महासमुंद ,02 फरवरी । सेवानिवृत्ति के बावजूद एक शासकीय अनुदान प्राप्त शाला में पदस्थ रहे प्राचार्य द्वारा जन्म तारीख में कूटरचना कर अपनी सेवा अवधि में दो सााल की गलत ढंग से वृद्धि करा लाभ लेने का एक मामला सामने आया है। इस मामले में जिलाधीश व शिक्षा विभाग के अधिकारियों को पुख्ता जानकारी होने के बाद भी कोई कार्रवई नहीं होना न केवल संदेह के दायरे बढा रहा है, अपितु इससे सरकारी खजााने को लाखों रुपए का चूना भी लगाा है। यह सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश की खुली अवहेलना भी मानी जा रही है जिसमें नौकरी के अंतिम पड़ाव में जन्म ताारीख नहीं बदले जाने की बात कही गई है।
इस बारे में पता चला है कि तुमगाँव स्थित बाागबाहरा शिक्षा समिति द्वारा संचालित पब्लिक उच्चतर माध्यमिक शाला के प्राचार्य पद पर कार्यरत रहते हुए तोषराम चंद्राकर ने रिटायरमेंट से पूर्व मिसल के आधार पर कलेक्टर से तारीख निकालकर प्राइमरी स्कूल के दाखिल-खारिज रजिस्टर में अपनी जन्म तारीख बदलवाकर सेवावृद्धि का गलत लाभ उठाया है। दाखिल-खारिज रजिस्टर में चंद्राकर की जन्म तारीख 17 मार्च, 1959 दर्ज थी जिसे बदलकर 12 दिसम्बर, 1960 किया गया है। इसके चलते बागबाहरा शिक्षा समिति ने सेवानिवृत्ति के स्थान पर चंद्राकर को फिर दो साल की सेवावृद्धि का लाभ दिया जबकि शासन का ऐसा कोई नियम नहीं है।
चंद्राकर की सेवा-पुस्तिका और वेतन पंजी इस पूरे प्रकरण की तस्दीक करने के लिए पर्याप्त हैं। चंद्राकर फिलहाल तुमगाँव शाला से सेवानिवृत्त है। इस संबंध में जब इसी समिति की शाला के एक शिक्षक अविनेश कोसे ने सूचना के अधिकार के तहत आवेदन कर जानकारी मांगी तो उन्हें चंद्राकर की 11वीं और 5वीं की अंकसूची में जन्म ताारीख में परिवर्तन किए जाने की जानकारी देने के बजाय संशोधित जन्म तारीख के साथ 5वीं की डुप्लीकेट मार्कशीट थमा दी गई।
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चंद्राकर ने पाँचवीं की अंकसूची में परिवर्तित जन्म तारीख के आधाार पर दो साल की सेवावृद्धि का गलत ढंग से लाभ लिया। बाद में श्री कोसे ने इस संबंध में प्रदेश के वित्त विभाग के अवर सचिव को तमाम दस्तावेजी सबूतों के सााथ जानकारी दी, जिस पर अवर सचिव ने शिक्षा विभाग के संयुक्त संचालक को पूरा प्रकरण जाँच के लिए भेजा, लेकिन शिक्षा विभाग ने इस मामले अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है। सवाल अब यह है कि सुप्रीम कोर्ट की मनाही के बाद भी नौकरी खत्म होने के समय किस आधार पर जन्म तारीख में रद्दोबदल किया गया? और, शाासन के नियमों की अनदेखी करके किस आधार पर चंद्राकर को दो साल की सेवावृद्धि प्रदान कर अनुचित लाभ पहुँचाने और सरकारी खजााने को चूना लगाने का कृत्य किया गया?
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