तीन पीढ़ियों ने दी धनगरी गजा नृत्य की प्रस्तुति, महाराष्ट्र के सांगली क्षेत्र में लोकप्रिय है यह जनजातीय नृत्य

पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू भी अनिल भीमराव कोड़ेकर के पूर्वजों को कर चुके हैं सम्मानित

रायपुर, 02 नवम्बर । महाराष्ट्र के धनगरी गजा नृत्य में तीन पीढ़ियों ने भाग लेकर नृत्य की मनमोहक छवि प्रस्तुत की। राजधानी रायपुर के साइंस कॉलेज मैदान में आयोजित राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव में महाराष्ट्र के सांगली क्षेत्र में रहने वाली धनगर जनजाति धनगरी गजा नृत्य प्रस्तुत कर समा बांध दिया। इस प्रस्तुति में कलाकारों की तीन पीढ़ियों ने हिस्सा लिया। धनगरी गजा नृत्य की प्रस्तुति के लिए पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी अनिल भीमराव के पूर्वजों को सम्मानित कर चुके हैं। राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के मुख्य मंच से धनगरी गजा नृत्य के दल प्रमुख श्री अनिल भीमराव उनके भाई, पिता और चाचा सहित 16 कलाकारों ने प्रस्तुति दी।

धनगरी गजा नृत्य में भगवान श्री बीरोबा की वंदना की जाती है, जिसे भगवान शंकर का रूप मानते हैं। इसे अपने क्षेत्र में गुढ़ीपरवा से इसकी शुरूआत करते हैं और सात दिनों तक रात्रि को यह नृत्य करते हैं। जब यह नृत्य अपने क्षेत्र में की जाती है तो वे पालकी लेकर मंदिर के चारो तरफ भ्रमण करते हैं। इस लोक नर्तक दल के सदस्य आकर्षक परिधान पहनते हैं, जिसमें एक विशेष पगड़ी पहनी जाती है। साथ ही फड़की (घेरवाला विशेष वस्त्र) शर्ट, पैरों में घुघरू और दोनों हाथों में रूमाल होता है। इनके वाद्ययंत्र ढोल, कायता, बांसुरी शामिल हैं।

दल प्रमुख अनिल भीमराव कोड़ेकर कहते हैं कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की पहल पर छत्तीसगढ़ में किया गया आयोजन वह बहुत प्रशंसनीय है। इससे देश-दुनिया आदिवासी संस्कृति को नई पहचान मिल रही है। उन्होंने कहा कि यहां आकर उन्हें और उनके साथियों अपेक्षा से ज्यादा यहां सम्मान मिला है। धनगरी गजा नृत्य दल के सदस्य ने बताया कि उनकी जनजाति का प्रमुख भोजन ज्वार बाजरा की रोटी होती है। वे चावल का उपयोग कम करते हैं पर छत्तीसगढ़ में आने के बाद यहां का जो भोजन ग्रहण करने मिला वह बड़ा स्वादिष्ट लगा। सबसे अच्छी बात है कि यहां के रहवासी बड़े सहज और सरल है। उन्हें यहां अपनापन का अनुभव हो रहा है।

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