Mothers Day : मां का संकल्प बना विकलांग बेटी के पैरों की बैसाखी

रायगढ़ ,14 मई   सत्तर के दशक में बेटी का पैदा होना अभिशाप माना जाता था कई बेटियां पैदा होते ही मार दी जाती थी । उस दौर में एक तीन वर्षीय बेटी पोलियो की वजह से दोनो पैरो से चल नही पाती बल्कि जानवर की तरह सरकते हुए चलना उसकी नियति बन गई थी। जी हां ये हकीकत है उस जस्सी फिलिप्स की जिनकी माता मदर टेरेसा से कम नही थी। श्रीमती जस्सी फिलिप का नर्स मां सारामा वर्गीस और मध्यमवर्गीय परिवार के मलयाली पिता एमबी वर्गीस के दूसरी संतान के रूप में सन 1966 में जन्म हुआ। दोनो पैरो से चलने में विवश बेटी का लालन पालन शिक्षण और पैरो के सहारे के बिना ही उसे खड़े करना सबसे बड़ी चुनौती थी। कठिन चुनौतियां भी एक मां के सामने किस तरह नतमस्तक जो जाती है यह जस्सी फिलिप्स की नर्स मां ने साबित कर दिया।

अपनी बेटी को कंधे में बैठाकर स्कूल ले गई और विकलांग बेटी के लिए मां में उस दौर में स्कूटर चलाना सीखा। अपनी नर्स मां के सेवा के जज्बे को करीब दे देखते देखते जस्सी फिलिप्स के जीवन में सेवा का संस्कार ने ऐसी गहरी पैठ बनाई कि व्हील चेयर में बैठे बैठे ही जस्सी कई बेसाहरा लोगो के जीवन का सहारा बन गई। गोदी में रोजाना टाउनहाल स्कूल ले जाने वाली नर्स मां हर दिन अपनी ड्यूटी पूरी करने के बाद  विकलांग बेटी को स्कूल लेने भी जाती थी। सच एक मां की हिम्मत के सामने मानो  विधाता भी नतमस्तक होगा जिसने तीन वर्षीय बेटी को विकलांग होने पर विवश कर दिया। जस्सी के लिए सरकते हुए जमीन में चलना मानो इंसान का जीवन तो नाम मात्र के लिए ही था।

मां के प्रेम के सामने जस्सी अपने दर्द के भूल जाती थी। फिर इलाज का दौर शुरू हुआ। केरल के सबसे बड़े आर्युवेदिक हॉस्पिटल में इलाज शुरू हुआ। तीन सालो तक वो मां एक विकलांग बेटी के इलाज के लिए गोद में लेकर दर दर की ठोकर खाती रही। ट्रेन में सफर के दौरान बेटी को गोद में लेकर चढ़ना उतरना उस मां के लिए कितना कठिन रहा होगा। बॉम्बे के डॉ. ढोलकिया ने ऑपरेशन किया। अजी अली पार्क स्थित हॉस्पिटल के जर्मन डॉक्टर ने भी पैरो का इलाज किया। चिकित्सा के साथ साथ मां ने शिक्षा का भी पूरा ख्याल रखा।जमीन में कीड़े मकोड़े की तरह रेंगने की अंतहीन पीड़ा से अंततः मां के साहसिक प्रयासों से मुक्ति मिली और बैसाखी के सहारे खड़े हो सकी।दरअसल ये बैशाखी नही उस नर्स  मां की हिम्मत ही थी जो जस्सी को खड़े कर पाई।

जस्सी की  पढ़ाई पूरी करवाने के लिए मां ने  सायकल व  लूना सीखी ताकि  समय से स्कूल कॉलेज लाना ले जाना कर सके।  जस्सी फिलिप्स ने गुरु घासीदास यूनिवर्सिटी से एम ए अर्थ शास्त्र से किया। शादी लड़की के जीवन के लक्ष्य होता है विकलांग लड़की की शादी मानो समंदर सुखाने जैसा कठिन कार्य था जस्सी शादी करके दूसरो पर भार नहीं बनना चाहती थी l लेकिन जस्सी के नर्स मां के जिद के आगे जस्सी को शादी के लिए झुकना पड़ा।

दिव्यांग विकलांग  बच्चो को अक्सर अंधकार में जीने के लिए छोड़ दिया जाता है। लेकिन जस्सी की नर्स  माँ ने कठिन संघर्ष के जरिए जस्सी के अंदर सेवा का ऐसा बीजा रोपण किया जो आज वट वृक्ष बन गया।व्हील चेयर में बैठी जस्सी फिलिप्स रिहैब फाऊंनडेशन की स्थापना कर बेबस लोगो का सहारा बनी। कोरोना काल के दौरान व्हील चेयर में बैठे बैठे जस्सी फिलिप्स ने  हजारों मास्क सिलकर निःशुल्क वितरण कर एक आदर्श मिशाल पेश की । बुजुर्गो के लिए संस्था चलाने वाली जस्सी बहुत से बुजुर्गो के इलाज से लेकर निष्कासित बुजुर्गो को कानूनी सहायता उपलब्ध कराती है। घर से निष्कासित बुजुर्गो को पनाह देने वाली जस्सी के लिए पीड़ित मानव की सेवा सबसे बड़ा धर्म है।

दूसरो की पीड़ा को दूर कर सुकून का एहसास करने वाली जस्सी समाज में उन लोगो के लिए प्रेरणा स्त्रोत है जो सक्षम होते हुए पीड़ित मानव  की सेवा नही कर पाते। जस्सी के दो बेटे है उनके पति सेवा कार्यों में साए की तरह साथ रहते है l उस दौर को जस्सी याद करती है जब मंगल सूत्र बेचकर सेवा कार्य शुरू किया। जन सहयोग से सेवा का कार्य करने वाली जस्सी के कार्यों के प्रशासनिक अधिकारियों ने समय समय पर जमकर सराहा है।