शक्ति स्वरूपा मां डिंडेश्वरी आस्था का अनुपम केंद्र, श्रद्धालुओं की मनोकामना होती है पूरी

मल्हार/बिलासपुर, 27 सितंबर। पुरातात्विक और आध्यात्मिक नगरी कहे जाने वाली मल्हार में मां डिंडेश्वरी आस्था का प्रतीक व प्रमुख केंद्र है। मां शक्ति पार्वती के रूप में डिंडेश्वरी माँ के इस मंदिर में लोग अपनी मनोकामना को लेकर दूर दराज से आते हैं। वहीं नवरात्रि में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इन दिनों में मां शक्ति के स्वरूप की अर्चना करना विशेष फलदायी होता है। मां डिंडेश्वरी के मंदिर में घट स्थापना के साथ जौ या जवारे की स्थापना नवरात्रि के पहले दिन से ही कि गई है। जौ (अन्न) को ब्रह्मा जी और अन्नपूर्णा देवी का प्रतीक माना गया है, इसलिए सर्वप्रथम उनकी पूजा कर सम्मान किया जाता है। मंदिर में ज्योति कलश रखा गया है। जिसकी ज्योति से अज्ञान रूपी अंधकार को दूर होता है। इस प्राचीन माँ के मंदिर में दुर्लभ शुद्ध काले ग्रेनाइट से बनी मां डिंडनेश्वरी की प्रतिमा विराजमान है।

मान्यता है कि, माता अपने दरबार से किसी को भी खाली हाथ नहीं जाने देती। इसलिए यहां स्थानीय लोगों के अलावा पूरे छत्तीसगढ़ प्रदेश और देशभर से लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं। कुंवारी कन्या इच्छित वर के लिए माँ की आराधना करती हैं।बिलासपुर से करीब 35 किमी दूर मस्तूरी विकासखंड के जोन्धरा मार्ग पर मौजूद मल्हार गांव डिंडेश्वरी देवी के कारण प्रसिद्व है। कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण 10 वीं-11 वीं ई. में हुआ था।

मंदिर के पुजारी कमल अवस्थी ने बताया कि, देवी माँ की प्रतिमा 4 फीट की ऊंचाई की गहरे काले रंग की ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित पद्मासन मुद्रा में तपस्या करती हुई, राजकन्या होने का एहसास कराती है, तो सिर के पीछे स्थित प्रभामंडल होने से उन्हें देवी के रूप में प्रकट करती है। सिर पर मुकुट, कानों में कुंडल, गले में हार, भुजाओं में बाजूबंद, पैरों में पायल, ललाट में बिंदी आदि सोलह श्रृंगार की हुई दिव्य अलौकिक प्रतिमा हैं, जिसे ध्यान से देखने पर सुबह बालिका दोपहर में युवती और रात्रि में महिला की आभा लिए स्पष्ट प्रतीत होती है। पादपृष्ठ में दोनों जानुओं के नीचे सिंह निर्मित होने से इसे कुमारी (पार्वती) की, शिव को पति रूप में प्राप्त करने की पार्वती की प्रतिमा प्रतीत होती है, जिसने भगवान शिव को पति रूप में पाने तपस्या की। इसीलिए यह मान्यता है कि, कोई भी युवती अपने लिए इच्छित वर की प्राप्त करना चाहती हैं वो इनके दर्शन और मनौती बाँधती हैं और मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित कराती हैं।

मान्यता है कि डिंडेश्वरी नाम महाभारत में उल्लेखित दुर्गा के सहस्त्रों नामों में से एक है, जो अपभ्रंश रूप में प्रसिद्ध हो गया है। ग्रामीण अंचल में कुँवारे लड़कों को डड़वा या डीडवा कहा जाता है। उसी तरह कुँवारी लड़कियों को डिड़वी, डिंडिन, या डिंडन कहा जाता है। मल्हार में यह निषाद समाज में और अन्य समाजों में प्रचलित शब्द है और चूँकि इस देवी का निषाद समाज द्वारा जीर्णोद्धार कराया गया था, तो उनकी आराध्या देवी शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्विनी रूप में यह पार्वती की प्रतिमा डिंडेश्वरी रूप में प्रसिद्ध हो गयी। तपोमुद्रा में यह स्पष्ट है कि यह तपस्यारत पार्वती की प्रतिमा है । यद्यपि पार्वती जी की तपोभूमि हिमालय है। फिर भी शिव की आराधना के निमित्त या किसी-किसी मनौती के अभिप्राय से इस स्थल पर तपस्विनी एवं महामाया पार्वती की मूर्ति की स्थापना की गयी होगी।

पौराणिक कहानी

वेदों के विद्वानों के अनुसार पुराणों में वर्णित मल्लासुर दानव का संहार शिव ने यहीं किया था। इसके कारण उनका नाम मल्लाल, मल्हार, मलार और मल्लानय प्रचलित हुआ। कलचुरी पृथ्वी देव द्वितीय के शिलालेख ने इसका प्राचीन नाम मल्लाल दिया गया है। 1167 ईसवी का अन्य कलचुरी शिलालेख इसका नाम मल्लापट्टन प्रदर्शित करता हैं। मल्लाल संभवतः मल्लारी से बना है, जो भगवान शिव की एक संज्ञा थी। अब यह नगर वर्तमान में मल्हार कहलाता है।

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