विधि निर्माण संसद का विशिष्ट विशेषाधिकार : उपराष्ट्रपति

नई दिल्ली । उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने सार्वजनिक नीति के मामलों में नेतृत्व प्रदान करने और बड़े पैमाने पर समाज के कल्याण को लेकर लोक प्रशासन का मार्गदर्शन करने के लिए विधायी निकायों की जरूरत पर जोर दिया है।

उन्होंने आज नई दिल्ली स्थित भारतीय लोक प्रशासन संस्थान (आईआईपीए) में दूसरा डॉ. राजेंद्र प्रसाद स्मृति व्याख्यान दिया। उपराष्ट्रपति ने इस बारे में सावधान किया कि लोकतंत्र के मंदिरों को बहस, चर्चा और संवाद का मंच होना चाहिए।

उन्होंने कहा, अगर वे व्यवधान, अशांति के आगे झुक जाते हैं, तो खाली जगह को भरने के लिए आसपास लोग होंगे और यह लोकतंत्र के लिए एक खतरनाक प्रवृत्ति होगी। श्री धनखड़ ने राजनीतिक दलों से लोगों की बुद्धिमत्ता को कभी भी कम नहीं आंकने के लिए कहा, क्योंकि वे सब जानते हैं कि क्या हो रहा है।

उपराष्ट्रपति ने संविधान के निर्माण में डॉ. राजेंद्र प्रसाद के योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि हमारी संविधान सभा ने तीन वर्षों की अवधि में कुछ सबसे विवादास्पद और विभाजनकारी मुद्दों को बिना किसी गड़बड़ी या व्यवधान के निपटाया था।

उन्होंने राजनीतिक रणनीति के हिस्से के तहत लंबे समय तक व्यवधानों पर अपनी अस्वीकृति व्यक्त की। श्री धनखड़ ने इसे हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों के मूल तत्वों के विपरीत बताया। इसके अलावा उन्होंने विधायिका के सदस्यों से अपने विधायी दायित्वों और पार्टी की बाध्यताओं के बीच अंतर करने की जरूरत पर भी जोर दिया।

श्री धनखड़ ने संवैधानिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए राष्ट्र के तीनों अंगों के बीच एक सहयोगी समन्वय विकसित करने का आह्वान किया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि संवैधानिक शासन तीनों अंगों के बीच स्वस्थ आपसी क्रिया में गतिशील संतुलन प्राप्त करने के बारे में है।

उपराष्ट्रपति ने सभी संस्थानों द्वारा अपने संबंधित क्षेत्र के लिए कर्तव्यनिष्ठ होने की जरूरत पर जोर दिया। श्री धनखड़ ने कहा कि विधि निर्माण, संसद का विशेष विशेषाधिकार है और किसी अन्य संस्था द्वारा इसका विश्लेषण, मूल्यांकन या इसमें हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है।

उन्होंने रेखांकित किया कि जनादेश की प्रधानता, जो उनके प्रतिनिधियों के माध्यम से प्रतिबिम्बित होती है, किसी लोकतंत्र में यह उल्लंघन करने योग्य नहीं है।