रायपुर,27सितम्बर । साधु और साधक दोनों निर्ग्रन्थ होते हैं। जिस जगह पर रहकर साधना करते हैं उस जगह को साधक कहते हैं। एक बार की बात है दो औरत समान भार लेकर चल रही थी। दोनों के हाथ में दो बैग थे। दोनों औरतों की उम्र भी समान थी और शरीर का भार भी समान था। फिर भी उसमें से एक औरत हाय हाय कर रही थी और दूसरी शांति से चल रही थी। दोनों में फर्क रहा था कि जो हाय है कर रही थी और नौकर की पत्नी थी और जो शांति से चल रही थी वह मालिक की पत्नी थी। यह बातें न्यू राजेंद्र नगर के मेघ-सीता भवन, महावीर स्वामी जिनालय परिसर में चल रहे चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान सोमवार को साध्वी स्नेहयशाश्रीजी ने कही।
साध्वीजी कहती है कि हमारा शरीर साधक और संसारी जीवन जीने वालों के लिए एक ही है। वैसे ही वस्त्र, भोजन और रोगों का उपद्रव भी दोनों के लिए एक ही है। जब रोग घेरते हैं तो संसारी व्यक्ति यह शरीर ना छूट जाए करके अपना इलाज कराते हैं। वहीं, साधु संत अपना इलाज इसलिए कराते हैं की साधना करते समय उनकी और रोग बाधक न बने। संसारी व्यक्ति प्रदर्शन के लिए वस्त्र पहनता है और साधक तन को ढकने के लिए। फैशन का ट्रेंड इतना भी बदल जाए साधकों को इससे कोई मतलब नहीं होता है। साधना आप जिस वेष में भी करें आपका लक्ष्य आत्मा की शुद्धि करने का होना चाहिए। जिन वस्त्रों में आप साधना करेंगे वही साधक का वस्त्र माना जाएगा।
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00 जीवन जीने की कोई मजबूरी नहींसाध्वीजी कहती है कि संसारी जीवन और साधकों के पास समान चीजें उपलब्ध है फिर भी संसारी जीवन अपना विकास नहीं कर पाता है। अगर आप किसी चोर से पूछेंगे कि वह चोरी क्यों करता है तो वह कहेगा कि परिवार को पालने के लिए वह चोरी करता है। चोरी करने से पहले अगर उस व्यक्ति को पता रहता कि मैं आगे चलके चोर कह लाऊंगा और चोरी करने पर मुझे सजा मिलेगी तो वहां ऐसा कभी नहीं करता। जिन लोगों को पता है कि चोरी करने की क्या सजा भुगतनी पड़ती है वह चोरी कभी नहीं करते हैं। आप कुछ भी करो चाहे वह व्यापार हो चाहे आपका भोजन हो, आपका लक्ष्य सद्गति की ओर जाने का होना चाहिए। मात्र शरीर ही हमें आत्मा को परमात्मा बनाने में सक्षम है इसलिए हमें ऐसी गलतियां नहीं करनी है00 रास्ता एक पर व्यवस्थाएं भिन्नसाध्वीजी कहती है कि मेडिकल स्टोर में जितने भी दवाइयां रोग दूर करने की रखी गई है आप उनमें से किसी को भी नहीं खा सकते हो।
आपको कोई रोग हो जाए तो डॉक्टर से सलाह लिए बिना आप कोई भी दवाई नहीं खा सकते हो। अगर किन्ही दो व्यक्ति को बुखार हो गया है दोनों का टेंपरेचर क्योंकि बराबर है तो डॉक्टर दोनों को एक ही दवाई देंगे। पर ऐसा नहीं है कि दोनों की तबीयत दो दिन में ठीक हो जाए। हो सकता है पहला मरीज एक दिन में ठीक हो जाए और दूसरा एक महीने में भी ठीक ना हो पाएं। दवाइयों को व्यवस्थित ढंग से बताना डॉक्टर का काम होता है। अगर आप डॉक्टर की फीस देना है यह सोचकर डॉक्टर के पास नहीं जाएंगे तो नुकसान आपका ही है। वैसे ही गुरु भगवंत आपको परमात्मा से मिलने का रास्ता बताते हैं। रास्ता तो एक ही होता है लेकिन व्यवस्थाएं अलग-अलग होती है।
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