सब्जियों की मिठास के साथ ही उत्पादन क्षमता भी बढ़ाता है बेस्ट-डी-कंपोजर

लखनऊ, 12 नवम्बर । बेस्ट-डी-कंपोजर जमीन के लिए एक ऐसी टानिक है जिसमें किसानों का न के बराबर पैसा खर्च होता है और जमीन की ताकत बढ़ जाती है। जैविक खेती करने वाले किसानों का कहना है कि इससे जहां फसलें नहीं होती, वहां भी फसल पैदा करने की ताकत है बेस्ट-डी-कंपोजर में, इससे हजारों प्रगतिशील किसान लाभांवित भी हो चुके हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि यदि आप रासायनिक खाद का खेतों में प्रयोग कर रहे हैं तब भी बेस्ट-डी-कंपोजर उपयोगी सिद्ध होगा। भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डा. एबी सिंह का कहना है कि 100 लीटर पानी में ढाई कुल गुड़ डालकर उसमें सौ ग्राम पहले से बना हुआ बेस्ट-डी-कंपोजर डाल दिया जाए तो एक सप्ताह में सौ लीटर टानिक तैयार हो जाता है।

यह सब्जियों की उत्पादन क्षमता तो बढ़ाता ही है। साथ ही सब्जियों की मिठास को भी बढ़ा देता है। गाजीपुर जिले के प्रगतिशील किसान पंकज राय का कहना है कि पहले बेस्ट-डी-कंपोजर बनाने के लिए 20 रुपये में उसका अर्क मिलता था, लेकिन पता नहीं क्यों वह बाजार से गायब हो गया। अब जो पहले से उसको बनाते आ रहे हैं उन्हीं के यहां से इसको लेकर बनाना पड़ेगा। हालांकि हर जगह एक-दो लोग इसे बनाने वाले मिल जाएंगे, लेकिन इसके प्रति जागरूकता की जरूरत है।

वे उपयोग करने के आधार पर बताते हैं कि यदि आपके खेत में सूखी घास है तो बेस्ट-डी-कंपोजर उसको मिट्टी में तब्दील कर उसको खाद के रूप में बना देता है। इसके साथ ही इसको मिट्टी में पानी के साथ देने पर यह मिट्टी की उर्वरा शक्ति में इजाफा करता है। इससे केंचुआ पैदा होते हैं, जो मिट्टी के लिए रामबाण का काम करते हैं।

सब्जी अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिक डा. राजेश कुमार का कहना है कि ‘वेस्ट डी कम्पोजर को गाय के गोबर से खोजा गया है। इसमें सूक्ष्म जीवाणु हैं, जो फसल अवशेष, गोबर, जैव कचरे को खाते हैं और तेजी से बढ़ोत्तरी करते हैं, जिससे जहां ये डाले जाते हैं एक श्रृंखला तैयार हो जाती है, जो कुछ ही दिनों में गोबर और कचरे को सड़ाकर खाद बना देती है। जमीन में डालते ही मिट्टी में मौजूद हानिकारक, बीमारी फैलाने वाले कीटाणुओं की संख्या को नियंत्रित करता है।’ गोंडा के प्रगतिशील किसान अनिल बताते हैं कि ‘ये दही में जामन की तरह काम करता है। एक बोतल से एक ड्रम और एक ड्रम से 100 ड्रम बना सकते हैं। दरअसल सूक्ष्मजीव सेल्लुलोज खाकर बढ़ते हैं और फिर वो पोषक तत्व छोड़ते हैं जो जमीन के लिए उपयोगी हैं। मिट्टी में पूरा खेल कार्बन तत्वों और पीएच का होता है।

ज्यादा फर्टीलाइजर डालने से पीएच बढ़ता जाता है और कार्बन तत्व (जीवाश्म) कम होते जाते हैं। बाद में वह जमीन उर्वरक डालने पर भी फसल नहीं उगाती क्योंकि वो बंजर जैसी हो जाती है।’ अपनी बात को सरल करते हुए वो बताते हैं, ‘पहले किसान और खेती का रिश्ता बहुत मजबूत था, लेकिन अब उसका सिर्फ दोहन हो रहा है। किसान लगातार फर्टीलाइजर और पेस्टीसाइड वीडीसाइड डालता जा रहा है, उससे जमीन के अंदर इन तत्वों की मात्रा बढ़ गई है। उर्वरकों के तत्व पत्थर जैसे इकट्ठा हो गए हैं क्योंकि उन्हें फसल-पौधों के उपयोग लायक बनाने वाले जीवाणु जमीन में नहीं बचे हैं।