रायगढ़,02 मई । गोधन न्याय योजना को केवल आंकड़ों के बल पर सफल बताने की मुहिम छेड़ दी गई है। गोबर खराब होने के बाद उसे वर्मी कम्पोस्ट बताकर ठिकाने लगाने के लिए किसानों को चुना गया है। अब स्वावलंबी गौठान भी बना दिए गए हैं। जिले में 155 ऐसे गौठानों को स्वावलंबी बता दिया गया है जहां पानी ही नहीं है। ऐसे गौठानों को स्वावलंबी बनाया जा रहा है जो अब अपना संचालन खुद कर सकें। मतलब अब इन गौठानों को शासकीय सहायता नहीं मिलेगी। ये अपनी आय खुद ही जेनरेट करेंगे।
जिले में 209 गौठानों को स्वावलंबी बना दिया गया है। अब ये खुद ही गोबर खरीदेंगे और वर्मी कम्पोस्ट बनाकर बेचेंगे। इसी आय से समूह का संचालन होगा। जिले में 388 गौठानों में से 155 ऐसे हैं जहां पानी ही नहीं है। केवल 233 में ही पानी है। दरअसल जनपद पंचायतों और कृषि विभाग ने मिलकर गौठानों को बेहतर बनाने के बजाय खराब दिया। सरकार ने अब स्वावलंबी गौठान घोषित कर उन्हें खुद ही व्यवस्था करने को कहा है। दस बिंदुओं में शर्तें रखी गई हैं। इसके लिए शर्त है कि गौठानों में पिछले दो महीने में क्रय गोबर को छोडक़र बाकी का वर्मी कम्पोस्ट बनाया गया हो।
तब्दील वर्मी कम्पोस्ट को बेचने के लिए गौठान समिति को सौंपा जा चुका हो। विक्रय किए गए कम्पोस्ट की राशि में से शुद्ध लाभ की राशि बांटी जा चुकी हो। गौठान के पास कम से कम आगामी पखवाड़े तक क्रय गोबर के भुगतान हेतु राशि उपलब्ध हो। सबसे अहम शर्त गौठान में मूलभूत सुविधाओं की है। यहां पानी, शेड, वर्मी टांके के अलावा कम से कम दो अन्य आर्थिक गतिविधियां हो रही हों।
कहीं भी नहीं हैं मवेशी
किसी भी गौठान में पशुओं की उपस्थिति नहीं है। स्वावलंबी गौठानों के लिए शर्त है कि कुल पशु संख्या के आधे की उपस्थिति होनी चाहिए। स्वावलंबी गौठानों को अब शासकीय अनुदान नहीं मिलेगा। इधर कन्वर्जन रेशियो को लेकर हंगामा मचा हुआ है। कृषि विभाग और जनपद पंचायतों के संरक्षण में घपला हुआ है। जहां वर्मी कम्पोस्ट बना ही नहीं है, वहां भी भुगतान हो गया है। जिले में 376 गौठानों और मणिकंचन केंद्रों में 15 ऐसे हैं, जहां कन्वर्जन रेशियो 40 प्रतिशत से अधिक है। वहीं 89 ऐसे हैं जहां यह आंकड़ा 30 प्रतिशत से अधिक है। कई सहकारी समितियों को वर्मी खाद बेच कर सप्लाई ही नहीं की गई है। इसलिए कन्वर्जन और भुगतान का डाटा सही है, लेकिन वास्तविकता अलग है।
[metaslider id="347522"]