कथा को व्यापार बनाकर कर दिया गंदा : शंभूशरण लाटा

रायपुर ,26 फरवरी। कथा क्या नहीं कर सकती। कथा जो कर सकती है वह अन्य कोई नहीं कर सकता। कथा मनुष्य का ह्रदय परिवर्तन कर सकती है और ह्रदय परिवर्तन कोई नहीं करा सकता। यह कलयुग का प्रभाव है इसमें किसी का दोष नहीं। धर्म को केवल कथा ने ही बचा रखा है। कथा व्यापार बन गई, कथा को धंधा बना कर इसे गंदा कर दिया है। आज कथा को नाटक बनाकर रख दिया है। संत शंभूशरण लाटा ने गुढिय़ारी जनता कॉलोनी में रामकथा का वाचन करते हुए ये बातें श्रद्धालुजनों को बताई। उन्होने कहा कि इस कलयुग में लोगों को अपने विवेक से काम लेना चाहिये। किसी कथाकार या गुरु के पीछे नहीं भागना चाहिये आज यह दशा है कि कथाकारों के एजेंट हैं और व कथा का रेट तय करते हैं इससे हमें सावधान रहने की आवश्यकता है।जो पाप हमने किये हों उसका परिणाम भी हमें भोगना होगा।

अंतिम समय में मनुष्य के द्वारा किये गये जितने भी पाप है वहउसके सामने आकर खड़े हो जाते हैं।पाप ने भगवान के बाप को नहीं छोड़ा जो पाप के बारे में नही जानते उनकी बात छोडिये लेकिन जो पाप और पुण्य को जानते और समझते हैं उनकी जवाबदारी है कि इससे कैसे स्वंय भी बचें और दूसरों को भी बचाये। उन्होने कहा कि जो भाग्य का मारा है,जो मंदबुद्धि का है यदि वह कुछ कहे या करे उसको सजा देने के बजाए उससे दूर ही रहना चाहिए क्योंकि भगवान ने पहले ही सजा दे दी है।

शंभूशरण लाटा ने राजा दशरथ के मरणोपरांत श्राद्ध संस्कारों के बारे में कहा कि अंतिम क्रियाकलाप की जो विधि है उसका पालन कर विधि अनुसार उसे पूरा करना चाहिये लेकिन आज ऐसा नही हो रहा कुछ लोग तीन दिन में और कुछ लोग पांच दिन में पूरा कर रहें यही कारण है कि परिवार में शांति नही है। श्राद्धकर्म श्रद्धा के साथ करना चाहिये। उन्होंने कहा कि जीवन में छह व्यवहार परमात्मा की विधि से करने पर ही उसका औचित्य है क्यों कि यह मनुष्य के वश में नही है।जीवन-मरण,लाभ-हानि, यश-अपयश इसे विधि से नहीं पाया जा सकता विधि के साथ-साथ विधाता की सहमति भी जरूरी है। सभी मीरा बाई की तरह नहीं हो सकते कि भगवान उनके विष को अमृत बना दे।उसके लिये मीरा बाई बनना पडेगा ।

शंभूशरण लाटा ने श्रवण प्रसंग पर कहा कि भाग्य से कभी किसी को तकरार नहीं करनी चाहिये जो भाग्य में लिखा है उसे स्वीकार करना चाहिये। भाग्य में नही होने पर यदि वह प्राप्त हो भी जाता है तो भी उपभोग नहीं कर पाता।दूसरा बिना सोचे समझे कभी कोई कार्य नहीं करना चाहिये क्योंकि बाद में पछतावे के अलावा और कुछ हासिल नहीं होता। प्रत्येक मनुष्य को अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिये जिन्होने अपने माता पिता की सेवा नहीं कि एक समय ऐसा आता है जब उसकी संतान भी उनकी सेवा नही करती और वह अकेला पड़े रहता है।

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