अपने खिलाफ बातों को अक्सर मैं ख़ामोशी से सुनता हूँ … क्योकि,जवाब देने का हक मैने वक़्त को दे रखा है…

रायपुर, वरिष्ठ पत्रकार, शंकर पांडे।भारत के कुछ राज्यों मेँ प्रदेश सरकार के संविधानिक मुखिया (राज्यपाल)और सरकार के मुखिया (सीएम)के बीच कटुता की खबरें मिलती रहती है ख़ासकर उन प्रदेशों मेँ जहां गैर भाजपा की सरकारें हैं पर छ्ग इनमें अछूता है। संभवत:इसके पीछे दोनों प्रमुखों के बीच बढ़िया तालमेल कारण हो सकता है,

राज्यपाल सुश्री अनसुईया उइके का मप्र का मूल निवासी होना तथा कभी कांग्रेसी पृष्ठभूमि का होना भी कारण हो सकता है? राज्योत्सव मेँ जिस तरह से महामहिम ने राज्य सरकार की जमकर तारीफ की है वह भाजपाईयों के गले नहीं उतरेगी….?राज्यपाल ने अपने संबोधन में सीएम भूपेश की तारीफ की।राज्यपाल ने कहा- छत्तीसगढ़ में शिक्षा का स्तर बढ़ा है।शिशु मृत्यु दर भी कम हुई है। भूपेश बघेल जी आप जब से सीएम बने हैं एतिहासिक रूप से तीन सालों में देश और दुनिया के कलाकारों के साथ ट्राइबल उत्सव कराया मैं आपको कोटी कोटी बधाई देती हूं। राज्यपाल ने कांग्रेस सरकार की कुछ योजनाओं अंग्रेजी माध्यम से सुलभ शिक्षा के लिये स्वामी आत्मानंद स्कूल खोलने, हाट बाजार क्लिनिक योजना से से सुदूर बसाहटों तक स्वास्थ सुविधाएं उपलब्ध कराने, चलित अस्पताल लोगों के घरों तक पहुँचाने, जनजातीय आस्था के केंद्र देवगुड़ियों का कायाकल्प का प्रयास को भी गिनवाते हुए सरकार के कामों की तारीफ की है,जाहिर है कि 23साल की उम्र की तरफ बढ़ते छ्ग के लिये दोनों प्रमुखोँ की एक सोच भविष्य मेँ और भी अच्छे परिणाम देगी।यह तय माना जा रहा है।

535 साल पहले हुआ..था छत्तीसगढ़ का नामकरण…..

छत्तीसगढ़ राज्य बने 22 साल पूरे हो गए।हम 23वें साल में प्रवेश कर गये हैं।छत्तीसगढ़ का नामकरण कब किया गया? इसे लेकर अलग अलग दावे किए जाते रहे हैं। इतिहासविद डॉ रमेंद्र नाथ मिश्र के अनुसार “आज से लगभग 535 साल पहले छत्तीसगढ़ का नामकरण किया गया था.”।छत्तीसगढ़ का नामकरण 1487 में किया गया. साहित्य में ‘छत्तीसगढ़’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग खैरागढ़ के राजा लक्ष्मीनिधि राय के चारण कवि दलराम राव ने सन् 1487 में किया था. इस तरह छत्तीसगढ़ का नामकरण 1487 में हुआ था. उसके बाद अंग्रेज अधिकारी मेजर एग्न्यू ने 23 दिसंबर 1820 को छत्तीसगढ़ पर एक रिपोर्ट तैयार की थी. जिसमें ‘छत्तीसगढ़ प्रोविन’ शब्द का उपयोग किया गया।”1837 के भोसले राजाओं का कुछ दस्तावेज मिला था। जिसमें छ्ग जिला शब्द का प्रयोग हुआ है. 1854 से 1861 के बीच अंग्रेजों का शासन शुरू हुआ. उस समय छत्तीसगढ़ प्रांत कहा जाता था. जब 1861 में नए मध्यप्रांत का गठन किया गया, तो उस समय छत्तीसगढ़ प्रांत को उस में सम्मिलित कर लिया गया।

बिखरे कला और संस्कृति के रंग….

नृत्य भारत की स्वदेशी आबादी का पुरातन नृत्य हैं। आदिवासी के रूप में पहचाने जाने वाले इन लोगों के रीति-रिवाज हैं, जो कि बड़े भारतीय निवासियों से बहुत विविध हैं। भारत अपनी विशाल विविधता के साथ महान सांस्कृतिक विरासत का देश है। इसने नृत्य के विभिन्न रूपों को परिभाषित किया है। भारतीय लोक नृत्य का एक पुराना रिवाज है।

लोक परंपरा में, नृत्य लोगों के दैनिक जीवन का पोषण है। प्रत्येक लोक नृत्य में जीवन और अर्थ के कुछ स्वरूप को दर्शाया गया है। एक लोक नृत्य में भावना का प्रतिनिधित्व करने का विचार सामान्य और अभिनव है। भारतीय लोक नृत्य मुख्य रूप से खुशी व्यक्त करने के लिए किया जाता है। लोग पीढ़ी दर पीढ़ी,माता-पिता, दादा-दादी, या नाना-नानी से नृत्य सीखते थे, जिनका जीवन वास्तव में रीति-रिवाजों और परंपराओं से प्रभावित रहा है। भारतीय लोक, आदिवासी और रीति-रिवाज नृत्य परंपरा का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकांश का दैनिक जीवन के कार्यों से घनिष्ठ संबंध है। ग्राम भारत का किसान समुदाय लोक नृत्यों, कर्मकांड, खेती और समृद्धि को बनाने के लिए जिम्मेदार है। इसलिए लोक नृत्य में आम लोग शामिल हैं, जो गांवों और ग्रामीण इलाकों में बसे हुए हैं, और यह एक सामान्य आदमी की कला है। छ्ग मेँ राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव मेँ देश-विदेश के 1500 से अधिक जनजातीय कलाकारों ने हिस्सा लिया।
राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के लिए देश के सभी राज्यों, केंद्र शासित प्रदेशों, 09 विदेशोँ के करीब 1500 आदिवासी कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया । इन कलाकारों में देश के 1400 और विदेशों के 100 प्रतिभागी शामिल हुए । आयोजन में मोजांबिक, मंगोलिया, टोंगो, रशिया,इंडोनेशिया, मालदीव, सर्बिया, न्यूजीलैंड और इजिप्ट के जनजातीय कलाकार हिस्सा लिया ।आदिवासी नर्तक दल ने कला-संस्कृति के रंग छग की राजधानी में 3दिन बिखेरे हैं।राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन छग सरकार करने में सफल रही दरअसल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल स्वयं इसमेँ रुचि ले रहे थे। तीन दिनों तक चलने वाले इस महोत्सव ने छग का माहौल ही बदल दिया।आदिवासी नर्तक दलों द्वारा अपनी प्रस्तुति दी गई। वैसे भूपेश की सरकार बनने के बाद राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव की शुरुवात हुईं।छग जैसे आदिवासी बहुल इलाके में इस आयोजन की अन्य राज्यों सहित विदेशी कलाकारों ने भी सराहा है।

रमेश बैस और डॉ रमन सिंह मेँ समानता….

छ्ग मेँ 15 सालों तक सीएम रहे डॉ रमन सिँह और झारखण्ड के राज्यपाल रमेश बैस मेँ कई समानताएं हैँ…दोनों ने अपनी सक्रिय राजनीति की शुरुआत वार्ड मेंबर चुनाव से की थी, दोनों बाद मेँ मप्र विधानसभा के लिये विधायक भी चुने गये। बाद मेँ दोनों लोकसभा सांसद भी चुने गए..

डॉ रमन सिंह ने पूर्व सीएम मोतीलाल वोरा को हराया तो बैस ने भी पूर्व सीएम श्यामा चरण शुक्ला को पराजित किया। दोनों अटलजी के मंत्री मण्डल मेँ राज्यमंत्री भी रहे… इसके बाद छ्ग नया राज्य बनने पर लगातार 15साल डॉ रमन सिंह सीएम रहे तो यहाँ से बैस सांसद बनते रहे वहीं बाद मेँ त्रिपुरा और अभी झारखण्ड के राज्यपाल हैं.. एक बात और भी कामन है कि रमन और रमेश बैस दोनों लेफ्ट हेंडर हैँ।

रायपुर जेल और आईएएस,आईपीएस …

छत्तीसगढ़ के सेन्ट्रल जेल का अपना इतिहास रहा है, यहां आजादी के पहले कई फ़्रीडम फाइटर भी रह चुके हैं पर नया राज्य बनने के बाद आईएएस, आईपीएस भी जेल के मेहमान बन रहे हैं।

छ्ग के वरिष्ठ आईएएस बाबूलाल अग्रवाल यहां कुछ महीनों के मेहमान रह चुके हैं तो वरिष्ठ आईपीएस, एडीजी (निलंबित)जी पी सिंह भी आय से अधिक सम्पत्ति सहित राजद्रोह के मामले मेँ 3माह से अधिक समय तक रह चुके हैं तो हाल ही मेँ ईडी छापे के बाद आईएएस समीर विश्नोई भी फिलहाल 14दिनों की रिमांड पर रायपुर जेल मेँ हैं और वे उसी बैरक मेँ हैं जहाँ आईपीएस सिँह रह चुके हैं, वैसे अभी कुछ आईपीएस और आईएएस की भी जेल जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है….?

आईपीएस जीपी सिंह की बढ़ी मुसीबत….

आय से अधिक सम्पत्ति के मामले मेँ निलंबित आईपीएस अफसर,एडी जी गुरविंदर सिंह के खिलाफ न्यायालय मेँ मामला चलाने की अनुमति केंद्र की तरफ से छ्ग शासन को मिल गईं है,9नवम्बर को सम्बंधित कोर्ट मेँ मामले की सुनवाई होगी। यहां यह बताना जरुरी है कि ईओडब्ल्यू ने भारतीय पुलिस सेवा के 1994 बैच के अधिकारी सिंह के खिलाफ पिछले वर्ष 29 जून को भ्रष्टाचार निरोधक कानून के प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया था। इसके बाद ईओडब्ल्यू के दल ने एक जुलाई से तीन जुलाई के मध्य उनके और करीबियों के लगभग 15 ठिकानों पर तलाशी की कार्रवाई कर 10 करोड़ रुपए की संपत्ति का पता लगाया था। उसके बाद से जीपी सिंह फरार चल रहे थे। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट भी दरवाजा खटखटाया था। मगर वहां से राहत नहीं मिली थी।बाद मेँ उन्हें गिरफ्तार किया गया था और वे 120 दिन तक रायपुर जेल मेँ रहे थे, बाद मेँ उन्हें सशर्त जमानत मिली थी।

गुम इंसानों को खोजने मेँ जांजगीर पुलिस का रिकार्ड….

जांजगीर-चांपा पुलिस कप्तान विजय अग्रवाल के नेतृत्व मेँ गुम इंसानों को ढूंढ कर उनके परिजनों तक पहुँचाकर दीपावली की खुशियों को दोगुना कर दिया है। जिला जांजगीर चांपा में दिनांक 6अक्टूबर से 31अक्टूबर तक गुम इंसानों की खोज का विशेष अभियान चलाया गया था जिसमे कुल 209 गुम इंसानों जिसमें 03 बालक, 08 बालिका, 40 पुरूष एवं 158 महिला को खोजकर बरामद किया गया है।

इसानों की दस्तयाबी हेतु अलग-अलग टीमों का गठन किया गया था। 9 राज्यों सहित छ्ग के 15 जिलों में टीमें भेजी गई थी।गुमशुदा का मोबाइल नंबर ज्ञात कर आधुनिक तरीके वीडियो कॉलिंग के माध्यम से उनकी खोजबीन की गई । गुम इंसान का जिले के सबसे पुराने प्रकरण वर्ष 2012 के गुम इंसानों को उनके परिजनों से मिलाया गया. पुलिस की टीम उड़ीसा,मप्र, झारखंड,जम्मू कश्मीर,तेलंगाना,बिहार,उप्र हिमाचल और केरल भी भेजी गयी थी।अभियान के नोडल अधिकारी एएसपी अनिल सोनी थे,टीम के सभी लोगों को सम्मानित भी किया गया।

और अब बस..

0छ्ग के एक एसएसपी को जल्दी ही कार्यवाहक आईजी बनाने की चर्चा तेज है।
0रेरा मेँ एक सेवानिवृत आईएफएस को फिलहाल सदस्य बनाना लगभग तय है।
0 किस आईपीएस ने अपने बँगले मेँ 2-2गार्ड की ड्यूटी लगवाई है…?