सत्ता-संपत्ति पाप के रास्ते से भी मिलती है, पुण्य के रास्ते से भी, तय आपको करना है : प्रवीण ऋषि

रायपुर,09 सितम्बर। लालगंगा पटवा भवन में चल रही महावीर गाथा के 62वें दिन उपाध्याय प्रवर प्रवीण ऋषि ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जीव अपने साथ कर्म लेकर आता है। कर्म अच्छे भी होते हैं, और बुरे भी। इन कर्मों को बदलने में माता-पिता की जिम्मेदारी अहम् होती है। जैसे माँ विमला ने महावीर की चेतना को जगाया। प्रतिशोध, क्रोध, हिंसा की भावना को प्यार, प्रतितोष और अहिंसा में बदला। विमल कुमार अब राजा बन गया है। वह अहंकार से सत्ता के शिखर पर नहीं पहुंचा है, अहिंसा और करुणा के बल पर उसने यह सब किया है। सत्ता और धन पाप के रास्ते से भी प्राप्त किया जा सकता है और पुण्य के रास्ते से भी, यह आपको तय करना है कि आप कौन सा रास्ता चुनते है। पाप के रास्ते चलेंगे तो नर्क का द्वार खुला ही रहेगा। पुण्य का रास्ता कठिन होता है, लेकिन मोक्ष का द्वार भी खुलता है। उक्ताशय की जानकारी रायपुर श्रमण संघ के अध्यक्ष ललित पटवा ने दी।

शनिवार को धर्मसभा को संबोधित करते हुए प्रवीण ऋषि महावीर बनने की गाथा सुनाते हुए विमल कुमार की यात्रा सुना रहे थे। उन्होंने कहा कि विमल कुमार राजा बने लेकिन उसमे अधिकार का भाव नहीं है, सेवा लेने की नहीं सेवा करने की भावना है। विमल कुमार ने राज्य में घोषणा कर दी कि कोई शिकार नहीं होगा, केवल स्वीकार होगा। उसने मांसाहार को वर्जित कर दिया, राज्य में मदिरा को बंद कर दिया। विमल कुमार ने व्यवस्था बनाई कि जाने-अनजाने में कोई हिंसा की राह न अपना ले, पूरे राज्य में खुशहाली छा गई। जब पिता को यह पता चला तो वह धन्य हो गए। उन्होंने सोचा कि जो काम मैं आज तक नहीं कर सका उसने कर दिया। मेरे पास सत्ता थी, बुद्धि थी, लेकिन मैंने आज तक नहीं सोचा कि हिंसा बिना भी राज्य चल सकता है। जो मैंने सोचा भी नहीं था, उसने कर  दिखाया।

विमल कुमार के राज्य में खुशहाली है, प्रजा अपने राजा से खुश है, लेकिन एक घटना ऐसी घटी कि उसके जीवन में भूकंप आ गया, वह अंदर तक हिल गया। गुप्तचरों ने सूचना दी कि राजपुरोहित के घर में मांसाहार होता है। यह सुनकर विमल कुमार चौंक गया। उसने राजपुरोहित को बुलाया, और पूछा। पहले तो वह साफ़ मुकर गया, लेकिन जब सामने साक्ष्य रखे गए तो उसने स्वीकार किया। आक्रोश में आते हुए राजपुरोहित ने कहा कि राजा का काम है प्रजा और सत्ता की रक्षा करना, धर्म का कार्य पुरोहितों का है। राजा का कमा संस्कार देने का नहीं है, रक्षा करने का है। मैं ही नहीं पूरा मंत्रिमंडल भी यह मानता है। यह सुनकर विमल सोच में पड़ गया।

उसके राज्य में मांसाहार मदिरापान पर पाबन्दी है, लेकिन पड़ोसी राज्यों में यह व्यवस्था नहीं है। अगर उन राज्यों में भी यही व्यवस्था लागू हो गई तो पूरी समस्या ख़त्म हो जायेगी। विमल कुमार अपने पिता से सलाह लेने पहुंचा। उसने पूछा कि कैसे व्यवस्था को सुधारा जा सकता है। पिता ने कहा कि एक चक्रवर्ती ही पूरे संसार को सुधार सकता है। तुझे चक्रवर्ती बनाना होगा, छह खण्डों में अपने राज्य स्थापित करना होगा, उसके बाद उन खण्डों में व्यवस्था का निर्माण करना होगा। प्रवीण ऋषि ने कहा कि अब महावीर की चेतना चक्रवर्ती बनने वाली है। चक्रवर्ती वही बनते हैं जिन्होंने निःस्वार्थ सेवा की है, और सेवा की व्यवस्था बनाई है। चक्रवर्ती बनने के लिए पुण्य लगता है।

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