RAIPUR NEWS: ‘नोनी लारी’ मुक्त बस सेवा से बदलाव

रायपुर ,11अक्टूबर। जिले के गांवों में सरकारी प्राथमिक विद्यालय से बहुत सी बालिकाऐं हाई स्कूल तक भी नहीं पहुंच पाती हैं। अगर वे ऐसा करती भी हैं, तो बहुत से लोग उन्हें कॉलेज जाते हुए देखना नहीं चाहते। समस्या “बालिका की शिक्षा में निवेश क्यों करें? जब उनकी शादी होनी है” वाली मानसिकता है। समाज में ऐसी अवधारणा बदलने के लिए छत्तीसगढ़ के रायपुर में काम हो रहा है। रायपुर में एक विश्वसनीय और निःशुल्क परिवहन सुविधा न केवल बालिकाओ की कॉलेज शिक्षा सुनिश्चित कर रही है, अपितु वे 300 प्राथमिक विद्यालय के बच्चों को मुफ्त ट्यूशन भी प्रदान करने के लिए भी एक सामाजिक प्रयोग कर रही है।

तिल्दा का सरकारी पीजी कॉलेज के अधिकाँश गांवों से औसतन 20 किमी दूर है। बालिकाऐं न तो साइकिल से, और न ही पैदल जा कॉलेज जा-आ सकती हैं ।  माता-पिता उन्हें कॉलेज से लाने ले जाने के लिए प्रयास करे तो भी दिहाड़ी मजदूरों के रूप में उनकी नौकरी कौन करेगा? शिक्षा जारी रखने में उनकी सबसे बड़ी समस्या को हल करने के लिए नोनी लारी एक लागत-मुक्त नि:शुल्क बस सेवा है। खास बात यह है के अदाणी फाउंडेशन के द्वारा एक सामाजिक प्रयोग के तहत बस सेवा का लाभ उठाने वाली  प्रत्येक बालिका सप्ताह में छह दिन अपने समय का एक घंटा  1-5 के छात्रों को पढ़ाने में लगाती हैं। ये 60 लड़कियां हर शाम 300 बच्चों को कॉलेज से लौटकर पढ़ाती हैं। नि:शुल्क शिक्षण की यह व्यवस्था अदाणी समूह की सीएसआर शाखा अदाणी फाउंडेशन द्वारा परिकल्पित “स्वदान” के अंतर्गत दी जाती है।

नोनी लारी सेवा के साथ ही स्वदान में भाग लेने इन लड़कियों ने दिसंबर 2021 में शिक्षण यात्रा शुरू की। कुछ ने शुरू से ही इसका आनंद लिया, दूसरों को अपनी क्षमताओं पर विश्वास हासिल करने में थोड़ा समय लगा। चिचोली गांव की रहने वाली बीएससी (गणित) की तृतीय वर्ष की छात्रा राधिका सिन्हा (20) एक किसान परिवार से है। कॉलेज से घर लौटने के बाद वह अपने गांव के 8 बच्चों को पढ़ाती हैं। राधिका बता रही है की “मुझे सीखने और सिखाने में आनंद आता है। आगे जाकर, मैं एमएससी की डिग्री हासिल करते हुए भी पढ़ाना जारी रखना चाहती हूं”। रायखेड़ा गाँव की रहने वाली प्रथम वर्ष बी.ए. की छात्रा अंजलि सोनवानी (18) के लिए भी यह यात्रा सामान्य नहीं रही। उसके पिता एक मजदूर हैं जो उसे कॉलेज नहीं भेज सकते थे। अंजलि बता रही है की “मैं अपने दो छोटे भाई-बहनों को पढ़ाती हूँ, लेकिन 7 बच्चों को एक साथ संभालना आसान नहीं है। मुझे लगता है कि मैं इसमें बेहतर हो रही हूं। 

ऐसी ही कहानी आईटीआई टिल्डा की 19 वर्षीय छात्रा एकता साहू की है, जो कंप्यूटर ऑपरेटर बनना चाहती है। वह कहती हैं की “11 सदस्यों के संयुक्त परिवार में पैसों की समस्या हमेशा बनी रहती है। मैं नोनी लारी के लिए धन्यवाद देती हूं, मैं खुद पढती हूं और पांच बच्चों को पढ़ाती हूं। मैं बच्चों को खेल से जोड़ने की कोशिश करती हूं और मूल बातें सीखने के नए तरीके सिखाती हूं”।बीएससी के दूसरे वर्ष की छात्रा महिमा राजपूत (19) के लिए यह सिर्फ शुरुआत है। वह साझा करती हैं की “मैं सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करना चाहती हूं और कोचिंग के लिए पहले ही पंजीकरण करा चुकी हूं। इन 5 बच्चों को पढ़ाने से मेरे बेसिक्स का रिविज़न हो जाता है ”। ‘प्रयास’ अदाणी फाउंडेशन की एक पहल है जो सिविल सेवा के उम्मीदवारों को कोचिंग की सुविधा प्रदान करता है। 

रायखेड़ा गाँव के निवासी चंद्रशेखर नायक कहते हैं, “अब मेरी बहनें अपनी शिक्षा जारी रखने में सक्षम हैं, इसके लिए घर से गर्ल्स पीजी कॉलेज, तिल्दा तक सुरक्षित परिवहन सुविधा उपलब्ध है। राधिका, अंजलि, एकता और महिमा जैसी कई लड़कियों के माता-पिता के लिए यह राहत की बात है कि उनकी बेटियां सुरक्षित रूप से आ-जा रही हैं, बड़े गर्व की बात है कि वे छोटे बच्चों की पढ़ाई में मदद भी कर रही हैं।

अदाणी फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक श्री वसंत गढ़वी कहते हैं, “शिक्षा हमारे सीएसआर प्रयासों के मुख्य क्षेत्रों में से एक है। शुल्क-मुक्त और सब्सिडी वाले स्कूल चलाने के अलावा, हम पहले से मौजूद शैक्षिक सुविधाओं तक पहुंच कर उनमें सुधार करने का प्रयास करते हैं। हमारा यह प्रयास  एक उदाहरण है के कैसे एक साधारण निःशुल्क बस सेवा को अधिक सार्थक और कारगर हस्तक्षेप बनाया जा सकता है। आप इसे एक सफल सामाजिक प्रयोग के रूप मे देख सकते हैं।”

उन गांवों में जहां माता-पिता अपने बच्चों को भोजन प्राप्त करने के लिए स्कूल भेजते हैं, इन लड़कियों से मार्गदर्शन प्राप्त बच्चों में शिक्षा के प्रति रुचि पैदा हुई है, यह उन्हें एक उज्जवल भविष्य की ओर प्रेरित कर रहा है। महिला सरपंच (रायखेड़ा) सुखबती कुर्रे  कहती हैं की “ये लड़कियां इवनिंग क्लासेज में बहुत कुछ सिखा रही है। अगर उनके कुछ छात्र अकादमिक रूप से अच्छा प्रदर्शन करना शुरू कर देते हैं, तो यह उनके जीवन को बदलने की क्षमता रखता है।”

एकमात्र शिक्षा ही सबसे शक्तिशाली शस्त्र है जो जीवन बदल सकता है। अदाणी फाउंडेशन के सहयोग से ये लड़कियां अपनी जीवन गाथा लिख रही हैं और अपने आसपास के समाज को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही हैं। 1996 में स्थापित अदाणी फाउंडेशन आज 16 राज्यों में व्यापक संचालन कर रहा है, जिसमें भारत भर के 2,409 गाँव और कस्बे शामिल हैं, जो 3.7 मिलियन से अधिक लोगों का जीवन बदल रहे हैं। समाज में लड़कियों को लेकर व्याप्त निम्न स्तरीय भावनाएं उनके विकास के लिए सदैव बाधक बन जाती हैं जिससे समाज में ना ही उन्हें उनका अधिकार और स्थान मिल पाता है और ना ही उनका सामाजिक विकास हो पाता है। ऐसे में रायपुर की यह बालिकाऐं अपनी अलग ही पहचान बना रही है।