रायपुर ,04 मार्च । जिनकुशल सूरि जैन दादाबाड़ी के चारों दादागुरुदेवों की प्रतिमा की अंजनशलाका के पश्चात प्रतिमा को प्रतिष्ठित करने के पहले गद्दी भराने का विधान होता है। जिस स्थान पर मूर्ति विराजमान होती है उसके नीचे एक पाईप भूमि में गहराई तक जाती है। जिसमें सोना चांदी, माणक मोती अन्य रत्न भरे जाने का विधान होता है। जैन परम्परा अनुसार इसे भंडार भरना कहा जाता है। सकल जैन श्रीसंघ अपनी श्रद्धा अनुसार बहुमूल्य सामग्री अर्पित करते हैं। जिसे एकत्र कर लाभार्थी परिवार द्वारा मूर्ति के नीचे भरा जाता है।
चारों दादागुरुदेव जिनदत्त सूरि, मणिधारी जिनचंद्र सूरि, जिनकुशल सूरि व जिनचंद्र सूरि की नवीन प्रतिमाओं तथा 150 वर्ष से ज्यादा प्राचीन जिनकुशल सूरि की प्रतिमा व पगलिया को गद्दीनशीन करने के पूर्व मध्यरात्रि में महेन्द्र कुमार तरुण कुमार, मानस, गौरव, कल्प, गर्वित कोचर परिवार ने सकल श्रीसंघ द्वारा श्रद्धा भाव से अर्पित सोने चांदी व रत्नों को समर्पित किया। दादागुरुदेवों की पांचों प्रतिमाओं व पगलिया को प्रतिष्ठित करने के पूर्व कोचर परिवार ने भंडार भरकर विधान पूर्ण किया । इस अवसर पर सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित थे।
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