रायपुर ,01 जून । आदिनाथ दिगम्बर जैन बड़े मंदिर पचांयत ट्रस्ट मालवीय रोड मे वृहस्पतिवार, वीर निर्माण २५४९ ज्येष्ठ शुक्ल द्वादशी को 7 वे तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ भगवान का जन्म और तप कल्याणक महा महोत्सव धूम धाम सें मनाया गया। इस अवसर पर श्रीजी की शांतिधारा अभिषेक कर सुपार्श्वनाथ भगवान का जन्म और तप कल्याणक पूजन कर महाअर्घ श्रीफल चढ़ाया गया। तत्पश्चात महाआरती की गई।
ट्रस्ट कमेटी के उपाध्यक्ष श्रेयश जैन बालू एवं मीडिया प्रभारी प्रणीत जैन ने बताया की 7 वे तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ भगवान को मोक्ष जाने के पूर्व उनकी वाणी मे आया और यह उपदेश भव्य जीवो को दिया की समस्त सांसारिक जीवो की कोई ना कोई इंद्री अवश्य होती है जो शरीर का चिन्ह आत्म का ज्ञान करवाने मे सहायक होती है वो इन्द्रिया है। इन्द्रिया 5 है स्पर्शन रसना घ्राण चक्षु कर्ण। जिसके छू जाने पर हल्का भारी रुखा चिकना कड़ा नरम का ज्ञान होता है वह स्पर्शन इन्द्रिय है। जिसके खट्टा मीठा कड़वा कैसेला और चरपरा स्वाद जाना जाता है वह रसना इन्द्रिय है।
जिससे काला नीला लाल सफ़ेद रंगों का ज्ञान हो वह चक्षु इन्द्रिय है। जिससे सुनाई देता हो वह कर्ण इन्द्रिय है। जिससे सुगंध दुर्गन्ध आदि का ज्ञान होता हो वाह घ्राण इन्द्रिय है। स्पर्श, रस, गंध, और वर्ण तो पुद्गल के ही गुण है और इन्द्रियों के निमित्त सें तो बस पुद्गल का ज्ञान होता है। आत्मा तो अमोतिक चेतन पदार्थ है जिसमे स्पर्श रस गंध वर्ण और शब्द नहीं है। इन्द्रिय आत्मा को जानने मे सक्षम नहीं है। आत्मा इन्द्रिय ज्ञान सें नहीं बल्कि अतिंद्रिय ज्ञान सें जानने मे आती है। अतिंद्रिय ज्ञान और अतिंद्रिय आनंद ही प्रगट करने योग्य उपादेय है। प्रत्येक जीव को आत्मा सें भिन्न अपना त्रिकाली लक्ष्य करने योग्य है और वही सर्वजीवो का परम कर्तव्य है। आज के कार्यक्रम मे श्रेयस जैन बालू, दिलीप जैन,प्रवीण जैन (मामा जी ) सुजीत जैन प्रणीत जैन, नरेन्द्र जैन अक्षत जैन, उपस्थित थे।
[metaslider id="347522"]