मित्रता करनी हो तो श्री कृष्ण से सीखें ,दो मुट्ठी चावल के बदले सुदामा को बना दिया दो लोकों का स्वामी -नूतन पांडेय

0.माता कर्मा मंदिर दीपका में महतो परिवार के संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह में उमड़ रही आस्था

कोरबा, 07 मई । मित्रता करनी हो तो भगवान कृष्ण से सीखें,जिन्होंने दो मुट्ठी चावल के बदले सुदामा को दो लोकों का स्वामी बना दिया। वहीं स्वाभिमानी महान ब्राम्हण सुदामा ने भी बाल्यकाल में श्रापित चने को कृष्ण से छिपाकर स्वयं खाकर पाप का अकेले भागीदार बन सच्ची मित्रता का अनूठा उदाहरण पेश कर समूचे जगत को सीख दी। उक्त बातें ग्राम तिलकेजा से पधारे प्रख्यात कथावक्ता पंडित नूतन कुमार पांडेय ने श्री माता कर्मा मंदिर प्रांगण बुधवारी बाजार दीपका में ग्राम सलिहाभांठा निवासी भागीरथी महतो श्रीमती शांति देवी महतो द्वारा कुल एवं आत्मकल्याण निमित्त आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ सप्ताह के छठवें दिवस शनिवार को आयोजित सुदामा चरित्र कथा प्रसंग के दौरान कही ।

आचार्य श्री पांडेय ने कहा कि चाहे हम कितने भी शिक्षित हों ,धनवान हों,उच्च पदों पर आसीन हों मित्र के प्रति हमेशा विनम्र समभाव रखना चाहिए । आचार्य श्री पांडेय ने कहा कि ईश्वर को धन दौलत सोने चांदी से नहीं तौला जा सकता। भगवान श्री कृष्ण को उनकी अहंकारी पत्नी सत्यभामा तमाम सोने चांदी रत्नों से नहीं तौल सकीं। माता रुक्मणी ने तुला में तुलसी के पत्ते रखा तो पलड़ा भारी पड़ गया।सत्यभामा का सामंतक मणी से प्राप्त होने वाले धन का अहंकार टूट गया। भगवान को सिर्फ सती वृंदा रूपी तुलसी से ही तौला जा सकता है। आचार्य श्री पांडेय ने कहा कि ब्राम्हणों की रक्षा निमित्त भगवान वासुदेव जिस अभिमानी जरासंध को 17 बार पराजित कर चुके थे अट्ठारहवें बार हार मानकर चल गए। रणछोर कहलाना स्वीकार किए। आचार्य श्री पांडेय ने कृष्ण सुदामा चरित्र का संगीतमय वर्णन किया।

इस दौरान कृष्ण -रुक्मणी ,सुदामा की मनोहारी झांकी निकाली गई। शशि गुरूवारिन जायसवाल के सुपुत्र कमल कृष्ण बने। मधुसूदन राधा जायसवाल के सुपुत्र शिवम जायसवाल रुक्मणी बने तो वहीं नागेश्वर माला सिंह के सुपुत्र विष्णु ने सुदामा का किरदार निभाया। तीनों ने शानदार किरदार निभाया। अरे द्वारपालों कन्हैया से कह दो कि दर पे सुदामा गरीब आ गया है नामक गीत से साथ सुदामा जैसे ही द्वारिका रूपी कथा प्रांगण पहुंचे ,लोगों ने अभिनय को खूब सराहा। सबकी नजरें सुदामा पर जा टिकीं।

गाने के दौरान कृष्ण ने सुदामा को गले लगाया ,आंसुओं से चरण पखारा और बगल में बिठाकर कुशलक्षेम पूछ भाभी द्वारा लाए चावल की पोटली को सुदामा से छीनकर दो मुट्ठी चावल खाकर कुबेर से भी धनवान दो लोकों का स्वामी बना दिया।मित्र और सुदामा की निश्चल अनन्य भक्ति में खो चुके भगवान श्री कृष्ण जैसे ही तीसरे मुट्ठी की चावल मुख की ओर ले गए रुक्मणी जी ने उनका हाथ रोक बैकुंठ लोक के स्वामी बनाने से रोक लिया। भगवान श्री कृष्ण ने विदा होते समय सुदामा के मस्तष्क से श्री क्षय को मिटाकर यक्ष श्री कर दिया । सुदामा को पहुंचने से इतना कुछ दे चुके वासुदेव ने पूरे सुदामानगरी को भगवान विश्वकर्मा से अलौकिक नगरी बनवा दिया।आचार्य श्री पांडेय ने कहा कि हम सभी को भी ऐसी ही मित्रता निभानी चाहिए ,विपत्ति में पड़े मित्र की ऐसी सहायता करें कि उनको संकट के निवारण का आभाष कराए बगैर उनकी विपत्ति दूर कर दें ।

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