स्कूलों में बढ़ रही है भ्रष्टाचारी, मोटी फीस और किताबों व ड्रेस के नाम पर कमीशनखोरी से टूट रही है अभिभावकों की कमर

फर्रुखाबाद । जिले में मोटी फीस और किताबों व स्कूल ड्रेस के नाम पर कमीशनखोरी से अभिभावकों की कमर टूट रही है। पढ़ाई की शुरुआत करने वाले बच्चे पर भी इतना खर्च हो रहा है कि घर का दूसरा खर्च एक तरफ और एक महीने की फीस तथा कॉपी किताबों की कीमत एक तरफ है।

उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार की लाख कोशिश के बाद भी शिक्षा माफिया और भ्रष्टाचारी सुधारने का नाम नहीं ले रहे है। जिसके चलते फर्रुखाबाद में अधिकारियों की सह पर बच्चों की किताबों में टैक्स चोरी करना, निजी स्कूलों की किताबें बेचने का ठेका देना, कई जगह प्राइवेट स्कूलों ने एक महीने के लिए दुकान किराये पर लेकर खोलकर अपने-अपने स्कूल की किताबें बेचना, कच्चा बिल देना आदि शामिल है।

बता दें कि, एक तरफ शिक्षा को हर किसी तक पहुंचाने के लिए शिक्षा का अधिकार जैसे कानून लागू हो रहे है और दूसरी तरफ शुरुआत की सामान्य पढ़ाई भी पहुंच से बाहर हो रही है। इन दिनों स्कूलों में दाखिले का दौर चल रहा है। ऐसे में दाखिला फीस, स्कूल ड्रेस, कॉपी, किताब,और बस्ते के खर्च को मिलाकर हिसाब, किताब की जो लिस्ट अभिभावकों को मिल रही है उसे देखकर तो दिन में ही तारे नज़र आ रहे है और पैरों के नीचे से जमीन खिसक रही है। स्कूल प्रबंधन और दुकानदारों की सेटिंग में कमीशनखोरी का खेल तेजी का साथ चल रहा है। कान्वेंट स्कूल चाहे यूपी बोर्ड का हो या सीबीएसई या आईसीएसई का सबका रवैया एक जैसा है। स्कूल प्रबंधन और दुकानदारों की मिलीभगत के चलते अभिभावकों की जेब पर डाका डाला जा हा है।

बुकसेलर अभिभावकों को किताब खरीदने पर किसी भी तरह की कोई छूट नहीं दे रहे है।अलबत्ता उनसे जीएसटी के नाम पर पैसा वसूल रहे है। जबकि रसीद के नाम उन्हें कच्चा बिल थमाया जा रहा है। अभिभावकों ने कच्चे बिल और मनमाने दाम की शिकायत भी की है। बुकसेलर के साथ बच्चों की ड्रेस और शूज में मनमाना पैसा वसूला जा रहा है। किताब, कापी, स्टेशनरी और बैग की कीमतों में किसी भी तरह की छूट नहीं है।

शहर के नामचीन स्कूल में पढ़ रहे एक बच्चे के पिता ने बताया कि दुकानदार फिक्स प्राइज से ज्यादा पैसा वसूल रहे है। इतना ही नहीं स्कूल प्रबंधन ने दुकान भी निर्धारित कर रखी है। यूनिफार्म के नाम पर दुकानों में पचास से लेकर साठ फीसदी तक मुनाफाखोरी की जा रही है। शिक्षा माफियाओं ने पहले से दुकानें फिक्स कर रखी हैं। यूनिफार्म की कीमत भी शिक्षा माफिया और दुकान संचालक मिलकर तय करते हैं। इसमें स्कूल का भी कमीशन जुड़ा होता है। शहर की कुछ दुकानों के पास इसका ठेका है।

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