भगवान राम रघुवंश के मणि हैं और लक्ष्मण फणी : स्वामी रामस्वरूपाचार्य

परमात्मा जड़ को चेतन और चेतन को जड़ कर देते हैं

कवर्धा । रुद्र महायज्ञ, श्रीमद्भागवत ज्ञान सप्ताह, श्री रामकथा, योग शिविर के चौथे दिन कामदगिरि पीठाधीश रामानंदाचार्य स्वामी रामस्वरूपाचार्य ने कहा कि भगवान श्रीराम के साथ लक्ष्मण और भरत के साथ शत्रुहन रहते हैं। श्रीराम और लक्ष्मण तथा भरत और शत्रुहन दोनों एक दूसरे की रक्षा करते हैं। वन में लक्ष्मण की रात में जाग जाग कर राम की रक्षा करते हैं। और शत्रुहन अयोध्या में जागते रहते हैं। भगवान राम रघुवंश के मणि हैं और लक्ष्मण फणी हैं। मणि की रक्षा फणी करते हैं।



गणेशपुरम में गणेश तिवारी द्वारा आयोजित श्रीरामकथा के चौथे दिन स्वामी रामस्वरूपाचार्य ने कहा कि जनकपुर में सीता स्वयंवर के समय जब परशुराम आए, तो लक्ष्मण आए और उन्होने मोर्चा संभाल लिया। राम वीर हैं, गंभीर हैं। परशुराम ने क्रोध में आकर पूछा कि जिसने धनुष तोड़ा है, वह अलग हो जाए। नही ंतो सभी राजाओं पर फरसा चलेगा। परशुराम का क्रोध देखकर सभी राजा और जनकपुर थर थर कांपने लगे। राम दयालु और कृपालु हैं। यहां भी वे सबको बचाएंगे। परशुराम के कहते ही राम सामने आ गए। श्रीराम को देखते ही परशुराम मौन हो गए, स्तब्ध हो गए। आंखों से आंसू झरने लगे। हाथ ढीला हो गया, तो फरसा कैसे चलेगा?



परशुराम ने कहा कि तुम तो धनुष नहीं तोड़ सकते। पुष्प से अधिक कोमल तुम्हारे हाथ धनुष नहीं तोड़ सकते। तब राम ने कहा कि धनुष तोड़ने वाला कोई आपका दास ही होगा। परशुराम ने कहा कि धनुष तोड़ने वाला कोई मेरा दास नहीं शत्रु होगा। तभी पीछे खड़े लक्ष्मण को देखकर परशुराम ने पूछा कि क्या तूने धनुष तोड़ा है। लक्ष्मण शेषनाग का रूप हैं।



लक्ष्मण कहते हैं कि पुरानी हो चुकी इस धनुष पर कैसी ममता। परशुराम सोचते हैं कि फरसा वाले हाथ आगे क्यों नहीं बढ़ रहा है। हाथ ने कहा कि बुद्धि से पूछो। बढ़ना है या नही। बुद्धि ने कहा नहीं, नहीं। परमात्मा ने जड़ को चेतन और चेतन को जड़ कर दिए हैं।  



धनुष के पास राम जब पहुंचे तब धनुष पर बैठे भगवान शंकर ने उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। उसी समय धनुष स्वयं ही उनके हाथ में आ गया और राम के छूते ही धनुष टूट गया। परशुराम के आंख बंद कर विचार करते समय सभी दृश्य एक के बाद एक सामने आने लगा। उन्होने देखा कि राम मेरे ईष्ट भगवान शंकर के भी ईष्ट हैं। गुरु के गुरु हैं। हे राम आज आपने मेरे अंतरमन के अंधकार को दूर कर दिया। सभी विरोधी श्रीराम के चरणों में गिर पड़े।



गद्दारी करने वाले घुन की तरह होते हैं –


गद्दारी करने वाले घुन की तरह होते हैं। जब गेहूं चक्की में पीसा जाता है, तो गेहूं खिलखिलाता है। वह कहता है कि मैं तो पीसने के लिए ही बना हूं। लेकिन गेहूं के साथ घुन पीसता है, तो उसे गेहूं को अंदर अंदर ही खोखला करने की सजा मिलती है। ऐसे कितने ही नेतृत्व है, जो खजाना को खोखला कर दिया है। देश और राष्ट्र को खोखला किया है। वह परमात्मा की चक्की में जरूर पीसा जाएगा। इसलिए समाज व देश को खोखला करने की कोशिश न करो। ऐसे लोगों को समझने और सुधरने की जरूरत है।  



कथा में स्वामी राजीवलोचन दास महाराज, स्वामी नरेन्द्र देव जी, आयोजक गणेश तिवारी, श्रीमती नेहा तिवारी, पूर्व विधायक मोतीराम चंद्रवंशी, पूर्व विधायक अशोक साहू, भाजपा जिलाध्यक्ष अनिल सिंह, रामकुमार भट्ट, संतोष पटेल, श्रीमती रेखा पाण्डेय, सुरेश चंद्रवंशी, राजकुमार वर्मा, कृष्णा धुर्वे, राजकुमार बघेल, संतोष मिश्रा, विमल तिवारी, श्रीमती सरला तिवारी, आशुतोष गुप्ता, रूपेश जैन, हरि तिवारी सहित हजारों की संख्या में श्रोतागण उपस्थित थे।