रायपुर,02 जनवरी । कहने और सुनने में यह थोड़ा अटपटा जरूर लगता है लेकिन यह सच है कि कई बार जब हमारे पास कोई रास्ता नजर नहीं आता तब गूगल हमें सही रास्ता और पता भी बता देता है। कुछ ऐसा ही हुआ उत्तर भारत के एक बेहद प्रसिद्ध राज्य हरियाणा के जींद निवासी एक मरीज के साथ। हरियाणा के जींद जिले से छत्तीसगढ़ के रायपुर पहुंचकर उन्होंने पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग में पैर की खून की नसों की बीमारी पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से निज़ात पाई। मरीज की इस बीमारी को चिकित्सा महाविद्यालय के हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभागाध्यक्ष डाॅ. कृष्णकांत साहू एवं टीम ने विशेष सर्जिकल तकनीक जिसे एंडआर्टिक्टाॅमी (धमनी में जमे प्लाक को निकालने की एक सर्जिकल प्रक्रिया) कहा जाता है, के जरिये निकाल कर मरीज के जीवन को बीमारी से मुक्त एवं दर्द रहित बनाया। आज मरीज स्वस्थ है और डिस्चार्ज लेकर अपने घर जींद, हरियाणा जा रहा है।
पेरिफेरल आर्टरी डिजीज से अंगूठा और पंजा हुआ काला
अम्बेडकर अस्पताल स्थित एसीआई के हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी (सीटीवीएस) विभागाध्यक्ष डाॅ. कृष्णकांत साहू बताते हैं, मरीज के सीटी एंजियोग्राफी से पता चला कि 52 वर्षीय मरीज के पैर की खून की नस जिसे फीमोरल आर्टरी और पाॅप्लीटियल आर्टरी कहते हैं, के एंटीरियर टिबियल और पोस्टीरियर टिबियल में ब्लॉकेज है। जिसके कारण मरीज के पैरों में रक्त का प्रवाह नहीं हो पा रहा था। ब्लाॅकेज के कारण अंगूठा और पंजा काला पड़ना प्रारंभ हो रहा था। खून नहीं पहुंचने के कारण पैरों के पंजों में असहनीय दर्द हो रहा था। इस बीमारी को पेरिफेरल आर्टरी डिजीज कहते हैं।
क्यों होती है यह बीमारी ?
पेरिफेरल आर्टरी डिजीज उन लोगों में ज्यादा होती है जो धूम्रपान जैसे- तंबाकू, बीड़ी, गुटखा, गुड़ाखू इत्यादि करते हैं। इनके अलावा अनियंत्रित मधुमेह के कारण या फिर जिनको वैस्कुलाइटिस की बीमारी (खून की नसों में सूजन) होती है। पहले इस प्रकार की बीमारी में सीधा पैर को काट दिया जाता था। पैर का काटना या एम्पुटेशन की दो प्रमुख वजह होती है या तो पैर में गैंगरीन हो जाता है या फिर असहनीय पीड़ा हो। चिकित्सा विज्ञान ने आज बहुत तरक्की कर ली है और यही वजह है कि पैरों की खून की नसों का इलाज अन्य विधियों से भी संभव है।
दर्द के वो आठ महीने
मरीज दिलबाग नयन ने अपनी जुबां से पिछले आठ महीनों की दास्तान बताते हुए कहा- आठ महीने से बायें पैर के पंजे में बहुत अधिक दर्द की शिकायत थी। इसी कारण मैं दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल गया जहां पर पैर के नस की एंजियोग्राफी कराई जिससे पता चला कि पैर के खून की नस जिसे पाॅप्लीटियल आर्टरी कहा जाता है, में ब्लॉकेज है। डॉक्टरों ने अत्यधिक दर्द होने के कारण घुटने से नीचे पैर काटने या एम्पुटेशन करने की सलाह दी। चूंकि जो ब्लॉकेज थी वह छोटी-छोटी नसों में थी जिसकी सर्जरी संभव नहीं है, इस कारण वहां के विशेषज्ञों ने मुझे एम्पुटेशन का विकल्प ही बताया। पैर काटने की बात सुनकर मैं अन्य दूसरे अस्पतालों जैसे- वेदांता, कैलाश इत्यादि में गया। सभी में यही बात कही गई कि ज्यादा दर्द है तो पैर कटवा लें। इसकी सर्जरी संभव नहीं है। मैंने आग्रह किया कि कोई अन्य विधि से एक बार कोशिश कर लें। फिर उन्होंने एम्पुटेशन को ही एकमात्र विकल्प बताया। इसी बीच मेरा बेटा जो नोएडा में जी. एस. टी. विभाग में असिस्टेंट कमिश्नर है, उन्होंने गूगल के माध्यम से वैस्कुलर (खून की नसों) से संबंधित सर्जन एवं अस्पतालों के बारे में सर्च करना शुरू किया। गूगल में डाॅ. कृष्णकांत साहू का नंबर भी मिल गया। उसी आधार पर यहां तक पहुंचे और यहां हमें सबसे बढ़िया इलाज मिला। 21 दिसंबर को मेरा ऑपरेशन भी हो गया।
एंडआर्टिक्टाॅमी सर्जिकल विधि से हुआ इलाज
डाॅ. कृष्णकांत साहू कहते हैं, फीमोरल और पाॅप्लीटियल आर्टरी में जमे हुए प्लाक को एक विशेष सर्जिकल तकनीक जिसे एंडआर्टिक्टाॅमी कहा जाता है, के जरिए हटाया गया। एक विशेष इंस्ट्रूमेंट जिसको वाॅल मार्स एंडआर्टिक्टाॅमी डिवाइस कहा जाता है, कि मदद से उनके पूरे प्लाक को निकाला गया और उसको गोर्टेक्स एक्सपेंडेबल पीटीएफई ग्राफ्ट से रिपेयर किया गया जिससे पैर के निचले हिस्से में खून का प्रवाह प्रारंभ हो गया।
डाॅ. कृष्णकांत साहू के अनुसार, आमतौर पर लोग अपने इलाज के लिए बड़े-बड़े शहरों-महानगरों, अस्पताल का रूख़ करते हैं परंतु सूचना एवं प्रौद्योगिकी के इस युग में सूचनाओं के अबाध प्रवाह से पंडित जवाहर लाल नेहरू स्मृति चिकित्सालय के हार्ट, चेस्ट एवं वैस्कुलर सर्जरी विभाग के प्रति भी लोगों की विश्वसनीयता बढ़ी है। यहां के अच्छे एवं सकारात्मक परिणामों को देखकर दूसरे राज्यों के मरीज भी यहां इलाज के लिए पहुंचने लगे हैं। पूरे राज्य की वैस्कुलर सर्जरी का 95 प्रतिशत केस यहां होता है। सर्जरी के बाद यहां के परिणाम भी काफी अच्छे हैं। आर्थिक दृष्टिकोण से समाज के हर वर्ग के लोग यहां इलाज कराने आते हैं।
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