श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह : कथा वाचक पवन कृष्ण गोस्वामी ने प्रहलाद व नरसिंह अवतार का प्रसंग विस्तार पूर्वक वर्णन

कोरबा, 06 अगस्त। सरदार वल्लभ भाई पटेल नगर जमनीपाली में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह के तीसरे दिन कथा वाचक पवन कृष्ण गोस्वामी ने प्रहलाद व नरसिंह अवतार का प्रसंग विस्तार पूर्वक वर्णन के साथ संगीतमय प्रवचन दिये। आचार्य पवन कृष्ण गोस्वामी ने आज के प्रसंग के दौरान बताया कि उपवास सभी रोगों में सुधार की सबसे प्रभावशाली विधि है। उपवास से शक्ति मिलती है। लेकिन समाज में प्रतिष्ठा पाने के लिए अच्छे कर्म करने होते हैं। आचार्य श्री ने कहा कि प्राचीन काल से व्रत, सत्संर्ग, कथा आदि की रचना लोगों में जागृति, सदभावना, सामूहिकता, ईमानदारी, एकता, कर्तव्यनिष्ठा, परमार्थ परायणता, लोकमंगल, देशभक्ति, सुसंस्कृत, सुयोग्य नागरिक बनने, समाज को सुविकसित करने के लिए गई थी।


आचार्य श्री ने भगवान श्री कृष्ण की पावन लीलाओं का वर्णन करते हुए कहा कि बच्चों को धर्म तथा अच्छे कर्म, संस्कार का ज्ञान बचपन में ही देने से वह जीवन भर उसका पालन तथा स्मरण करता है। ठीक उसी प्रकार संगति का भी ध्यान रखना जरूरी होता है। बच्चों की संगति कैसे लोगों के साथ है अगर अच्छे लोगों के साथ है तो वह भी अच्छा बनेगा लेकिन गलत व्यवहार के व्यक्तियों के साथ संगत है तो उसके व्यवहार में भी उसका असर देखने को मिलने लगेगा।


आचार्य पवन कृष्ण  गोस्वामी ने अनेकों प्रसंगों और उदाहरण के माध्यम से कथा का सुंदर वर्णन किया जिसे सभी श्रद्धालु जनों ने मंत्रमुग्ध होकर श्रवण और संगीतमय कथा के दौरान नृत्य किया। कथा के प्रारंभ में मुख्य जजमान राजू गोयल ने विधि विधान के साथ पूजन कार्य किया। वहीं श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह के चौथे दिन वामन चरित्र, मोहिनी अवतार, रामजन्म, कृष्ण जन्म का प्रसंग लेकर विस्तार पूर्वक वर्णन कर श्रोताओं को कथा वाचक आचार्य पवन कृष्ण गोस्वामी ने श्रीमद् भागवत कथा का महत्व बताते हुए कहा कि श्रीमद् भागवत कथा में वह सारे गुण व्याप्त है जिनके माध्यम से प्राणी अपना कल्याण कर सकता है, साथ में परिवार व उनसे जुड़े हुए लोगों का भी कल्याण होता है। जीवन में जब अवसर मिले समय निकालकर प्रत्येक व्यक्ति को भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए।


कथा वाचक पवन कृष्ण गोस्वामी ने ऐसा समां बांधा कि श्रद्धालुजन अपने आप को रोक नही सके। नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की धुन पर भक्त जमकर झूमें, तथा भगवान कृष्ण की सामुहिक जय-जयकार के बीच श्रद्धाभाव के साथ श्रीकृष्ण का जन्म उत्सव मनाया। इस दौरान कार्यक्रम स्थल को विभिन्न प्रकार के रंगीन गुब्बारों से सजाया गया और टॉफियां बांटकर खुशियां मनाई गई। श्रीकृष्ण अवतार की झांकी निकाली गई इस दौरान बधाई देने के लिए श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा है बधाई गीतों के बीच भक्तिमय वातावरण बना रहा।
आचार्य श्री ने कथा प्रवचन के दौरान सनातन धर्म के नियमों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कोई कार्य सोच विचार कर करने चाहिए। बिना सोचे-विचारे अर्थात बिना चिंतन-मनन के कार्य करने का परिणाम अक्सर गलत होता है। ‘‘बिना विचारे जो कर,े सो पाछे पछताए। काम बिगाड़ो आपनों, जग में होत हसाए।।’’ के कहावत को चरितार्थ करता है। इसके अलावा अपने सामर्थ्य के अनुरूप ही कार्य करना चाहिए अर्थात जितनी लम्बी चादर, पैर उतना फैलाना चाहिए।


आचार्य ने कहा कि मन में हर हमेशा जिज्ञासा बनी रहना चाहिए, जिस प्रकार बालपन में बालको को कुछ नया देखने व सुनने से उसके मन में उसे जानने की जिज्ञासा होती है। इसलिए अपने अंदर के बालपन को हमेशा बनाए रखना चाहिए। आचार्य श्री ने एकादशी व्रत के नियमों पर विस्तार पूर्वक प्रकाश डाला। कथा दोपहर 03ः00 बजे से आरंभ होकर रात 08ः30 बजे तक चला कथा के समापन पश्चात् मुख्य जजमान सहित श्रद्धालुओं ने विधि विधान के साथ आरती की तत्पश्चात् प्रसाद वितरण किया गया। कथा में बड़ी संख्या में महिलाओं और पुरूषों ने भागीदारी निभाई।

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