Raipur News : मंदिरों में कोई अंतर नहीं होता, सभी भगवान वही फल देते हैं : पं. खिलेंद्र दुबे

रायपुर ,20 फरवरी  मंदिरों में कोई अंतर नहीं होता है, सभी भगवान वही फल देते है जहां तुम पूजा करने जाते हो। भगवान शंकर पूरे संसार व ब्रह्माण्ड का राष्ट्रपति है और उन्हीं के अनुसार यह संसार चल रहा है। आपके पूर्वज मुर्ख नहीं थे, उन्होंने क्रिश्चन, मुस्लिम की गुलामी सही लेकिन कभी धर्म परिवर्तन नहीं किया। बिना चरण धोए कभी सोना नहीं चाहिए और न ही चरण को गीला किए। पाप करने से बड़ा पाप सहना है, उससे पापी बढ़ता है। जो पॉवर किसी भी मंत्र में नहीं है वह मृत्युंजय जप में है। उक्त बातें खमतराई के दोना पत्तल फेक्टरी बम्हदाई पारा में चल रह शिव महापुराण कथा व महाशिवरात्रि रुद्राभिषेक कार्यक्रम के छठवें दिन पंडित खिलेंद्र दुबे ने कहीं।

उन्होंने कहा कि बेटी को माँ शिक्षा देती हैं, घर के बुजुर्ग आज भी बेटियों को शिक्षा देते है कि बेटी पिहर में जाना और हमारी ईज्जत बनाए रखना और इसी के तहत 752 श्लोकों में माँ पार्वती को शिक्षा दी गई है। उत्तम पत्नी वही है जिसके सपने में भी दूसरा पुरुष आता न हो और सिर्फ पति का ही स्थान हो। अपने कुल की मर्यादा के अनुसार ही निर्णय लेना चाहिए, अमर्यादित कार्य नहीं करना चाहिए। विवाह के बाद जब माँ पार्वती भगवान शिव के घर पहुंची तो उन्हें लगा कि घर कहीं और होगा, तब भगवान शिव ने उन्हें कहा कि काहे का मकान आसमान मेरा घर है, ये धरती मेरा वास है क्योंकि राष्ट्रपति है भगवान शंकर पूरे संसार व ब्रह्माण्ड का। चाहे किसी का हाथ, पैर या मुंह, आंख न हो फिर भी उसे खिलाना चाहिए है क्योंकि उसे खिलाने वाला भगवान शंभू है और वही मनुष्य मनुष्य है जो खुद भी सुख रहे और दूसरों के सुख को अपना और दूसरों के दुख को दुख समझे।

पंडित दुबे ने कहा कि बिना चरण धोए कभी सोना नहीं चाहिए और न ही चरण को गीला किए उसे पोछना जरुर चाहिए। जूठा मुंह सोना नहीं चाहिए, आज कल तो आदमी गुटखा खाते-खाते सो जाता है। उत्तम संतान की प्राप्ति के लिए अशुद्ध मुंह नहीं रहना चाहिए। कभी-कभी बड़े अधिकारी मान भी जाते है लेकिन चपरासी काम को रोक देता है, ठीक उसी प्रकार तारकासुर के सेनागण थी जो इंद्रलोक छोड़ना नहीं चाहते थे। जो 6 माताओं का स्तनपान करें उसका नाम है कीर्तिक और इसी को अय्यपा स्वामी, मुर्गन स्वामी भी बोलते है। जो पॉवर किसी भी मंत्र में नहीं है वह मृत्युंजय जप में है।

जो आपके पूर्वजों के देवता है उसकी को मानो
एक व्यक्ति था जो न तो खड़ा हो पाता था और न ही बैठ पाता था। एक दिन वह मुर्गन स्वामी के दर्शन कर लौटा तो पूरी तरह से ठीक हो गया। इसलिए कहता हूं इधर-उधर न भटको, जो आपके पूर्वजों के देवता है उसकी को मानो। जब तुम्हें भगवान ने हिन्दू बनाकर इस दुनिया में भेजा है तो अपने पूर्वजों के धर्म को मिट्टी में मत मिलाओ। भगवान कार्तिक के पूजा करने से जिनका विवाह नहीं हुआ रहता है वह हो जाता है और जिनको संतान की प्राप्ति नही हो पाती है उनके घर में किलकारियां गूंजने लगती है। कार्तिक कोई छोटे-मोटे देवता नहीं है क्योंकि वह शंभू के पुत्र है।

मंदिरों में कोई अंतर नहीं  : पं दुबे
पंडित खिलेंद्र दुबे ने कहा कि मंदिरों में कोई अंतर नहीं है, कई लोग दूर-दूर मंदिर जाते है जैसे डोंगरगढ़, रतनपुर लेकिन पास के मंदिर में पूजा-अर्चना नहीं करने जाते। सभी मंदिरों में स्थापित भगवान वहीं फल देते है जो पास में स्थित मंदिर में पूजा करने से मिल सकता है। भगवान कार्तिक ने तीन ज्योर्तिलिंग स्थापित किए प्रतिकेस्वर, कापलेश्वर और कुमार लेश्वर और उसकी पूजा करने लगे। वापस आए इतने में शेषनाम का पुत्र कुमुद कुमार आया और कुलंभा सुर का वध कर दीजिए बोला। इस पर भगवान कार्तिक ने कहा पाप करने से बड़ा पाप सहना है, उससे पापी बढ़ता है। इसलिए कहा जाता है कि अगर सामने वाला कोई बात बोल रहा है तो आपनी बात न करके सामने वाली की पूरी बात सुनना चाहिए। भगवान गणेश ने पहली गलती की था कि उन्होंने अपने पिताजी की पूरी बात नहीं सुनी थी। कभी भी माँ को बच्चों के पीठ पीछे करके सोना नहीं चाहिए, खास कर 6 माह के छोटे बच्चों के पीछे। हथिनी बोली काटने वाला विष्णु, श्राप देने वाला इंद्र तो मैं किसकी तपस्या करुं, तब हथिनी ने कहा मैं महादेव का तपस्या करती हूं और कहा कि मैं पशु तो हूं पर तुम्हारा पुत्र बनना चाहता हूं। गजमुख को क्या तुम संतान बनाओगे, तब भगवान शिव ने कहा कि हम तुम्हें अपना बेटा बनाएंगे।

गणपति नाराज तो सब नाराज, वे प्रसन्न तो सब प्रसन्न
उन्होंने कहा कि इसके पीछे कोई कारण है, एक बार माली और सुमाली नाम के दानव ने शिव से वरदान मांगा और उसे भगवान शिव प्रदान कर दिया। एक बार सूर्यदेव ने माली और सुमाली से कहा कि हर चीज में तुम्हारी मर्जी चलने वाला नहीं है। दोनों में बहस और युद्ध होने लगा इसी दौरान सूर्यदेव ने दोनों को ताडऩा दे दिया।  तब माली और सुमाली भगवान शिव के पास गए, तब भगवान शिव ने सूर्यदेव पर गलती स्वीकार नहीं करने पर त्रिशुल फेंका और वह बेहोश हो गए। तब सूर्यदेव के पिता कश्यप जी ने भगवान शिव को श्राप दे दिया कि तुम्हारा भी पुत्र होगा और सूर्य से प्यारा होगा लेकिन यही त्रिशुल से उसका भी सिर काटना होगा। जब सूर्यदेव होश में आया कश्यप जी रोने लगे कि मैंने ये क्या कर दिया। तब कश्यप जी ने कहा कि तुम्हारे पुत्र का सर गज का हो जाएगा और उसे सभी गजराज कहेंगे। भगवान गणेश शनि दोषी भी है। सभी ब्राम्हण कहते है कि तुम्हें शनि, तुलसी का दोष लग गया लेकिन कोई नहीं कहता कि तुम्हें गणेश का दोष लगा है। क्योंकि गणेश को तुम जैसा पूजोगे वह वैसे ही प्रसन्न हो जाते है। गणपति नाराज तो सब नाराज, वह प्रसन्न तो सब प्रसन्न।