सफलता से वंचित होने पर भाग्य को दोषी मानना अज्ञानता : बाबा प्रियदर्शी

रायगढ़ ,05 जुलाई ।  जीवन में असफलता का दोष भाग्य पर मढ़े जाने को मनुष्य की अज्ञानता निरूपित करते हुए पूज्य पाद बाबा प्रियदर्शी राम ने आठ राज्यो एवम छग के अधिकांश जिलों से आए हजारों शिष्यों को जीवन जीने की कला के रहस्य के बारे मे विस्तार से बताया। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर शिष्य अपने गुरु का सानिध्य मात्र से जीवन की  जिज्ञासा पूरी कर सकते है। जिसे जीवन जीने की कला नही आती बहुमूल्य संसाधन होते हुए भी मनुष्य तनाव ग्रस्त रहता है। जिस संसार में मनुष्य  रहता है उसी संसार में संत महात्मा भी रहते हैं । संत महात्मा का जीवन तनाव रहित एवम सुखमय होता है क्योंकि वे जीवन जीने की कला जानते हैं।



बाबा प्रियदर्शी ने बताया इस नश्वर संसार में जो कुछ भी दिखाई पड़ रहा है वह परिवर्तन शील है । जो आज है वह कल नही रहेगा। मनुष्य का जीवन  ट्रेन में बैठे हुए उन यात्रियों की तरह है जो एक साथ बैठकर बहुत सी चर्चा करते है लेकिन अपना अपना गंतव्य आने पर निर्धारित स्टेशन पर उतर जाते है। रिश्तों में मिलना बिछड़ना जीवन की सतत प्रक्रिया है। गर्मी के बाद वर्षा और उसके बाद ठंड फिर से गर्मी का आना भी मौसम के परिवर्तनशील होने का प्रमाण है। नश्वर संसार में कुछ भी स्थाई नहीं है। जैसे ऋतु परिवर्तन को हम सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं। उसी तरह जीवन के हर परिवर्तन को भी सहर्ष स्वीकार करना चाहिए। जब लाभ होता है तब मनुष्य अहंकारी हो जाता है जब हानि होती है तो वह दुखी हो जाता है यह दोनो ही स्थिति मनुष्य के लिए हानिकारक है। लाभ हो या हानि को मनुष्य को हंसते हुए स्वीकार करना चाहिए। मनुष्य सदैव अपने अनुकूल परिस्थितियां चाहता है जबकि यह संभव ही नही है।

परिस्थितियों को अनुकूल बनाने में अपनी शक्ति लगाने की बजाय स्वयं को परिस्थिति के अनुकूल ढाल ले तो मनुष्य का जीवन दुखी नहीं होगा। जीवन मे हठधर्मिता का त्याग कर  स्वीकार्यता का भाव लाना आवश्यक है। ईश्वर को छोड़कर संसार का हर जीव मृत्यु की ओर निरंतर बढ़ रहा। बाबा प्रियदर्शी ने कहा मृत्यु से  भयभीत नही होना बल्कि जीवन के शाश्वत सत्य को जानते हुए जीवन जीना है। मृत्यु अटल सत्य है इस सच्चाई को समझते हुए हर मनुष्य को अपना जीवन समय बद्ध करते हुए योजनाबद्ध तरीके से काम करना है। जन्म के बाद बचपन में  विधार्थी जीवन उसके शादी फिर पचास सालो तक पारिवारिक जिम्मेदारी के बाद साठ की उम्र सेवानिवृति की मानी गई है।

इसके बाद का जीवन वानप्रस्थ माना गया है। साठ के बाद सामाजिक एवम पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त होकर आत्म कल्याण हेतु सेवा कार्य करना चाहिए। सेवा के लिए निष्काम भाव की गई सेवा को  सबसे उपयोगी बताते हुए बाबा प्रियदर्शी राम ने कहा कहा जीवन का उद्देश्य केवल रोटी, कपड़ा और मकान तक सीमित नहीं होना चाहिए। केवल अपनी इंद्रियों की संतुष्टि एवम तृप्ति के लिए मानव जीवन नहीं है। बहुजन हिताय सर्वजन सुखाय की भावना से कार्य करते हुए समाज के सभी लोगों के कल्याण का भाव निष्काम कर्म माना जाता है।निष्काम कर्म करने से ईश्वर की प्राप्ति होती है।



स्वार्थ भरी भावनाओ की वजह से हमारा झुकाव संसार की तरफ हो जाता जबकि सरलता का भाव हमे ईश्वर से जोड़ती है। केवल खाने के लिए जीने वाले मनुष्य रोगी बन जाते है। ऐसे युग में जी रहे है जहां लोग बोलचाल में बहुत व्यस्त रहने की बात कही जाती है। व्यवस्ता का भाव आने की वजह से सही समय पर सोना सही समय पर उठना नही होता। विलंब से उठने की वजह से  योग ध्यान साधना से वंचित हो जाते है। भोगी मनुष्य जल्दी ही रोगी बन जाता है और अपने लक्ष्य प्राप्ति से वंचित हो जाता। अपने लक्ष्य को पाने के लिए मनुष्य सही या गलत रास्ते का चयन करता है। गलत राह का चयन ईश्वर प्राप्ति में बाधक है। इस राह में आत्मकल्याण संभव नही है। प्रारब्ध का लेखा जोखा समझना बहुत कठिन होता है। सदैव उपासना प्राणों की होती है। मंदिरो मे स्थापित मूर्तियों को हम देवता के रूप में तभी पूजते है जब तक मूर्तियो में प्राण प्रतिष्ठा नहीं होती। मनुष्य के मस्तिष्क में मौजूद विषमता का भाव स्वयं के लिए समाज व देश कल्याण के मार्ग में बाधक होता है इसलिए बाबा प्रियदर्शी ने मनुष्य के लिएंजीवन मे समता के भाव को आवश्यक बताया।



भगवान की प्रसन्नता सामग्री की मात्रा में निहित नही होती बल्कि भगवान भक्तो द्वारा अर्पित भाव से प्रसन्न होते  है। द्रौपदी एवम सुदामा की भक्ति को मिशाल बताते हुए बाबा प्रियदर्शी ने कहा भगवान कृष्ण ने दोनो के भाव की वजह से उनकी भक्ति को स्वीकार किया।भगवान की भक्ति अमीरी या गरीबी से प्रभावित नही होती। बुद्ध काल के दौरान एक भक्त द्वारा मानसिक रूप से अर्पित की गई सामग्री का दृष्टांत भी उन्होंने सुनाया। कलियुग में भगवान की भक्ति के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं भक्ति के  जरिए जीवन में शांति, शीतलता की अनुभूति होती है।निष्काम भाव से कर्म करने की आवश्कता पर जोर देते हुए बाबा प्रियदर्शी ने कहा समाज में जरूरतमंद लोगों की मदद सबसे बड़ी सेवा है। ऐसे कार्य प्रेरणा दाई होते है। सेवा कार्यों में ही मानव कल्याण निहित है। नई पीढ़ी की युवतियों को संदेश देते हुए कहा किसी से भी दोस्ती करने के पहले उसके संस्कारो को समझ लेना आवश्यक है।इसके अभाव में लिए गया निर्णय जीवन में  घातक हो सकता है।समाज के निर्माण में नारी शक्ति के अहम योगदान का उल्लेख करते हुए बाबा प्रियदर्शी राम ने कहा समाज संस्कृति सभ्यता और परंपरा पर टिका हुआ है और नारी इसकी आधार शिला है। संयमित रहते हुए नारी स्वतंत्र और स्वावलंबी बने और समाजिक विकास में बढ़चढ़ कर अपना योगदान दे।



छोटे बच्चों को मोबाइल से दूर रखने की नसीहत देते हुए पीठाधीश्वर ने कहा माताएं अपना कार्य पूरा करने के लिए बच्चो के हाथ में मोबाइल थमा देती हैं और यही से कुसंस्कारो का बीजारोपण हो जाता है। हम जैसी सोच रखते है वैसा ही हमारा जीवन बन जाता है, इसलिए क्या सोचना है, इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि यही हमारे कर्म की शुरुवात भी है यदि हमारी सोच अच्छी होगी तो कर्म भी अच्छे होंगे।



असफलता से घबरा कर अपने भाग्य पर दोषारोपण करने वाले निर्बल होते है एवम उनका संकल्प कमजोर होता है। दृढ़ संकल्प शक्ति के जरिए परिणाम को बदला जा सकता है। अपनी असफलता के लिए जब हम किसी दूसरे को दोषी ठहराते है तो हम अपनी गलतियों को नही  सुधार पाते है। दोषारोपण की बजाय हमे आत्मचिंतन कर अपने दोषों को दूर करना चाहिए। जीवन मे छोटे छोटे संकल्प बड़े परिणाम देते है। नित्य योग साधना के जरिए हम स्वस्थ रह कर अपने लक्ष्य को हासिल कर सकते है, क्योंकि लक्ष्य हासिल करने के लिए स्वस्थ शरीर आवश्यक है। विलंब से उठने की वजह से हम योग की परंपरा से दूर होते जा रहे है और शारीरिक व्याधियां हमे घेर रही है। हर दिन हमे समय कर उठने से लेकर योग पूजा करते हुए छल कपट जूठ से दूर रहने का संकल्प लेना है। क्रोध का परित्याग कर किसी का तिरस्कार नही करना चाहिए। ऐसे संकल्पों से बना जीवन श्रेष्ठ जीवन माना जाता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह इन सब विकृतियों को जीवन का सबसे बड़ा विकार बताया।



देश के प्रति कर्तव्य का भी बोध कराते हुए बाबा प्रियदर्शी ने बताया कि  देश की उन्नति में ही समाज एवम मनुष्य की उन्नति निहित है। राष्ट्र के प्रति भी हर मनुष्य का योगदान होना चाहिए। बाबा प्रियदर्शी राम जी ने नशा का परित्याग करने का आह्वान करते हुए बताया नशा मनुष्य को खोखला करता है इस सामाजिक बुराई से घर परिवार समाज राष्ट्र सभी की क्षति है।

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