बासी काबर खावन..?

-सुशील भोले

आय ए ह जबर पुष्टई के जेवन

जे मनखे मन हमर छत्तीसगढ़ के पारंपरिक जेवन ‘बासी’ ल सरहा पदार्थ  मानथें, वोला खाये ले छिनमिनाथें या खाये ले मना करथें, असल म अइसन मनखे मन ए अतिउत्तम खाद्य पदार्थ के गुन अउ पौष्टिकता ले अनजान हें.आयुर्वेद के जानकर डॉ. सुरेन्द्र यदु जी के कहना हे- “मेरे जीवन भर के अनुभव से यह सिद्ध हुआ है कि बासी सड़ा हुआ भोजन नहीं, अतिउत्तम खाद्य प्रसंस्करण है.” 

 वैज्ञानिक शोध ले ए जानकारी मिले हे के चॉंऊर म

कार्बोहाइड्रेट  79•2– 78℅,

खनिज पदार्थ  0•5–0•7℅

फाइबर   0–0℅

कैल्शियम   0•01– 0•01℅

फॉस्फोरस   0•11–0•17℅

प्रति 100 ग्राम में—–

लौह तत्व    1•0–2•8mg

विटामिन बी   20–60 lU

प्रति 300 ग्राम में–

 विटामिन A — 0–4  IU

कैलोरी प्रति 100 ग्राम- 348- 351

ए ह चाॅंउर के वैज्ञानिक विश्लेषण आय. फेर हमन सोज्झे चाॅंउर ल नइ खावन, भलुक वोला रांध के खाथन. ए रंधई-चुरोई ह एक किसम के प्रसंस्करण क्रिया आय।

प्रसंस्करण ले वो पदार्थ के गुण-धर्म बदल जाथे. एकरे सेती चाॅंउर के उपरोक्त वैज्ञानिक निर्धारण ल व्यवहारिक नइ माने जा सकय। 

चाॅंउर ल रांध के या पका चुरो के कतकोंअकन  खाद्य पदार्थ बनाये जाथे। उन सबो के गुण, स्वाद अउ पुष्टई म अन्तर होथे । एकरे सेती चाॅंउर ले बने जम्मो किसम के  व्यंजन या कहिन खाये के जिनिस मन के पौष्टिकता के वैज्ञानिक निर्धारण अभी करे जाना बांचे हे।

डाॅ. यदु के कहना हे- आयुर्वेद म अलग-अलग  रोग मन म पथ्य के रूप में चाॅंउर के अलग अलग प्रकल्प दिए जाथे. जइसे-

भात- चाॅंउर ल पानी म डबका के या भाप म चुरो के भात बनाए जाथे, एला दार-साग आदि खाये के जिनिस मन संग खाये जाथे। ए ह एक स्वस्थ मनखे खातिर पूर्ण आहार होथे।

खिचरी- चाॅंउर, दार, कुछ साग-भाजी, नून, मिरचा, हरदी आदि ल एके संग मिंझार के थोरिक पानी संग चुरोए जाथे, उही ल खिचरी कहिथन. जेन रोगी के जठराग्नि मन्द या शिथिल हो जाथे, वोला सुपाच्य अउ पूर्ण पौष्टिक आहार के रूप म इही खिचरी या कृशरा ल दिए जाथे.

पेज- एक सामान्य मनखे जतका चाॅंउर खाथे, वोकर पाव भर या एक चौथाई भाग ल चार गुना पानी म चुरोए जाथे, उही ल पेज या यवागू कहे जाथे। ए ह अल्प पौष्टिक अउ जादा सुपाच्य होथे। कमजोर अउ कम जठराग्नि वाले रोगी ल अइसने पेज दे के  नियम हे।

घोटो- थोरकुन चाॅंउर ल दस गुना पानी म बनेच बेर ले चुरोए जाथे। चाॅंउर के दाना मन कहूँ दिखत राहय, त उनला घोटनी म बने घोट के पीए के लइक बना लिए जाथे। इही ल घोटो या पेया कहे जाथे। ए ह थोरकुन अन्न म घलो पेट भरे के अच्छा साधन आय। ए ह सुपाच्य घलो जादा होथे।

 पसिया:- कुछ लोगन चाॅंउर ल जादा पानी म रांध के वोकर पानी जेला पसिया कहिथन, वोला निथार दथें। निथारे के ए  प्रक्रिया पसाना कहे जाथे, अउ ए पसाये ले निकले मण्ड ल पसिया कहे जाथे। ये ह सबले जादा सुपाच्य होए के संगे-संग पौष्टिक घलो होथे ।

घोटो अउ पसिया म नून डार दिए जाय त ए ह  Oral  rehydration खातिर अति उत्तम कार्य करथे। डॉ. यदु कहिथें- ‘मैं अपने चिकित्सा अभ्यास में इसका प्रयोग करता हूँ। अतिसार वमन (उल्टी) के रोगी शरीर का जलीय अंश निकल जाने से अत्यधिक दुर्बल हो जाते हैं साथ ही उनकी अंतड़ियों से पाचक रस मल के साथ निकल जाने के कारण जठराग्नि अत्यन्त क्षीण हो जाती है। तब oral rehydration अथवा intraveinous rehydration दिया जाता है। इस प्रकार दिए जाने वाले rehydration में पौष्टिकता अत्यल्प होती है। यदि रोगी मुख मार्ग से ले सकता हो तो पेया या मण्ड नमक डालकर देने से रोगी की स्थिति से  शीघ्र सुधार होता है और पाचन की समस्या भी नहीं होती।’

आवश्यकता के मुताबिक ही आविष्कार होथे-

छत्तीसगढ़ उष्ण कटिबंधीय राज्य आय, इहाँ के निवासी मन जादा करके खेती-किसानी ले जुड़े हें। आदर्श विधि ले जेवन बनाना अउ वोकर उपयोग करना इहाँ के जीवन शैली संग मेल नइ खावय। बिहनिया ले संझा तक खेत खार म खटने वाला मनखे ताजा गरमा-गरम जेवन के व्यवस्था कइसे कर सकथे, एकरे सेती वोहा अपन जीवन पद्धति के अनुरूप वैकल्पिक व्यवस्था कर लेइस। बोरे अउ बासी ह वोकर वैकल्पिक व्यवस्था बनिस. सैद्धांतिक रूप ले बासी अन्न के खवई ल निषिद्ध माने जाथे, फेर ए सिद्धांत ह बोरे अउ बासी म लागू नइ होवय। भात ल गरम ही खाना चाही। ठण्डा हो जाय के बाद वोकर स्वाद अउ पौष्टिकता दूनों कम हो जाथे, काबर ते उंकर जलीय अंश सूख जाथे। कहूँ भात ठण्डा होय लागे उही बेरा म वोमा बने अकन पानी डार दिये जाय त वोमा विशिष्ट स्वाद अउ पौष्टिकता के निर्माण होथे। एमा नून, गोंदली डार के अचार, चटनी या साग-भाजी संग खाये म गजबेच स्वादिष्ट होथे अउ एकर पौष्टिकता घलो बने रहिथे। एमा दही या मही डार के खाए ले अउ स्वादिष्ट हो जाथे।

भात ल पानी म बोरे ले वो हा बोरे बनथे अउ छः घंटा ले जादा बेरा बीत जाय म इही बोरे ल ही बासी कहे जाथे। बासी म चाॅंउर के fermentation होए के सेती खमीर उठथे, तब वोमा थोकन खट्टापन आ जाथे। तब ए हा अउ जादा सुपाच्य अउ ऊर्जादायक बन जाथे। एकरे सेती छत्तीसगढ़ म बासी खवई ल प्राथमिकता दिए जाथे।

बोरे या बासी खाये ले प्यास कम लागथे। एकर ले सिद्ध होथे के बासी पुनर्जलीकरण के उत्तम साधन आय. लू म गोंदली (प्याज ) के उपयोगिता  ले सबो झन परिचित हावन। हमन देखे हावन के बासी खवइया कमइया या श्रमिक के कार्यक्षमता जादा च होथे। ए ह अनुभव सिद्ध सत्य आय के, ‘बासी ह सड़े होय जेवन नहीं, भलुक अति उत्तम खाद्य प्रसंस्करण आय।’

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