रायपुर ,09 जुलाई । आज के दौर में बच्चे बहुत प्रतिभाशाली है, लेकिन उन्हें सही दिशा देने की आवश्यकता है। सही दिशा नहीं देने की वजह से बच्चे दिशाहीन होते जा रहे हैै और यही परिवार में अशांति बढऩे का कारण है। जो भी काम करो होश में करो, आज जो काम हो रहे है वह होश में नहीं हो रहे है। होश में कभी भी गलत कार्य नहीं होते गलत कार्य हमेशा मनुष्य बेहोशी में ही करता है। जीवन के इस शतरंज में प्रयास करना मनुष्य का काम है और परिणाम देना परमात्मा का। श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन संतान सूत्र पर ये बातें पंडित विजय शंकर मेहता ने कहीं।
उन्होंने कहा कि वर्तमान परिवेष में जिस प्रकार से माता-पिता अपने संतानों का पालन-पोषण कर रहे है उसमें संघर्ष का अभाव है, बिना संघर्ष के ही उनकी सारी इच्छाएं पूरी की जा रही है, यही संतानों के जीवन से भटकने का मूल कारण है। क्योंकि बिना संघर्ष के ही वह सब कुछ प्राप्त हो रहा है, संघर्ष उनके माता-पिता कर रहे है और अशांत भी वही है। उन्होंने महाभारत की माता कुंती व गंधारी का दृष्टांत के माध्यम से बताया कि कैसे माता कुंती ने अभाव में भी अपने बच्चों का पालन-पोषण किया और उन्हें धर्म के रास्ते पर चलना सीखाया। वहीं दूसरी ओर गंधारी ने विलासिता में अपने 100 पुत्रों का पालन-पोषण किया लेकिन एक भी योग्य नहीं निकला क्योंकि गंधारी ने उनकी ऊर्जा का रुपांतरण ही नहीं किया।
कथावाचक पंडित मेहता ने कहा कि बच्चों का पालन-पोषण होश में रहते हुए करना चाहिए न कि आंखों पर पट्टी बांधकर करना चाहिए, उनकी गलतियों का भी उन्हें एहसास कराते रहना चाहिए। संतानों के पालन-पोषण में आज माता और पिता दोनों को चौकन्ना रहने की आवश्यकता है। बच्चों का लाड़-प्यार करना कोई बुरी बात नहीं है लेकिन उन्हें अभाव का भी एहसास रहना चाहिए। पंडित जी ने कहा कि जो भी करो होश में करो, 90 प्रतिशत लोग आज अपने बच्चों का पालन-पोषण होश में नहीं कर पा रहे है, जो संस्कार उन्हें देने चाहिए वे नहीं दिए जा रहे, यही कारण है कि आज संतानों से सुख की बजाए दु:ख मिल रहा है। पंडित जी ने कहा कि महाभारत के शकुनी और रामायण की मंथरा कोई व्यक्ति विशेष नहीं है, यह एक बूरी वृत्ति है जो आज भी मनुष्यों में कहीं न कहीं बैठे हुए है और हमेशा कुछ न कुछ खुरापात करने की सोचती है और समय आने पर उसे कार्य रुप में परिणित भी कर देती है। हमें इस शकुनी और मंथरा की वृत्ति को अपने जीवन से हटाना होगा और यह केवल परमात्मा के भजन, कीर्तन और ध्यान से ही संभव है।
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