रायपुर,19 फरवरी । धन्य यह छत्तीसगढ़ी मैया जहां जन्माष्टी पर्व पर पहले बच्चे माता-पिता के सामने उपवास करने के लिए रोते थे। हमारे पूर्वजों ने जो संस्कार हमें दिया है हम आज भी उसका पालन कर रहे है लेकिन आज कल के माता-पिता बच्चों को संस्कार देने में चूक रहे है। मैं उनसे कहना चाहता हूं कि बच्चों को पढ़ाओं-लिखाओं जरुर लेकिन जन्माष्टी के व्रत और अन्य व्रतों के बारे में उन्हें जरुर बताओ। उक्त बातें पंडित खिलेंद्र दुबे ने खमतराई के ब्रम्हदाईपारा में चल रहे श्रीशिव महापुराण कथा और रुद्राभिषेक के पांचवें दिन कहीं। उन्होंने कहा कि सब जीव में शिव है, एक बार एक संत रोटी में घी लगाने के लिए राटी को रखकर घी लेने गया तभी कुत्ता उसे उठाकर ले गया, संत ने जैसे ही कुत्ते को बोला घी लगाने दो तभी भगवान शिव प्रकट हो गए। शिव महापुराण कथा छोटे-मोटे भाग्य वालों को सुनने को नहीं मिलता है। माता सती का एक-एक अंग जगह-जगह पर गिरा हैं वहीं से सक्ति पीठ का निर्माण हो गया और आज एक-एक शक्तिपीठ में पूजा की थाली लेकर लोग जाते है और छत्तीसगढ़ में इसे आरुग कलश बोलते है।
ज्वाला मुखी का दीपक आज भी जल रहा है, वह बच्चों को जलाता नहीं है। शिवरात्रि आज से नहीं अनादि काल से चले आ रहा है। भगवान शिव बिना तपस्या के प्रसन्न होते नहीं है, तप के बिना फल मिलता नहीं है। 14 सालों तक जो शिवरात्रि महापूर्व का व्रत करें उसको भगवान अपने सानिध्य में स्थान देता है और अपने चरणों में जगह प्रदान करते है या फिर उनकी मनोकामना पूर्ण करते है ऐसा नहीं है एक रात में भी यह पूर्ण हो सकता है जब आपके अंदर पूर्ण श्रद्धा होगी। उन्होंने कहा कि वैसे चार पहर होता है लेकिन दिन और रात मिलाकर होता है आठ पहर। दिन का चार पहर और रात का चार पहर। आपको एक पूजा करने के लिए तीन घंटा मिला है और यह तीन घंटा आपको सतो गुणी, सजो गुणी और तपोगुणी को प्रसन्न करने के लिए होता है। इन तीन गुणो से त्रिदेव ही भगवान शिव पैदा होते है और हर शिवलिंग पर भगवान शिव का वास होता है। शिवरात्रि पर केवल शिवजी की पूजा नहीं बल्कि संपूर्ण भगवानों की पूजा होती है।
यह भी पढ़े :-Facebook में हजारों कर्मचारियों को मिली खराब रेटिंग, क्या फिर होगी छंटनी?
पंडित दुबे ने कहा कि पास में अगर शिव मंदिर है वहां पर जाकर ऊँ नम: शिवाय बोलकर पूजा करें, अगर ब्राम्हण मिले तो उनके द्वारा पूजा कराना श्रेष्ठ माना गया है क्योंकि मंत्र उसे आता है। मंदिर में जाकर धीरज नहीं खोना चाहिए चाहे लाइन में लगे हुए उसे कितना समय भी लग जाए। आप मंदिर के अंदर एक मुठा अगरबत्ती जला रहे है लेकिन उससे भगवान प्रसन्न होने वाले नहीं है, एक लोटा जल, सब समस्या का हल। शिव के दर्शन करने जाएं तो भेदभाव न करें, वह आपकी मनोकामना अवश्य पूरी करेंगे। शिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर ब्राह्मा, विष्णु और महादेव का वास होता है। अगर शिवरात्रि की पूजा रात भर कर रहे हो तो त्याग होना जरुरी है। जो रोम-रोम की गुप्त बातों को संचय कर चरितार्थ में उतार दें उसे गुरुदु्रह कहते है और भगवान शिव ने उनकी व्यथा को सुना और उसकी पिटा दूर हो गई, इसलिए कहते है शिवमहापुराण कथा मिटा देती है जीवन की व्यवस्था। माँ दुर्गा के बिना यज्ञ और अनुष्ठान पूरा नहीं होता यहां तकी शिव अनुष्ठान भी। भगवान का दर्शन सरलता से नहीं मिलता अगर जल्द मिल जाए तो वह पुण्य आत्मा नहीं है। भगवान के दर्शन करने के लिए इंतजार करना बहुत जरुरी है।
पंडित खिलेंद्र कुमार ने कहा कि मैना का विवाह हुआ हिमालय से वहां से जन्म ली माँ पार्वती, जनक कोई नाम है उसकी पोस्टिंग हुई थी कि देह है कि नहीं यह जान सकें और उसका नाम शिरज ध्वज था और वहां से माता सीता का जन्म हुआ। कलावति का विवाह हुआ बृजभानू से वहां से जन्मी राधा रानी। मैना ने 29 साल तक निराधार व्रत किया तब कहीं जाकर माता प्रसन्न हुई और 10 पुत्रों का वरदान दे दिया, लेकिन मैना पुत्री के लिए व्रत कर रही थी। हर पुरुष का चुट्टी होना बहुत जरुरी है क्योंकि वहां माँ दुर्गा का वास होता है। जब तब माँ उसे प्रेरणा नहीं देगी तब तक कोई तपस्वी नहीं बन सकता। चाहे कलयुग हो या सतयुग लोग हमेशा माँ दुर्गा को पहाड़ा वाली कहते रहेंगे। भोजन की थाली जमीन पर नहीं पीढ़ा पर रखकर करना चाहिए और पुराण घुटने के ऊपर रहना चाहिए। अगर घटना के नीचे पुराण रहता है तो उसे वक्ताव्य का दोष लग जाता है। जो बने को बना दे वह खिलाड़ी क्या, जो बिगड़ी को बना दे वह देवो के देव महादेव है।
[metaslider id="347522"]