागों में पाया जाता है। देश में उपलब्ध कुल बाक्साइट का 7 प्रतिशत छत्तीसगढ़ के बिलासपुर, रायगढ़, सरगुजा, शडहोल, मंडला, बालाघाट जिलों में पाया जाता है। बाक्साइट का अनुमानित भंडार क्षमता 70 मिलियन टन है।

बाक्साइट की उपलब्धियों का ही कमाल है कोरबा का अल्यूमिनियम संयंत्र जहाँ अल्यूमिनियम ढलता है। अल्यूमिनियम याने गरीबों का स्टेनलेस स्टील। शहडोल जिले में अमरकटंक से बाक्साइट की पूर्ति की जाती है। छत्तीसगढ़ का तीसरा बहुमूल्य खनिज है चूना पत्थर। राज्य में अभी तक 2100 मिलियन टन के चूने के पत्थर का भंडार प्रमाणित किया जा चुका है और न जाने कितना अभी प्रकाश में आना शेष है। देश के कुल चूना पत्थर का 12 प्रतिशत मध्यप्रदेश में है। चूना पत्थर के ये भंडार बस्तर, दुर्ग, रायपुर, राजनांदगांव, बिलासपुर, रायगढ़, रींवा, सतना, सीधी, जबलपुर, दमोह, मुरैना, धार तथा मंदसौर जिलों में है। बिलासपुर जिले में हिरी, टांक, लटिया, फ्करिया, अकलतरा, और चिंता पंडरिया में चूना पत्थर को खदान है।

“कुछ पुरानी इतिहास के पन्नों से”, बिलासपुर संभाग में कोयला

संभाग में बिलासपुर जिले में स्थित कोरबा कटघोरा तहसील के अंतर्गत आता है। आज से लगभग तीस वर्ष पूर्व कोरबा एक आदिवासी बीहड़ वन क्षेत्र था । सन 1949-50 में चांपा से कोरबा तक चालीस कि०मी० सड़क मार्ग के निर्माण से इस आदिवासी बहुल इलाके का विकास प्रारंभ हुआ। प्रारंभ में कोरबा, मानिकपुर बाकी और सुराकछार खदानें “राष्टीय कोलया विकास निगम” के अधीन कार्यरत थी। कोरबा में प्रारंभिक सर्वेक्षण के दौरान एक खुली तथा दो जमीन के अंदर खदानों का पता लगाया गया। प्रारंभिक सर्वेक्षण का कार्य एक अक्टूबर 1956 को प्रारंभ किया गया। इस प्रारंभिक सर्वेक्षण से तीन मिलियन टन कोयले के भंडार का अनुमान लगाया गया। प्रारंभिक सर्वेक्षण का कार्य 260.4 एकड तक सीमित था। मार्च 1956 से 1976 तक इस सर्वेक्षण भूभाग से 28,75,046.20 टन कोयले का उत्पादन हुआ। इस अवधि में मासिक औसत उत्खनन 23,960 टन था। खदान क्रमांक एक और दो में उत्खनन कार्य 14 दिसम्बर 1957 से प्रारम्भ हुआ। इन दोनों खंदानों में कोयले का अनुमानित भंडार 5.8 मिलियन टन तथा कुल क्षेत्रफल 899.66 एकड़ था। इन खंदानों से मार्च 1967 तक कुल 14,87,846.75 टन कोयले का उत्पादन हुआ। इस अवधि में 13,300 टन मासिक उत्खनन किया गया। 19 फरवरी 1951 को खदान क्रमांक तीन और चार में उत्खनन प्रारम्भ किया गया। इन खदानों का कुल क्षेत्रफल 727.87 एकड़ था जिसमें 1 मिलियन टन कोयले के भंडार का अनुमान लगाया गया 1958 से मार्च 1967 के बीच का खदानों से कुल 2,95,034.82 टन कोयला उत्खनन किया गया। इस अवधि में मासिक उत्खनन 2900 टन था।


इस तरह बांकी कोलयारी में उत्खनन का प्रारम्भिक कार्य 1962 में किया गया और इसे 16. जनवरी 1953 को प्रदान घोषित किया गया। इस खदान को प्रारम्भ करने के लिये रुपये 3,70,82,400रुपये का प्रावधान किया गया। बांकी खदान में कार्य प्रारम्भ के दौरान 1250 व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराया। वर्ष 1966 तक इर खदान से 25 हजार टन कोयले का उत्पादन किया गया। बाद के वर्षों में 1966-67 में 43,794.10 टन कोयले की पूर्ति रेलवे को की गई तथा 708.14 टन निजी “पार्टियों को इनकी मांग की पूर्ति की गई। पूर्ण विकसित होने के बाद इस खदान से प्रतिवर्ष 6 लाख टून कोयला उत्खनन की आशा की गई थी। इस खदान का विकास करने में महत्वपूर्ण योगदान था।


सोवियत संघ का मानिकपुर खदान का कार्य प्रारम्भ 2 अक्टूबर 1966 से किया गया। इस खदान से कोरबा विद्युत संयंत्र को कोयले की पूर्ति प्रारम्भ की गई। प्रारंभिक चरण में इस खदान में लगभग 313 व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराया गया I