सत्य, संयम और सेवा के सम्मिश्रण चौधरी मित्रसेन जिनके लिए मानव हित सदैव सर्वोपरी

⭕ समर्पण,आदर्श,महत्वाकांक्षा,सेवा तथा त्याग के सामंजस्य का नाम है चौधरी मित्रसेन ।


कोरबा,14 दिसम्बर । दुनिया में कुछ ही विरले लोग ऐसे होते हैं जो अपने सतकर्मों के पदचिन्ह छोड़ जाते हैं। जो दूसरों के लिए हमेशा अनुकरणीय होते हैं। चौधरी मित्र सेन ऐसे व्यक्तित्व के धनी थे। वे जीवनभर हमारे लिए मिसाल एवं प्रेरणास्रोत बने रहेंगे। ऐसे व्यक्तित्व की कमी समाज में हमेशा बनी रहती है। हमें ऐसे व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर आगे बढ़ना चाहिए । डॉ. संजय गुप्ता ने विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए बताया कि हमें हर कार्य को करने से पहले यह जाँच लेनी चाहिए कि इसके करने से सबका हित होगा क्योंकि हमारा कोई भी कार्य स्वार्थ के लिए नहीं परमार्थ के लिए होना चाहिए ।

प्रभावशाली व्यक्तित्व के धनी,सरलता,गंभीरता.सहजता,बौद्धिकता,कर्मनिष्ठा आदि गुणों से संपन्न महान कर्मयोगी चौध्री मित्रसेन जी की आर्य समाज और वैकिद धर्म के प्रति गहरी आस्था थी।एक ओर आपने जहाँ प्राचीन आर्य परंपरा के गुरुकुलों में प्राण डालने का काम किया,वहीं दूसरी ओर आधुनिक शिक्षा के प्रचार -प्रसार में भी आपने सतत् सहयोग दिया ।उनका मानना था कि यदि हमें समाज के स्तर को ऊँचा उठाना है तो शिक्षा को उन्नत बनाकर चलना होगा।हम इसी ताकतवर पद्धति के बलबूते विश्व के साथ प्रगति की पंक्ति में खड़े हो सकते हैं।इस परिवर्तनशील संसार में जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित है। लेकिन जन्म लेना उसी का सार्थक है,जो अपने कार्यों से कुल, समाज और राष्ट्र को प्रगति के मार्ग पर अग्रसर करता है।महाराजा भतृहरि के इन महावाक्यों को चरितार्थ करता चौधरी मित्रसेन आर्य का जीवन सत्य,संयम और सेवा का अद्भुत मिश्रण रहा।इनके लिए स्वहित को छोड़ मानव हित ही सर्वोपरि रहा। 15 दिसंबर 1931 को हरियाणा के हिसार जिले के खांडा खेड़ी गाँव में चौधरी श्रीराम आर्य के घर में माता जीवो देवी की कोख से चौधरी मित्रसेन आर्य का जन्म हुआ। अपने पूर्वजों से मिले संस्कार व अपनी पत्नि के साथ चौधरी मित्रसेन जी सन् 1957 में रोहतक में एक लेथ मशीन के साथ अपना खुद का व्यवसाय शुरू किया।


एक गृहस्थ व व्यवसायी होते हुए भी उन्होंने अपने जीवन में ऐसे आदर्श स्थापित किए जिन्हें यदि हम अपना लें तो रामराज्य की कल्पना साकार की जा सकती है।चौधरी जी के विचार थे हमें हर कार्य को करने पहले यह सोच लेना चाहिए कि इसके करने से सबका हित होगा या नहीं ।यदि व्यक्तिगत रुप से लाभ लेने वाला कोई कार्य समाज के लिए अहितकर है तो उस कार्य को कदापि नहीं करना चाहिए।


श्री मित्रसेन जी ने कई सुविधाविहीन क्षेत्रों में शिक्षा की अलख जगाकर अभूतपूर्व कार्य किया।जिससे उस क्षेत्र के निवासी आज भी लाभान्वित हो रहे हैं।इन क्षेत्रों में उड़ीसा और छत्तीसगढ़ के क्षेत्र सर्वोपरि हैं।आदिवासी क्षेत्रों में संचालित इन गुरुकुलों के विद्यार्थी संस्कृत शिक्षा के क्षेत्र में राज्य व विश्वविद्यालय स्तर पर कई कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं।आज भी इन विद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थी वैदिक सनातन धर्म की ध्वजा फहरा रहे हैं ।चौधरी मित्रसेन का पुरा जीवन दान,सेवा,धर्म व शिक्षा के लिए समर्पित रहा।उनका संपूर्ण जीवन लोगों के लिए एक आदर्श स्थापित करता है।उन्होंने दूसरों के प्रति सम्मान,दया,धर्म व सहयोग जैसी मानवीय गुणों की बदौलत सबके लिए एक मिसाल प्रस्तुत की। उन्होंने इन सभी आदर्शों को अपने जीवन में व्यावहारिक रुप से उतारकर ऐ आदर्श प्रस्तुत किया।उन्होंने वैदिक समाजवाद में अपनी पूर्ण आस्था रखी।उनका विश्वास था कि सबको समान अवसर,अधिक रोजगार और बेहतर जीवन प्रदान कर हम एक बेहतर व उन्नत समाज का निर्माण कर सकते हैं।आप एक राष्ट्रवादी चिंतक,आदर्श उद्योगपति,आदर्श दानवीर,आदर्श किसान,आदर्श समाजसेवी व अरदर्श कर्मयोगी थे। उन्होंने लगातार आपके परिवार में शिक्षा व संस्कार को ही महत्तव दिया,जिसका परिणाम रहा कि आज उनके परिवार की गणना बड़े सम्मान के साथ सबसे बड़े संयुक्त व शिक्षित परिवार के रुप में होती है।

वे अक्सर कहते थे कि सेवक जब तक माता का दिल साथ में नहीं रखता तब तक वह मानव जाति की यथायोग्य सेवा करने में असमर्थ ही होगा।मानव में जैसे-जैसे सेवावृत्ति आती जाएगी वैसे-वैसे वह महान बनता जाएगा।चौधरी मित्रसेन साधना पथ के वीर पुरुष थे।उनका दृढ़ निश्चय व ऊँची सोच ही उन्हें अन्यों से अलग करती है।उन्होंने अपनी साधना के बल पर जहाँ भौतिक साम्राज्य खड़ा किया,वहीं आध्यात्मिक बल हासिल किया और अपनी आत्म उन्नति से समाज में नाम कमाया।धीरज के धनी चौधरी मित्रसेन आर्य ने अपने पुरुषार्थ के दम पर सफलता की बहुआयामी चोटियों को स्पर्श किया।

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