आसाढ़ के चूके किसान, डार के चूके बेंदर…

खेती और किसाना का काम शुरू हो चुका है। खेतों में त-त, त-त की आवाजों के साथ ट्रेक्टरों की गड़गड़़ाहट भी सुनाई दे रही है। वर्षा पर किसानों का जीवन निर्भर होता है और देश की अर्थव्यवस्था। ग्रामीण इलाकों में वर्षा के संकेत और पैदावार की मात्रा का अंदाजा लगाने के अनेक परंपरागत साधन हैं। भले ही अब मौसम विभाग की भविष्यवाणियों को भी गौर से सुना जाता है किंतु अपने पुरखों के परखे तरीकों को भी आज मान्यता दी जाती है। खासतौर पर गांव के सियान हवा का रूख, पशु-पक्षियों के व्यवहार और जीव-जंतुओं की हरकतों से सटीक अनुमान वर्षा का लगाते रहे हैं। इस संदर्भ में अनेक लोकोक्तियां भी प्रचलित हैं-

आसाढ़ के चुके किसान,
डार के चूके बेंदरा।।

जो किसान आषाढ़ में खेती से चूक जाएं और जो बंदर डाल पकडऩे से चूक जाए उसकी हानि तय है।

जेठ चलै पुरवाई।
तब सावन धूर उड़ाई।।

अर्थात् जब जेठ की धाम में ठंडी हवाएं चलने लगे तो समझ लें सावन में वर्षा की संभावना इतनी कम होगी कि गलियों में धूल उड़ने लगेगी। और जब मघा नक्षत्र में वर्षा होती है तब मान्यता है कि भरपूर पैदावार होगी।

जे कहूं मघा म बरसे जल।
सब अनाज म होवै फल।।

मघा नक्षत्र में होने वाली वर्षा के महत्व को इन पंक्तियों से समझ सकते हैं-

मां के परुसे अउ मघा के बरसे
मां के द्वारा परोसे गए भोजन से जिस प्रकार संतान पुष्ट होती हैं उसी तरह मघा नक्षत्र में हुई वर्षा से फसलों को पुष्टता मिलती है। अच्छी वर्षा को परखने का एक अन्य तरीका था-

ढेला उप्पर चील बोलै।
गली-गली म पानी डोलै।।

जब किसी ढेले-मिट्टी या पत्थर के टुकड़े के ऊपर बैठकर चील बोलता है उस वर्ष इतनी वर्षा होती है कि गली-गली में पानी भर जाता है। बारिश की मात्रा का अंदाजा लगाने का यह उपाय तो और भी निराला है-



करसा के पानी गरम,
चिड़ी उड़ावै धूर।
चांटी अण्डा ले चढै़,
बरखा होय भरपूर।।


जिस साल करसी-मटके का पानी ठंडा न हो, चीड़िया धूल में लोट-पोट करने लगे और चीड़िया अपने अण्डे लेकर ऊंचे स्थान की ओर जाती दिखे तो समझ लें उस वर्ष पानी खूब बरसेगा।

आर्दा बरसै, पुनर्वसु तपै।
तेखर अन कोनो खा न सकै।।

आर्द्रा नक्षत्र में यदि वर्षा हो और पुनर्वसु नक्षत्र में अच्छी धूप पड़े तो धान की इतनी विपुल फसल होती है कि वह समाप्त ही नहीं होता। जब स्वाति नक्षत्र में अच्छी वर्षा हो जाए तब निश्चित मान लिया जाता है कि बहुत बढ़िया फसल होगी और किसान मालामाल हो जाएंगे।



एक पानी जो बरसे स्वाती।
पहिरै किसान सोन के पाती।।

छत्तीसगढ़ में वर्षा के लिए आषाढ़, सावन और भादो माह महत्व के होते हैं। इस महिनों के नक्षत्रों में होने वाली बारिश भी पुराने लोगों को संकेत देती रही है। वर्षा तो किसानों की मनमर्जी हो नहीं सकती। कभी कम, कभी अधिक और कोई वांछित नक्षत्र बिना बारिश गुजर जाता है। किंतु-

उत्तरा बपुरा उतर पुतर गे,
हथिया गइस मुंहजोर।
चित्रा बपुरा राज करिस,
तब परजा लानिस बहोर।।


उत्तरा और हस्त नक्षत्र में वर्षा वांछित होती है, यदि ये नक्षत्र दगा दे जाएं मगर चित्रा में अच्छी वर्षा हो जाए तो अच्छी फसल की आशा की जा सकती है। अकाल के भय से जो खेती छोड़ पलायन कर गए हैं वे खेतों की ओर लौट सकते हैं।

हथिया बरसै तीन जात।
कोदो, तिली अउ कपास।।

मान्यता रही कि हस्त नक्षत्र में जब वर्षा हो तब कोदो, तिल और कपास की भरपूर पैदावार की आशा की जा सकती है। आज भी छोटे बच्चों को मालिश करने और जड़ी-बुटियों से युक्त घुट्टी पिलाने की प्रथा छत्तीसगढ़ में है। इससे शरीर पुष्ट होता है।

तेल-फूल ले लइका बाढ़ै,
पानी ले बाढै़ किसान।।
खान-पान मा सगा-कुटुंबी,
करमैता बढै़ किसान।।

जिस प्रकार छुटपन में ही बच्चों की पुष्टता के लिए तेल-मालिश आवश्यक है उसी प्रकार धान की बढ़वार के लिए पानी। खान-पान अर्थात् रिश्तेदारों के घर आने-जाने से प्रेम संबंध प्रगाढ़ होते हैं। इसी तरह कर्मवीर किसानों को ही सफलता मिलती है। छत्तीसगढ़ में कहा भी जाता है-‘खेती अपन सेती।’ अर्थात् खेती-किसानी का काम दूसरों के भरोसे नहीं होता, हर कार्य की निगरानी स्वयं किसान को करना चाहिए।

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