नई दिल्ली: भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बुधवार (16 अगस्त) को एक हैंडबुक जारी की, जिसमें लैंगिक-अन्यायपूर्ण शब्दों की एक विस्तृत शब्दावली दी गई है. इसमें सुझाव दिया गया है कि आगे से कानूनी दलीलों और फैसलों में इन शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.
हैंडबुक में कहा गया है कि ऐसे शब्द लैंगिक रूढ़िवादिता को कायम रखते हैं. अन्यायपूर्ण शब्दों के साथ, वैकल्पिक शब्दों की एक सूची भी दी गई है, जिनके इस्तेमाल को सटीक और उचित माना गया है.
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, ‘हैंडबुक का उद्देश्य लैंगिक रूढ़िवादिता से निपटने, महिलाओं के बारे में रूढ़िवादिता को पहचानने, समझने और उसका मुकाबला करने में न्यायाधीशों और कानूनी समुदाय की सहायता करना है. इसमें लिंग-अन्यायपूर्ण शब्दों की एक शब्दावली शामिल है और वैकल्पिक शब्द या वाक्यांश सुझाए गए हैं, जिनका उपयोग दलीलों के साथ-साथ आदेशों और निर्णयों का मसौदा तैयार करते समय किया जा सकता है.’
हैंडबुक में उल्लेख किया गया है कि अतीत में अदालतों द्वारा कितने लिंग-अन्यायपूर्ण शब्दों का गलत तरीके से उपयोग किया गया है. इसमें बताने की कोशिश की गई है कि इन शब्दों के उपयोग को अनुचित क्यों माना गया और ये कानून के अनुप्रयोग को विकृत क्यों कर सकते हैं. हैंडबुक में लिखा है, ‘रूढ़िवादिता आम तौर पर किसी समूह की सदस्यता के आधार पर व्यक्तियों के खिलाफ रखी जाती है. वे धारणाएं या मान्यताएं हैं कि विशिष्ट सामाजिक समूहों से संबंधित व्यक्तियों में कुछ विशेषताएं या गुण होते हैं.’
सुप्रीम कोर्ट द्वारा चिन्हित लिंग-अन्यायपूर्ण शब्दों और उनके वैकल्पिक शब्दों की सूची
हैंडबुक में कहा गया है कि यौन हिंसा से प्रभावित व्यक्ति खुद को ‘सर्वाइवर’ ’विक्टिम’ के रूप में पहचान सकता है. दोनों शर्तें तब तक लागू होती हैं जब तक कि व्यक्ति ने अपने लिए इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द से संबंधित कोई प्राथमिकता व्यक्त न की हो. यदि उसके द्वारा किसी विशेष शब्द के इस्तेमाल की गुजारिश की जाती है, ऐसी स्थिति में व्यक्ति की प्राथमिकता का सम्मान किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने अपनी हैंडबुक से कुल 40 शब्द हटाएं हैं, जिनमें प्रॉस्टिट्यूट, हूकर और मिस्ट्रेस भी शामिल हैं. इन सभी शब्दों का विकल्प भी हैंडबुक में सुझाया गया है.
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