पूजा विधान व तुपकी की सलामी के साथ गुडि़चा मंदिर पंहुचेगे भगवान श्रीजगन्नाथ

जगदलपुर 19जून  बस्तर गोंचा महापर्व में 20 जून को श्रीगोंचा रथयात्रा पूजा विधान के साथ भगवान श्रीजगन्नाथ, माता सुभद्रा एवं बलभद्र स्वामी के विग्रहों को रथारूढ़ कर रथ परिक्रमा मार्ग से होते हुए गुडि़चा मंदिर सिरहासार भवन में स्थापित किया जाएगा। बस्तर गोंचा पर्व में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व माता सुभद्रा श्रीमंदिर से विश्व भ्रमण के लिए निकलने पर उनके सम्मान में तुपकी की सलामी देने की परंपरा का निर्वहन किया जाता है।

भगवान जगन्नाथ के रथारूण होने पर तुपकी चलाने की एक अनूठी परंपरा दृष्टिगोचर होती है, जो कि बस्तर गोंचा पर्व का मुख्य आकर्षण है। तुपकी चलाने की परंपरा बस्तर को छोडक़र पूरे विश्व में अन्यत्र कहीं भी नहीं होती। दीवाली के पटाखे की तरह तुपकी की गोलियों से सारा शहर गूंज उठता है। यह बंदूक रूपी तुपकी पोले बांस की नली से बनायी जाती है, जिसे बस्तर के ग्रामीण तैयार करते हैं। इस तुपकी को तैयार करने के लिए, ग्रामीण गोंचा पर्व के पहले ही जुट जाते हैं तथा तरह-तरह की तुपकियों का निर्माण अपनी कल्पना शक्ति के आधार पर करते हैं।

उल्लेखनिय है कि श्री गोंचा रथयात्रा पूजा विधान एवं बाहुड़ा गोंचा रथयात्रा पूजा विधान में तुपकी की सलामी देने की परंपरा है। ग्रामीणों द्वारा बनाई जाने वाली इन तुपकियों में आधुनिकता भी समाहित होती है, ताड़ के पत्तों, बांस की खपच्ची, छिन्द अर्थात् देशी खजूर के पत्ते, कागज, रंग-बिरंगी पन्नियों के साथ तुपकियों में लकड़ी का इस्तेमाल करते हुए उसे बन्दूक का रूप देते हैं।

ग्रामीण अपने साथ लायी तुपकियों में से एक अपने लिए रखकर शेष लोगों को बेच देते हैं, इससे उन्हें कुछ आर्थिक लाभ भी हो जाता है। गोंचा पर्व के दौरान कागज और सनपना की पन्नियों से सजाई गई रंग-बिरंगी विभिन्न आकार-प्रकार की तुपकियां लुभावनी लगती हैं। सम्पूर्ण भारत में बस्तर के अलावे तुपकी चालन की अनूठी परंपरा और कहीं नहीं है। ग्रामीण महिलाएं तुपकी के लिए पेंग के गुच्छे बेचती नजर आती हैं।